वेदना से हो अंतिम मिलन
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प्रीत का पुष्प बन न सका
तू कांटों का ताज मुझे दे दो
खुशियों की नहीं चाह मगर
वो दर्द का साज़ मुझे दे दो
न सपनों का संसार मिला
तन्हाई हो वो रात मुझे दे दो
न प्यार मिला न इक़रार मिला
वो ज़ख्म जहां का मुझे दे दो
आंचल का तेरे न छांव मिला
वेदना और संताप मुझे दे दो
न स्नेह की चाहत है तुझसे
वो वैराग्य हमारा मुझे दे दो
यादों में अब ना आया करों
एक और आघात मुझे दे दो
वे न कहें इक भूल हैंं हम
तिरस्कार तुम्हारा मुझे दे दो
कोमल न हो ये हृदय अपना
यह वज्राघात मुझे दे दो
उपहास सहा,अब उपवास सहूं
तृप्त रहूँ, ये स्वांग मुझे दे दो
लूटे हुये अरमानों की कसम
तुलसी-गंगा जल मुझे दे दो
जहाँ फिर न कोई मीत मिले
मरघट सा पावन तीर्थ दे दो
जलती हुई एक चिता हूँ मैं
और भस्म हमारा उसे दे दो
वेदना से हो ये अंतिम मिलन
अब अनंत की राह मुझे दे दो
- व्याकुल पथिक
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-04-2019) को " गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन की ९९ वीं पुण्यतिथि " (चर्चा अंक-3319) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनी
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी प्रणाम।
ReplyDeleteवाह! वेदना का सुंदर गीत, जीवन के दर्शन को समेटे।
ReplyDeleteजी प्रणाम, बहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteआंचल का तेरे न छांव मिला
ReplyDeleteवेदना और संताप मुझे दे दो
वाह!!!
बहुत लाजवाब रचना...
जी प्रणाम, धन्यवाद, आप सदैव उत्साहित करती हैं.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना प्रिय शशि भाई | आकुल व्याकुल मन से रुंधे स्वर हैं वेदना के | खुद को असमर्थ पाती हूँ ऐसी रचना पर लिखने के लिए | लिखते रहिये आपका काव्य लेखन निरंतर भावपूर्ण होता जा रहा है| सस्नेह शुभकामनायें |
ReplyDeleteजी दी, आपका आशीष ही मेरे लिये महत्वपूर्ण हैं। मेरी तनिक भी अभिलाषा नहीं है कि मैं रचनाकार बनूँ, परंतु अपनी अनुभूतियों को शब्द दे सकूँ, सिर्फ इतना चाहता हूँ।
ReplyDeleteआपके स्नेह के लो शब्द ही मेरे लिये प्रयाप्त है। अन्यथा यह दुनिया ऐसी है कि दो दिन तो लोग अपनेपन का प्रदर्शन करते हैं, फिर मन भरते ही,वो कहाँ और हम कहाँ।
प्रणाम।।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत ही भावपूर्ण रचना शशिभैया।
ReplyDeleteबहुत बार आपकी रचनाओं में अपनी वेदना की अभिव्यक्ति पा जाती हूँ। समझ ही नहीं आता इन पर क्या लिखूँ। हाँ, आपकी लेखनी को पढ़ने की उत्सुकता निरंतर बनी रहती है। आप जैसे संवेदनशील हर पत्रकार हो, तो समाज का बहुत भला हो सकता है।
जी मीना दी.
ReplyDeleteमेरे पास आप जैसी लेखनी नहीं है,फिर भी आपको पसंद आया ,यह भाव तो
मेरी "वेदना" सफल हुई।
प्रणाम।
अनंत वेदना का लहराता सागर हिलोरे ले रहा है रचना में रचना मन की पीड़ा की प्रतिछाया बन कर ऊभरी है ।
ReplyDeleteबहुत दर्द भरी हृदय स्पर्शी रचना ।
भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteलूटे हुये अरमानों की कसम
ReplyDeleteतुलसी-गंगा जल मुझे दे दो
जहाँ फिर न कोई मीत मिले
मरघट सा पावन तीर्थ दे दो
जलती हुई एक चिता हूँ मैं
और भस्म हमारा उसे दे दो
वेदना से हो ये अंतिम मिलन
अब अनंत की राह मुझे दे दो
व्याकुलता की सीमा से परे। बेहतरीन लेखन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय व्याकुल जी।
जी प्रणाम भाई साहब
ReplyDeleteवेदना से हो ये अंतिम मिलन
ReplyDeleteअब अनंत की राह मुझे दे दो
प्रशंसा से परे , शब्द नहीं हैं मेरे पास ,अंतर्वेदना की ऐसी अभिव्यक्ति जो हर हृदय में वेदना भर दे शशि जी ,सादर नमस्कार
जी प्रणाम
ReplyDeleteआंचल का तेरे न छांव मिला
ReplyDeleteवेदना और संताप मुझे दे दो
वाह!!!
बहुत लाजवाब रचना... शशि जी
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
वेदना ही जगाती है सच्ची संवेदना, शशि जी । आपकी यह रचना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
ReplyDeleteजी बिल्कुल , प्रवीण भैया।
Deleteआभार।
शशि भाई, मन की वेदना का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया हैं आपने।
ReplyDeleteआभार ज्योति दी
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