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Sunday 15 December 2019

ख़ामोश होने से पहले ( जीवन की पाठशाला )

ख़ामोश होने से पहले हमने


देखा है दोस्त, टूटते अरमानों


और दिलों को, सर्द निगाहों को


सिसकियों भरे कंपकपाते लबों को


और फिर उस आखिरी पुकार को


रहम के लिये गिड़गिड़ाते जुबां को


बदले में मिले उस तिरस्कार को


अपनो से दूर एकान्तवास को


गिरते स्वास्थ्य ,भूख और प्यास को


सहा है मैंने , मित्रता के आघात को


पाप-पुण्य के तराजू पे,तौलता खुद को


मौन रह कर भी पुकारा था , तुमको


सिर्फ अपनी निर्दोषता बताने के लिये


सोचा था जन्मदिन पर तुम करोगे याद


ढेरों शुभकामनाओं के मध्य टूटी ये आस

ख़ामोशी बनी मीत,जब कोई न था साथ


दर्द अकेले सहा ,नहीं था कोई आसपास


चलो अच्छा हुआ तुम भी न समझे मुझको


अंधेरे से दोस्ती की ,दीपक जलाऊँ क्यों !!


- व्याकुल पथिक

16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 16 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी गुरु जी आपका हृदय से आभार मंच पर स्थान देने के लिए।

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  3. दर्द अकेले सहा ,नहीं था कोई आसपास
    दुनिया में सब सुख के साथी हैं दुख में साथ बहुत कम लोगों को नसीब होता है ....
    भगवान का प्रिय जब अपनों और रिश्तों में उलझकर रह जाता है तो शायद स्वयं भगवान उसे सबका असली रूप दिखाते हैं ताकि वह निर्मोही होकर प्रभु के चरणों में स्वयं को समर्पित करे...तब प्रभु उसके सारे संताप हर लेते हैं...।ऐसा मेरा मानना है।
    बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना लिखी है आपने शशि जी एकदम दिल को छू गयी।

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    1. जी बहुत-बहुत आभार आपका आपने सही कहा , ईश्वर के प्रति प्रेम ही सच्चा स्नेह होता है, जो निरंतर बढ़ता ही रहता है, शेष लौकिक प्रेम तो चंद्रमा की तरह घटता -बढ़ता रहता है।

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  4. शशि भाई, रचना में वेदना से छटपटाते
    मन की भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। सुहानी यादें ही सहलाती है ,जब कोई अपना दूर चला जाता है, किसी भी कारण से। तो ये दर्द कविता में ढल जाता है। लिखते रहिये,आपबहुत अच्छा लिख रहे है । मेरी शुभकामनायें आपके लिए । 💐💐💐💐

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    1. अच्छा लिखूँँ अथवा खराब ..आप तो सदैव मेरा उत्साहवर्धन प्रारंभ से ही करती आ रही हैं रेणु दी,इसीलिए तो मैं बार-बार आपसे पूछता रहता हूँँ कि यह ठीक लिखा है कि नहीं..।
      प्रणाम

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  5. आपके अंतस में बसे वेदनाओं को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती रचना।

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  6. जी राकेश भैया,
    आपने उचित ही कहा, प्रणाम।

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  7. बहुत ही मार्मिक सृजन आदरणीय शशि भाई
    सादर

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    1. प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से आभार अनिता बहन

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  8. मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीय सर,सुंदर सृजन।
    सादर प्रणाम 🙏 सुप्रभात।

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    1. आपका बहुत-बहुत आभार ,हृदय से धन्यवाद, प्रणाम।

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  9. रिश्ता कैसा भी हो, कहीं भी हो, कोई भी हो, वे हमेशा आपको अनुभव-समृद्ध करते रहते हैं, कुछ आपको सदमे में डालते हैं, कुछ आपको पुलकित कर देते हैं, कुछ आपको सामान्य कर देते हैं, कुछ आपको विचलित कर देते हैं । वस्तुतः जो आपके मस्तिष्क में है, वही आप देखना चाहते हैं, जो आपके हृदय में है, वही आप सुनना चाहते हैं । विपरीत परिस्थितियाँ आपको बेचैन कर देती हैं । आप प्राय: भ्रमित होते रहते हैं । एक सिद्धांत बनाते हैं, फिर वह सिद्धांत टूटता हुआ दिखता है । एक विचार गढ़ते हैं, फिर उसे खंडित होते हुए देखते हैं । आप मौन होने लगते हैं , सावधान होने लगते हैं, आप ख़ुद को बदलते हैं, धीरे-धीरे लोगों से दूर हो जाते हैं । शायद तब आप परिपक्व हो जाते हैं । आपका समग्र उत्साह आपके हृदय में केंद्रित हो जाता है और यही केंद्रीकरण का बिंदु आपको विराट की ओर ले जाता है... यहाँ आप गुमनाम नहीं होते हैं, आप स्वयं से साक्षात्कार करते हैं, जीवन का आनंद खोज लेते हैं और आप वास्तव में पूर्ण हो जाते हैं ....संसार सुंदर दिखाई देने लगता है। मित्र, हमेशा सकारात्मक बने रहिए।

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  10. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।

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    1. अनिल भैया,आपका कथन बिल्कुल उचित है, यही मानव की सबसे बड़ी परीक्षा है..।
      बहुत-बहुत आभार आपका।

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