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Friday, 31 May 2019

प्रदूषण करता अट्टहास

प्रदूषण करता अट्टहास
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प्रदूषण दशानन सा करता अट्टहास
दसों दिशाओं में हैं जिसका प्रताप
है कोई मर्यादापुरुषोत्तम ?
रण में दे उसे ललकार ।

रक्तबीज सा गगन  में करता प्रलाप
भूमंडल पर निरंतर  जिसका विस्तार
है   कोई   महाकाली ?
करे उसका रूधिरपान ।

दक्षराज सा बढ़ता जिसका अभिमान
सती होती  प्रकृति , असहनीय संताप
है   कोई   वीरभद्र ?
करे   उसका   संघार ।

जनसेवकों की वाणी में करता निवास
शकुनि सा जिसका कपट जाल
है  कोई  कृष्ण ?
दे   गीता का  ज्ञान ।

भ्रष्टतंत्र का कर नित्य नव श्रृंगार
प्रदूषण हिंसा को देता उपहार
है कोई गांधी ?
करे फिर अहिंसा पाठ ।

वसुंधरा का"मानव"करता कुटिल मंथन
वासुकी सा फुफकार प्रदूषण
है कोई नीलकंठ ?
हलाहल का करे पान ।

सागरपुत्रों सा दिग्विजय का लेके प्रण
 कपिल का तप ध्वनि प्रदूषण से किया भंग
भस्म हुईं महत्वाकांक्षाएँ अनंत
न मानव रहा, न उसका यंत्र ?

रे हतभाग्य ! किया सृष्टि का महाविनाश
मुक्ति की याचना लिये बन प्रदूषण की राख
नहीं  कोई  भगीरथ  ?
 न गंगावतरण की आस।
 
             -व्याकुल पथिक