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Friday 7 June 2019

ख़्वाब उजाले की.. !


ख़्वाब उजाले की.. !
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कुछ तो था मुझ में
जो तुमने भरोसा पाया
दोस्त तो और भी थें
पर क्यों मेरे करीब आया ?

उजड़ी हुई दुनिया थी मेरी
और  वो तन्हाई
दर्द फिर भी न था कोई
ना हम आहें भरते ।

लूटे अरमानों के घरौंदे
न  सजाया  करते _
रखते थे ख़्याल मेरा
तब तुम ये कह के ।

जब नहीं चाह थी और
 न हम रोया करते
क्यों उजाले की हसीं
ख़्वाब  दिखाया करते ?

मांगा  तुमसे भी ना था
कुछ हमने तो कभी
बस जुदाई की ये बातें
तुम  ना यूँ  करते  ।

तेरे तो अपने थें बहुत
और मनमीत भी है
मेरी ज़िंदगी में न था कोई
 ए दोस्त इक तेरे सिवा ।

रूठते भी थे तुम तो
 हम  यूँ  मनाया करते
 मानो हो परवरदिगार
तुम  ही  क़िस्मत मेरे !

 जाने क्या हुई भूल जो
 ये सजा फिर से मिली
 ना दोस्ती का ख़्याल रहा
 न आँसुओं पे रहम आया !

यादों  के  मक़बरे  में
जब कभी पाओगे हमें
खिलखिला के झगड़ना
 तुम वही बुद्धू कह के ।

वो ! जाने वाले न ठहर
और क्यों रोकूँ भी तुझे ?
इस अंधेरे में उजाले की
अब न ख़्वाहिश है मुझे ।

बुझते शमा को दिल से
जलाएँ भी क्यों लोग ?
बाजार  में रौशनी की
नुमाइश क्या कम है ??

 दर्द  दिल का फिर ना
  यूँ  अब  बताएँगे  तुझे
 खुशियों भरी महफ़िल हो
 लो  ये दुआ करते है ..!!

  -व्याकुल पथिक
    

10 comments:

  1. बहुत ही सुंदरऔर मार्मिक

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-06-2019) को "धरती का पारा" (चर्चा अंक- 3361) (चर्चा अंक-3305) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. न झूठे ख़्वाब दिखाती, न ख्वाहिशें यूँ खफा होती.
    न दर्द-ए-दिल देता, न तू बेवफा होती...... प्रेम-पथिक के दिल को दहलाती, अकुलाती व्यथा की व्याकुल दास्ताँ!!!

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  4. सुन्दर रचना

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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  6. बुझते शमा को दिल से
    जलाएँ भी क्यों लोग
    बाजार में रौशनी की
    नुमाइश क्या कम है

    दिल की गहराई से निकती आह।
    अप्रतिम भावों का संचरण।

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  7. बहुत सुंदर सृजन ।

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  8. वाह!!बहुत खूब!

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  9. बेहद सुंदर और हृदयस्पर्शी रचना

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  10. बहुत सुंदर शशि भैया, आपकी लेखनी के हर एक शब्द के अक्स से घायल मन और समर्पण की तस्वीर झलक रही है।

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