ख़्वाहिश
****
(जीवन की पाठशाला )
मस्ती भरी दुनिया में, छेड़ो तराना
जो नहीं हैं , उनको भूल जाना ।
था छोटा-सा घर,अब न ठिकाना
मुसाफ़िर हो तुम, बढ़ते ही जाना।
मन की उदासी से,खुद को बहलाना
ग़ैरों की महफ़िल ,खुशियाँ न चाहना।
मिलते है लोग, करके ठिठोली
अपना न कोई , है कैसा जमाना !
राज जो भी हो, दिल में छुपाना
बनके तमाशा, तुम जग को हँसाना।
खुशबू तेरे मन की,जबतक न महके
इस दुनिया से, यूँ वापस न जाना ।
टूटे सपने हो , झूठे सब वादे
ज़ख़्मी जिगर तेरा ,उसे न रुलाना।
देखो जरा तुम , किसने पुकारा
ये ख़्वाहिश है तेरी,या झूठा बहाना !!!
- व्याकुल पथिक
****
(जीवन की पाठशाला )
मस्ती भरी दुनिया में, छेड़ो तराना
जो नहीं हैं , उनको भूल जाना ।
था छोटा-सा घर,अब न ठिकाना
मुसाफ़िर हो तुम, बढ़ते ही जाना।
मन की उदासी से,खुद को बहलाना
ग़ैरों की महफ़िल ,खुशियाँ न चाहना।
मिलते है लोग, करके ठिठोली
अपना न कोई , है कैसा जमाना !
राज जो भी हो, दिल में छुपाना
बनके तमाशा, तुम जग को हँसाना।
खुशबू तेरे मन की,जबतक न महके
इस दुनिया से, यूँ वापस न जाना ।
टूटे सपने हो , झूठे सब वादे
ज़ख़्मी जिगर तेरा ,उसे न रुलाना।
देखो जरा तुम , किसने पुकारा
ये ख़्वाहिश है तेरी,या झूठा बहाना !!!
- व्याकुल पथिक
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 21 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteयशोदा दी
बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय शशि भाई
ReplyDeleteसादर
आभार आपका अनीता बहन।
Deleteवाह... प्रभावी रचना
ReplyDeleteसाधुवाद
जी प्रणाम ,आभार।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-01-2020) को "देश मेरा जान मेरी" (चर्चा अंक - 3588) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चामंच पर स्थान देने केलिए हृदय से आभार गुरुजी।
Deleteजी प्रणाम आभार प्रतिष्ठित ब्लॉग पर मेरी रचना को स्थान देने केलिए।
ReplyDeleteखुशबू तेरे मन की,जबतक न महके
ReplyDeleteइस दुनिया से, यूँ वापस न जाना ।
बहुत मार्मिक ख्वाहिश है शशि भाई। पर रचना बहुत अच्छी 👌👌👌 हार्दिक शुभकामनायें।
आभार दी, प्रणाम।
Deleteसुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteजी आभार धन्यवाद।
Deleteटूटे सपने हो , झूठे सब वादे
ReplyDeleteज़ख़्मी जिगर तेरा ,उसे न रुलाना।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शशी भाई।
जी आभार ज्योति बहन
Deleteवाह!! सुंदर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteजी आभार एवं प्रणाम, उत्साहवर्धन केलिए भी
ReplyDeleteबहुत खूब ,लाज़बाब अभिव्यक्ति ,सादर नमन
ReplyDeleteजी प्रणाम,
Deleteकामिनी जी।
ख्वाहिशों का बहाना अच्छा है !
ReplyDeleteवाह !
जी प्रणाम,धन्यवाद।
Deleteखुशबू तेरे मन की,जबतक न महके
ReplyDeleteइस दुनिया से, यूँ वापस न जाना ।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर...
जी प्रणाम ,आभार।
Deleteजीवन के संघर्ष में अपनों और परायों का पता चल जाता है। इन सबके बाद तो ज़िंदगी रुकती नहीं। चलता रहता है आपकी रचना की तरह कुछ कहते हुए, कुछ करते हुए। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति शशि भाई।
ReplyDeleteजी अनिल भैया,
Deleteआपके विश्लेषण से निरंतर उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन होता है।
आभार दी।
ReplyDelete