न मिले मीत तो...
*********
न कोई मीत मिले तो फ़क़ीरी कर ले
जलती शमा को बुझा के जुदाई सह ले
मिलती नहीं खुशियाँ तन्हाई जब होती
स्याह रातों में ग़मों से फिर दोस्ती कर ले
लोग ऐसे भी हैं उजाले में नहीं दिखते
आज़माएँ उनको भी ग़र अँधेरा कर ले
देके दर्द अपनों को जो वाह-वाह करते
वो अपनी ही निगाहों में कभी गिरते हैं
यतीमों की दुनिया में तू अकेला भी नहीं
राह में जो मिलते हैं वो हमदर्द तो नहीं
आँखें भर आई क्यों इक सहारा ढ़ूंढे ?
है इंसान तो मज़लूमों से दोस्ती कर लें
ख़ुदा के घर देर हो और अंधेर भी सही
ज़ख्म दिल का न भरे पर जिया करते हैं
कैसे समझाऊँ तड़पते नाज़ुक दिल को
उम्मीदों की चिता में यूँ न जला करते हैं
राह वीरान हो मुसाफ़िर तो चला करते हैं
दुनिया के तमाशे में वो न रमा करते हैं
दर्द को यूँ ही सीने में दबाए रख ले
तेरी बिगड़ी है तक़दीर, वे नसीबा वाले ।
- व्याकुल पथिक
*********
न कोई मीत मिले तो फ़क़ीरी कर ले
जलती शमा को बुझा के जुदाई सह ले
मिलती नहीं खुशियाँ तन्हाई जब होती
स्याह रातों में ग़मों से फिर दोस्ती कर ले
लोग ऐसे भी हैं उजाले में नहीं दिखते
आज़माएँ उनको भी ग़र अँधेरा कर ले
देके दर्द अपनों को जो वाह-वाह करते
वो अपनी ही निगाहों में कभी गिरते हैं
यतीमों की दुनिया में तू अकेला भी नहीं
राह में जो मिलते हैं वो हमदर्द तो नहीं
आँखें भर आई क्यों इक सहारा ढ़ूंढे ?
है इंसान तो मज़लूमों से दोस्ती कर लें
ख़ुदा के घर देर हो और अंधेर भी सही
ज़ख्म दिल का न भरे पर जिया करते हैं
कैसे समझाऊँ तड़पते नाज़ुक दिल को
उम्मीदों की चिता में यूँ न जला करते हैं
राह वीरान हो मुसाफ़िर तो चला करते हैं
दुनिया के तमाशे में वो न रमा करते हैं
दर्द को यूँ ही सीने में दबाए रख ले
तेरी बिगड़ी है तक़दीर, वे नसीबा वाले ।
- व्याकुल पथिक
बेहतरीन सृजन प्रिय शशि भाई.... मैं भी अपने कुछ शब्द लिखना चाहुंगी
ReplyDeleteक्यों नसीब का करे इंतज़ार
ईश्वर ने बख़्शी हमें,कर्मों की बहार
कर्म का खिलौना थामा प्रभु ने
मानव प्रतिपल तलाशे नसीब का सहारा
सादर
जी उचित है, प्रणाम।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-05-2019) को "बन्दनवार सजाना होगा" (चर्चा अंक- 3350) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी प्रणाम धन्यवाद।
ReplyDeleteकैसे समझाऊँ तड़पते नाज़ुक दिल को
ReplyDeleteउम्मीदों की चिता में यूँ न जला करते हैं
राह वीरान हो मुसाफ़िर तो चला करते हैं
दुनिया के तमाशे में वो न रमा करते हैं
प्रिय शशि भाई -- खुद से ही कहना , खुद ही खुद को समझाना - यही एक संवेदनशील व्यक्ति की नियति होती है | शायद वो दुनिया को नहीं समझ पाता या दुनिया उसे समझ नहीं पाती | बहुत अच्छा लिखा आपने | व्याकुल मन के भाव मर्मस्पर्शी हैं | हार्दिक शुभकामनायें | माँ शारदे आपको यही आत्म शक्ति प्रदान करती रहे |
जी रेणु दी प्रणाम।
ReplyDeleteलोग ऐसे भी हैं उजाले में नहीं दिखते
ReplyDeleteआज़माएँ उनको भी ग़र अँधेरा कर ले
बहुत खूब .....
जी प्रणाम, धन्यवाद, आभार।
ReplyDeleteराह वीरान हो मुसाफ़िर तो चला करते हैं
ReplyDeleteदुनिया के तमाशे में वो न रमा करते हैं बहुत सुंदर रचना आदरणीय
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteप्रभावशाली रचना
ReplyDeleteआभार श्वेता जी आपका एवं विजय जी
ReplyDeleteअनुराधा जी प्रणाम स्वीकार करें
ReplyDeleteखुद से खुद की बात
ReplyDeleteअच्छी नज़म...
सादर...
जी प्रणाम सर।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना आदरणीय..
ReplyDeleteबड़ेभाई आपके शब्दों का कोई मोल नहीं
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना
ReplyDeleteन कोई मीत मिले तो फ़क़ीरी कर ले
ReplyDeleteजलती शमा को बुझा के जुदाई सह ले
मिलती नहीं खुशियाँ तन्हाई जब होती
स्याह रातों में ग़मों से फिर दोस्ती कर ले
दिल को समझाने का बहुत ही सुंदर अंदाज।
जी आभार आपका , प्रणाम
ReplyDelete