व्याकुल पथिक 14/4/ 18
समाज सुधारक पर हो रही सियासत का यह कैसा हाल
आज बाबा साहब अम्बेडकर की जयंती है।सो, विभिन्न राजनैतिक दलों, सरकारी संस्थाओं और जातीय संगठनों द्वारा तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। और करना भी चाहिए जिन भी महापुरुषों ने हमें , हमारे समाज और देश को अपनी तपस्या साधना से विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं विष ग्रहण कर औरों को अमृतपान करवाया है। उन्हें हम भुला भी कैसे सकते हैं। लेकिन, विडंबना देखें कि जो समाज सुधार हैं, उनकों भी जाति धर्म की राजनीतिक के विषाक्त वातावरण ने सीमित दायरे में ला खड़ा किया है। सो, सबसे अधिक सियासत किसी के नाम पर हो रही है, तो वे हैं डा० भीमराव अम्बेडकर। दलित राजनैतिक संगठनों ने बाबा साहेब के नाम पर अपना अधिकार जमा लिया है। वहीं अन्य सियासी पार्टियां डा० अम्बेडकर के नाम को अपना बताने के लिये आपस में लड़ रही हैं। दरअसल, यह सियासी जंग जो उन( बाबा साहेब) पर अधिकार जमाने के लिये हो रह है, वह दलित जातियों के वोटबैंक के लिये हो रहा है। परंतु बाबा साहेब ने जो स्वप्न दलितों की हित रक्षा का संजोया था, वह देश की आजादी के बाद कितना पूरा हुआ। दलित समाज के क्रीमी लेयर लोगों को छोड़ दे तो, आम दलितों को कितना लाभ मिला । उन्हें संविधान द्वारा दिए गए विशेष अधिकारों का किसी राजनैतिक दल जो उनके सबसे करीब रहा है, ने उन्हें सामाजिक बुराइयों से मुक्त कर विकासशील समाज की ओर अग्रसर किया क्या। बड़ा सवाल यह है कि समाज का बड़ा तबका किसी न किसी मादक द्रव्य के नशे का शिकार हो जाता रहा है। सत्ता में आने पर इस दलित वर्ग के शुभचिंतक कहे जाने वाले राजनैतिक दलों ने ऐसा क्या किया कि यह एक नशामुक्त समाज बन पाता। खैर , दलितों संग सहभोज अब उनके उत्थान, विकास, सामाजिक समरसता का बड़ा पहचान बन गया है। वहीं, समाज में द्वेष भाव इस कदर बढ़ गया है कि अम्बेडकर जयंती जैसे पर्व पर अब उनकी ही प्रतिमा की सुरक्षा अपने ही देश, प्रदेश के गांव- जनपद में करनी पड़ रही है। हैं न बड़ी ही विचित्र स्थिति। जहां हर दल के नेता अंबेडकर जयंती मना रहे हो, वहीं पुलिस उनकी प्रतिमा की डंडा लिये पहरेदारी कर रही है। एक ही समूदाय के लोग अगड़े, पिछड़े और दलित में बंट कर यह किस तरह की जंग एक समाज सुधारक की प्रतिमा पर लेकर लड़ रहे हैं। जिस तरह की जयंती बाबा साहब की मनी उसके समक्ष तो बापू की जयंती पर होने वाले समारोह यदि सरकारी आयोजन को छोड़ दें, तो कहीं से टिक नहीं सकते। जिसने अहिंसा की राह पर चलना सिखाया और कमजोर वर्ग के लिये सार्थक संघर्ष किया। उस राष्ट्रपति की जयंती पर क्या विभिन्न राजनैतिक दलों की इस तरह की सक्रियता आपने बीते वर्ष 2 अक्टूबर की देखी थी ! (शशि)
समाज सुधारक पर हो रही सियासत का यह कैसा हाल
आज बाबा साहब अम्बेडकर की जयंती है।सो, विभिन्न राजनैतिक दलों, सरकारी संस्थाओं और जातीय संगठनों द्वारा तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। और करना भी चाहिए जिन भी महापुरुषों ने हमें , हमारे समाज और देश को अपनी तपस्या साधना से विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं विष ग्रहण कर औरों को अमृतपान करवाया है। उन्हें हम भुला भी कैसे सकते हैं। लेकिन, विडंबना देखें कि जो समाज सुधार हैं, उनकों भी जाति धर्म की राजनीतिक के विषाक्त वातावरण ने सीमित दायरे में ला खड़ा किया है। सो, सबसे अधिक सियासत किसी के नाम पर हो रही है, तो वे हैं डा० भीमराव अम्बेडकर। दलित राजनैतिक संगठनों ने बाबा साहेब के नाम पर अपना अधिकार जमा लिया है। वहीं अन्य सियासी पार्टियां डा० अम्बेडकर के नाम को अपना बताने के लिये आपस में लड़ रही हैं। दरअसल, यह सियासी जंग जो उन( बाबा साहेब) पर अधिकार जमाने के लिये हो रह है, वह दलित जातियों के वोटबैंक के लिये हो रहा है। परंतु बाबा साहेब ने जो स्वप्न दलितों की हित रक्षा का संजोया था, वह देश की आजादी के बाद कितना पूरा हुआ। दलित समाज के क्रीमी लेयर लोगों को छोड़ दे तो, आम दलितों को कितना लाभ मिला । उन्हें संविधान द्वारा दिए गए विशेष अधिकारों का किसी राजनैतिक दल जो उनके सबसे करीब रहा है, ने उन्हें सामाजिक बुराइयों से मुक्त कर विकासशील समाज की ओर अग्रसर किया क्या। बड़ा सवाल यह है कि समाज का बड़ा तबका किसी न किसी मादक द्रव्य के नशे का शिकार हो जाता रहा है। सत्ता में आने पर इस दलित वर्ग के शुभचिंतक कहे जाने वाले राजनैतिक दलों ने ऐसा क्या किया कि यह एक नशामुक्त समाज बन पाता। खैर , दलितों संग सहभोज अब उनके उत्थान, विकास, सामाजिक समरसता का बड़ा पहचान बन गया है। वहीं, समाज में द्वेष भाव इस कदर बढ़ गया है कि अम्बेडकर जयंती जैसे पर्व पर अब उनकी ही प्रतिमा की सुरक्षा अपने ही देश, प्रदेश के गांव- जनपद में करनी पड़ रही है। हैं न बड़ी ही विचित्र स्थिति। जहां हर दल के नेता अंबेडकर जयंती मना रहे हो, वहीं पुलिस उनकी प्रतिमा की डंडा लिये पहरेदारी कर रही है। एक ही समूदाय के लोग अगड़े, पिछड़े और दलित में बंट कर यह किस तरह की जंग एक समाज सुधारक की प्रतिमा पर लेकर लड़ रहे हैं। जिस तरह की जयंती बाबा साहब की मनी उसके समक्ष तो बापू की जयंती पर होने वाले समारोह यदि सरकारी आयोजन को छोड़ दें, तो कहीं से टिक नहीं सकते। जिसने अहिंसा की राह पर चलना सिखाया और कमजोर वर्ग के लिये सार्थक संघर्ष किया। उस राष्ट्रपति की जयंती पर क्या विभिन्न राजनैतिक दलों की इस तरह की सक्रियता आपने बीते वर्ष 2 अक्टूबर की देखी थी ! (शशि)
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