Followers

Monday 12 November 2018

आदमी बुलबुला है पानी का..

**************************
   मृतकों के परिजनों के करुण क्रंदन , भय और आक्रोश के मध्य अट्टहास करती कार्यपालिका की भ्रष्ट व्यवस्था के लिये जिम्मेदार कौन..
*************************
 यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं
ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा...

    जब हम सभी दीपावली पर्व की चकाचौंध में खोये हुये थें, अपने नगर के ही एक इलाके में मौत दबे पांव दस्तक दे रही थी। दूषित पेयजल से दो बालक सहित चार लोगों की जान चली गयी। सौ के आसपास लोग डायरिया के शिकार हुये। मृतकों के परिजनों के करुण क्रंदन , भय और आक्रोश के मध्य अट्टहास करती कार्यपालिका की भ्रष्ट व्यवस्था देख मन खिन्न हो गया और जब चार जानें चली गयीं, तभी आला अधिकारियों की तंद्रा भी भंग हुई।  पर इस घटना के लिये जिम्मेदार कौन . ? यह अब भी यक्ष प्रश्न है।
     जानते हैं आप,  नगरपालिका का इंस्पेक्टर क्या कह रहा था, हम पत्रकारों से..। ये जनाब दलील दे रहे थें कि जेसीबी से पंच करवाने के दौरान पेयजल की पाइप लाइन क्षतिग्रस्त हो गया, तो वे क्या जाने, जब पता चला तो ठीक किया जा रहा है.. ।
    यदि जनता सचमुच व्यवस्था में परिवर्तन चाहती है, तो ऐसे मनबढ़ सरकारी नौकरों को उसे यह समझाना हो कि यदि कोई जर्जर भवन ढहाया जा रहा हो, उसके समीप के दूसरे मकान को क्षति न पहुँचे यह जिम्मेदारी भवन ढ़हाने वाले की होती है। फिर यहाँ  इतनी बड़ी लापरवाही एक तो की गयी और ऊपर से इंस्पेक्टर साहब सीना फुलाने लगे 56 इंच का।
   यही हमारे देश की व्यवस्था है कि जबरा मारे , रोने न दे..?
किसी आला अधिकारी ने ऐसे पालिका कर्मी / इंस्पेक्टर के विरुद्ध कार्रवाई की बात आखिर क्यों नहीं कही। किसी ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि यहाँ के लोग महीनों से जल जमाव के निराकरण के लिये जाली लगाने की बात उठा रहे थें, फिर भी किसी रहनुमा ने ध्यान नहीं दिया।  इस घटना से पखवारे भर पहले भूदेव वाली गली में भी डायरिया इसी दूषित पेयजल से  दर्जन भर से अधिक लोगों को हुआ था। एक वृद्धा तब भी मरी थी। तभ भी खामोश रहें ये पहरूए।
    छोटी दीपावली को ही इस मुहल्ले के वासिंदों ने रहनुमाओं को अगाह किया था कि भटवा की पोखरी वार्ड की मस्जिद वाली गली में सीवर का पानी जमा है। जिससे पाइप लाइनों से जो पेयजल आपूर्ति हो रही है, वह दूषित है। लेकिन हुआ क्या कि दो बाद जेसीबी ने नाले की सफाई के दौरान ऐसा पंच किया कि पेयजल पाइप लाइन क्षतिग्रस्त हो गयी। किसी जिम्मेदार अधिकारी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। हुआ यह कि सीवर का दूषित जल और पेयजल में संगम हो गया । अगले दिन से लोग बीमार पड़ने लगें। जिनकी संख्या सौ के आसपास पहुँच गयी। इनमें से तीन की मौत भी हो गयी।  10 वर्ष का मासूम अरमान सबसे पहले काल के गाल में समा गया। उसके दो भाई- बहन भी डायरिया से पीड़ित थें। उसके सामने की गली में रहने वाली 11 वर्षीया कोमल भी मौत  का निवाला हो गयी। उधर, मंडलीय और निजी चिकित्सालयों में उल्टी- दस्त से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ती ही गयी।
  हमारे देश, प्रदेश और जिले की यही निरंकुश व्यवस्था प्रणाली और उसके गैर जिम्मेदार पालनहार आम आदमी के लिये सबसे बड़े सिरदर्द बने हुये हैं।
      ऐसे हाकिम- हुजूर  न्यायोचित निर्णय नहीं लेते, वरन् स्वयं ही जुगाड़ तंत्र के बिकाऊ माल बन जाते हैं। फिर तो यही होगा ही कि चार - चार जानें चली गयीं  और इसका जिम्मेदार कौन ? इस पर से पर्दा नहीं उठा, तो फिर  किस बात के हाकिम हुजूर है आप ? न्याय की कुर्सी तो इन वरिष्ठ अधिकारियों के पास भी होती है न। फिर भी दोषी कठघरे के बाहर सीना ताने इन निर्दोषों की मौत का उपहास उड़ा रहा है। कुछ ऐसी ही व्यवस्था कमोवेश हर सरकारी विभागों की है, अस्पतालों की है, शिक्षा मंदिरों की है और प्रशासन-पुलिस की भी है ।
   सत्य- असत्य के इस युद्ध में हम सही मार्ग का चयन नहीं कर पा रहे हैं , इसीलिए मिथ्या भाषणकला से समाज को भ्रमित कर वे अपना इंद्रजाल फैलाये हुये हैं। सो, हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम समाज के लिये संघर्ष करे । मीडिया का यह दायित्व है कि वह सच का आइना जनता को दिखलाएं । नगरपालिका के इस इंस्पेक्टर का गैरजिम्मेदाराना  कितना उचित है, इस पर सवाल उठाएँ वह..?
    यदि अपनी पत्रकारिता की बात करूं, तो यह सच है कि कोई अब मुझसे यह नहीं पूछता की आप की डिग्री  क्या है। मेरी खबरों से उन्हें लगता है कि मैं बड़ा ज्ञानी ध्यानी हूँ।  फिर भी मित्रों शिक्षा का अपना महत्व है। पर यह डिग्री लेने वाली कदापि न हो ,ऐसे पुस्तकीय ज्ञान रखने वाले अनेक लोग तो मेरे इर्द गिर्द रोजाना ही गुमराह गलियों में भटकते मिलते हैं । जिन्हें समाज का तारणहार होना चाहिए, वे एक मतलबी घर - संसार के निर्माता बन गये हैं। जातीय- मजहबी द्वंद्व के प्रचारक बन गये हैं। राजनीति के शतरंज पर खिलाड़ी की जगह निर्जीव मोहरे से बने कठपुतली सी नाच रहे हैं। मित्रों, हम कठपुतली हैं जरुर लेकिन नियति के हाथों के , यह हर प्राणियों की विवशता है, फिर भी हम अपने कर्म से उसमें कुछ परिवर्तन निश्चित कर सकते हैं। लेकिन, किसी भ्रष्ट व्यवस्था, भ्रष्ट शासक, भ्रष्ट चिन्तक, धर्माचार्य एवं राजनेता के हाथों की कठपुतली बनना मुझे स्वीकार नहीं। इसके विरुद्ध हमें शंखनाद करना ही होगा , क्योंं कि हमारे हृदय में स्पंदन है, सम्वेदनाएँ हैं और एक सच्चा मानव कहलाने की ललक है। मानवीय भूल से जिनकी दुनिया लुट गयी। उनके लिये अपने मन में उस वेदना को जगह दें , न कि नेत्रों में घड़ियाली आंसू लायें...।
   दीपावली बीत गयी , अब थोड़ा चिन्तन करें कि औरों के घरों को रौशन करने के लिये हमने अपने तन-मन- धन से कुछ किया क्या..। अपने शहर के एक कोने में यह जो मातम है। भ्रष्ट व्यवस्था तंत्र रावण सा अट्टहास कर रहा है  कि
परम स्वतंत्र न सिर पर कोई..।
  कहाँ हैं वे राम जो राज्यभिषेक से पूर्व तपस्वी राम हुये, अधर्म के विरुद्ध संघर्ष कर मर्यादापुरुषोत्तम राम हुये और तब ही मनी थी अयोध्या में दीपावली , वे बने थें राजा राम..।
  यहाँ तो पहले कुर्सी ( सिंहासन) पकड़ की  दौड़ है , जुगाड़ तंत्र का शोर है और फिर तरमाल काटने की होड़ है।
पर यह भी याद रखें ..

     आदमी बुलबुला है पानी का
      क्या भरोसा है ज़िंदगानी का..
   
  आज इस आभासी दुनिया में रेणु दी ने मुझे निश्छल भाव से भाई कह संबोधित किया है और इसी स्नेह ने मुझे यह आत्मबल दिया है कि मैं लेखन कार्य करने के लिये स्वयं को सहज कर पाता हूँ। अन्यथा रिश्तों का यह जो खोल है, उसमें तो बस पोल है।

-शशि


Shashi Gupta जी बधाई हो!,

आपका लेख - (आदमी बुलबुला है पानी का.. )आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 
धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन

5 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा आपने सर
    हम सबको भ्रष्ट व्यवस्था व भ्रष्ट कार्यप्रणाली के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए
    आपके मार्गदर्शन का अवश्य अनुसरण होगा

    ReplyDelete
  2. इस व्यवस्था के लिए लोगों की मौत कोई मायने नहीं रखती. सोचिये मध्य शहर में लोग दूषित पानी पीने से बीमार हो मर जा रहे हैं. कौन सी व्यवस्था काम कर रही है. कोई भी जिम्मेदार नहीं. सब अच्छा-अच्छा चल रहा है देश में.हद हो गई है

    ReplyDelete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  4. प्रिय शशि भाई -- सबसे पहले तो आपके अनमोल स्नेह के लिए निशब्द हूँ | कुछ भी लिखने से इस स्नेह का मोल कम हो जाएगा | आपके लेख में समसायिक सरोकार के साथ जिस मर्मान्तक घटना का जिक्र है वैसी ही घटनाएँ हर शहर में घटती हैं और हर दिन अख़बारों की सुर्खी बनकर तीसरे दिन भुला दी जाती हैं | प्रशासन की छोटी सी गलती और अनगिन लोगों की जान की आफ़त , ये कोई नयी बात नही | पर जो लोग अपनों को गंवाते हैं उनकी वेदना कौन सुने ? सारी उम्र जीकर भी वे अपनों को इतने सस्ते में खोने की पीड़ा के पश्चाताप से मुक्त कब होने वाले हैं ? और उस पर भी घर के नौनिहालों का जाना कितना दुखद है माँ बाप के लिए- ये निष्ठुर प्रशासन क्या जाने ?बहुत ही कडवी सच्चाई से रूबरू करवाया आपने | पढ़कर मन उदास हो गया |

    ReplyDelete
  5. जी रेणु दी
    कोशिश मेरी यह है कि समसमायिक घटनाओं पर लिखा जाए।
    आज उस चौकीदार को पत्थर की जगह चौकी पर सोये देखा, तो मन हर्षित हुआ।
    सभी मित्रों का आभार जो ब्लॉग पर आ प्रतिक्रिया देते रहते हैं।

    ReplyDelete

yes