भाईचारा
शहर का वातावरण बिल्कुल सामान्य था। सभी अपने दिनचर्या के अनुरूप कार्यों में लगे हुये थे। यहाँ के शांतिप्रिय लोगों के आपसी भाईचारे की सराहना पूरे प्रदेश में थी। बाहरी लोग इस साँझा विरासत को देख आश्चर्यचकित हो कहते थे - "वाह भाई! बहुत खूब ,आपके शहर की इस गंगा- जमुनी संस्कृति को सलाम ।"
और उधर नेताजी इसे लेकर ख़ासे परेशान थे। वे नहीं समझ पा रहे थे कि इतने सुलझे हुये नगरवासियों के मध्य कैसे फूट डाली जाए । उन्हें अपनी राजनीति की रोटी जो सेकनींं थी । अब तो आम चुनाव की आहट भी सुनाई पड़ने लगी थी और हाल यहाँ यह था कि चुनावी लहर नापने वाली मशीन का पारा तनिक भी ऊपर नहीं खिसक रहा था।
सतारूढ़ दल के राजनेता काम बोलता है का जुमला उछाले हुये थे,तो विपक्ष ने इन्हीं कथित विकास कार्यों पर घेराबंदी कर रखी थी, पर वोटर ख़ामोश थे, क्योंकि जनता को किसी ने भी फीलगुड का एहसास नहीं करवाया था । अतः दोनों ही तरफ के राजनेता स्वार्थ भरे प्रेम का गंगाजल छलका कर हार मान चुके थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि पिटे हुये इन पासों से चुनाव में जीत कैसे हासिल करे।
मंत्रणा कक्ष में हितैषियों संग नेताजी सिर झुकाए बैठे हुये थे। और तभी एक कुटिल मुस्कान उनके चेहरे पर आती है। जिसके साथ ही सभा विसर्जित हो जाती है।
***
दो दिन पश्चात एक बड़े धार्मिक समारोह में जुलूस के साथ एक मज़हब के लोग दूसरे संप्रदाय बाहुल्य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। अचानक धार्मिक नारा लगाने वालों के स्वर की तल्खी बढ़ जाती है। कुछ ही देर में पत्थरबाजी और आगजनी भी होने लगती है। जुलूस संग धार्मिक दुर्व्यवहार की ख़बर तेजी से पूरे शहर में फैलती है। युवाओं का एक बड़ा तबका दोनों तरफ से मोर्चा संभालने के लिए सड़कों पर आ डटता है। आपसी भाईचारे पर सीना फुलाने वाले लोग अब हिंदू और मुसलमान में बंटे हुये होते है । जिधर देखो भय की परछाई आंखों में डोल रही थी । दम तोड़ते छटपटाते जिस्मों को देख मानवता चीत्कार कर उठी थी। स्थिति नियंत्रण के लिए कई स्थानों पर उपद्रवियों संग पुलिस का संघर्ष जारी था।
***
और उधर ,नगर के उस प्रसिद्ध कॉफी-हाउस में नेताजी टीवी स्क्रीन पर नज़र टिकाए चुस्कियाँ ले रहे थे। अब उनका काम सचमुच बोल रहा था..।
तभी विपक्षी दल के प्रत्याशी की भी उसी कॉफी-हाउस में एंट्री होती है। जैसे ही दिनों की निगाहें मिली हैं, उनमें आक्रोश के स्थान पर अद्भुत आत्मीयता दिखती है। "भाई साहब " और "भाई जान" के अभिवादन के साथ दोनों एक ही मेज पर आमने-सामने बैठ ठहाका लगा रहे होते हैं। वे कहते हैं - " जनाब ! इस बेवकूफ़ जनता के लिए हम-आप क्यों अपने रिश्ते खराब करे। इलेक्शन कोई जीते ,पर यह कॉफी हाउस वाला हमारा भाईचारा कायम रहना चाहिए ..!"
पर जनता इन दोनों प्रतिद्वंद्वी नेताओं के ख़ामोश भाईचारे से कल भी अंजान थी और आज भी है..!!
-व्याकुल पथिक
चित्रः गूगल से साभार
ऐसा ही है वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य । ये नेता एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं । आम जन मानस को इनके इरादे समझने चाहिये अन्यथा ऐसे ही शोषित होते रहेंगे ।
ReplyDeletePraveen Kumar Sethi आभार प्रवीण भैया, उचित कहा आपने।
Deleteव्यक्ति, परिवार और समुदायों से मिलकर समाज बना हुआ है। इसमें जातियाँ भी हैं और संप्रदाय भी। प्रत्येक की अपनी पृष्ठभूमि है। किसी की पृष्ठभूमि उदारता को लेकर चलती है, तो किसी की पृष्ठभूमि संकीर्णता को लेकर चलती है। घटनाओं का भी प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है। पूर्वाग्रह अपना काम करता है। कोई मुख्यधारा में है, तो कोई हाशिए पर है। श्रेष्ठता और निम्नता का बोध समाज में देखने को मिलता है। अमीरी और ग़रीबी तो अपनी जगह पर है। इन सबके बीच राजनीति के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की प्रक्रिया ज़ारी रहती है। निश्चित रूप से लोकतंत्र जनता को शासन-प्रशासन में हस्तक्षेप करने का एक सुनहरा अवसर देता है।
ReplyDeleteकामनाओं, प्रार्थनाओं और उपलब्धियों से समाज गतिशील रहता है। इसमें कभी अवरोध आता है, तो बेचैनी बढ़ जाती है। इसी बेचैनी को लेकर राजनीतिक दल और उसके कार्यकर्त्ता समाज के सामने अपनी बातें करते रहते हैं। उसे सुनने वाला अपनी पृष्ठभूमि के दायरे में ही सुनता है। उसे लगता है कि हमारी बात नहीं की जा रही है। दमित इच्छाएँ अचानक आंदोलन का रूप ले लेती हैं। आंदोलन की दिशा कभी नकारात्मक होती है, तो कभी सकारात्मक। बहस के दौरान कभी एक को लगता है कि दूसरा उसकी बात नहीं सुन रहा है, न ही समझ रहा है। उत्तेजना में कुछ ऐसी बातें कर जाता है कि सामने वाले को लगता है कि यह व्यक्ति सिर्फ़ अपने समुदाय की बात कर रहा है। ऐसे में सामुदायिक नेता और पार्टियाँ अपना खेल कर जाती हैं। बयानवीरों की बाढ़ आती जाती है। ज़बरदस्त ध्रुवीकरण हो जाता है। ध्रुवीकरण समाज के प्रत्येक हिस्से में होने लगता है। ध्रुवीकरण इसलिए होता है कि हम अंदर से कुछ और बाहर से कुछ और हैं। दोहरा मापदंड और पाखंड इस देश की समस्या है। इससे मुक्त होने की आवश्यकता है। हमें मुक्ति के मार्ग तलाशने होंगे। हमें दूसरों की भी बात सुननी होगी और अपनी भी बात धैर्यपूर्वक बतानी होगी। मनुष्य मूलतः नेक होता है। नेकनियती से भाईचारा हमेशा क़ायम रहता है। शांति और समृद्धि की कामना हमें हिंसा से दूर ले जाती है। हमें नेक लोगों को महत्त्व देना चाहिए। वे चाहे किसी भी वर्ग से आते हों। नेक लोग सामाजिक एकता के मूल्यवान सूत्रधार हैं। बहुत बढ़िया लिखा है शशि भाई। आप तो स्वयं भाईचारा की एक बेहतरीन मिसाल हैं।💖
बहुत सुंदर टिप्पणी अनिल भैया , आपने पूरा खाका खींच दिया है । हर स्थान पर गुण और अवगुण दोनों ही होते हैं। जिसका पलड़ा भारी होता है, वह समाज को प्रभावित करता है।
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
ReplyDelete12 मार्च २०२० को साप्ताहिक अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
आपका अत्यंत आभार एकलव्य जी।
Deleteसादर प्रणाम।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 13 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका बहुत आभार रवींद्र भैया।
Deleteबहुत खूब शशि भाई | सत्तालोलुपता में लीन , राजनीति के माहिर खिलाड़ी कुर्सी के लिए कैसी बिसात बिछाते हैं और उनका भाईचारा कैसा है -- वो बहुत रोचक ढंग से लिखा आपने |इस छद्म भाईचारे की बदौलत देश का असली भाईचारा विलुप्त होने के कगार पर है | सार्थक तंज लिए प्रभावी रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteजी दी उचित कहा आपने।
Deleteइनका यही भाईचारा जनता के गले की फांस बना हुआ है, बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति शशि भाई।
ReplyDeleteजी प्रणाम ,बिल्कुल उचित कहा आपने। जनता तो हमारी पार्टी ,हमारा धर्म और हमारी जाति कह कर लड़ रही है और ये सभी आपस में इसी तरह से गुप्त भाईचारा बनाए हुए हैं।
ReplyDeleteJab koi gambir kary karke
ReplyDeleteJanta ka dil jitne ki liyakat
na ho to yahi totke rah jate
hain,is pravritti ko media se bhi prashray milta hai,
TV debate band hone chahiye communal mamlon ko le kar.janta ko
dene ke liye kuchh ho ya
na ho lene ke liye tajindgi
pension to hai hi.
- अधिदर्शक चतुर्वेदी वरिष्ठ साहित्यकार
शशि भाई,सत्ता पाने के लिए नेता लोग क्या क्या हथकंडे अपनाते हैं, यह आपने बहुत ही रोचक तरीके से बताया हैं।
ReplyDeleteजी आभार ज्योति दी।
Deleteपत्रकार हूँ, अतः नेताओं को करीब से देख रहा हूँ।
कितना परिवर्तन आ गया है इनमें और हममें भी।
" जनाब ! इस बेवकूफ़ जनता के लिए हम-आप क्यों अपने रिश्ते खराब करे। इलेक्शन कोई जीते ,पर यह कॉफी हाउस वाला हमारा भाईचारा कायम रहना चाहिए ..!"
ReplyDeleteसही कहा जनता तो इनकी नजर में हमेशा ही बेवकूफ ही है
बहुत ही सुन्दर सार्थक लेख।
जी , उत्साहवर्धन के लिए आभार।
Deleteसामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteजी भैया जी धन्यवाद।
Deleteवर्तमान परिदृश्य में बिल्कुल फिट बैठती है आपकी कहानी ऐसा ही चल रहा है हम लोग तो बस उनके हाथों की कठपुतली ही रह गए हैं ना जाने और क्या-क्या देखने होंगे ....आप हमेशा समसामयिक विषय को आधार मानकर कहानी या लेख लिखा करते हैं जो वाकई में पढ़ने में बहुत रोचक होती है ऐसे ही लिखा कीजिएगा धन्यवाद और बधाई
ReplyDeleteजी अनु जी इतनी बढ़िया प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार, नमस्कार।
Deleteसार्थक
ReplyDeleteआपका अत्यंत आभार गुरुजी, उत्साहवर्धन के लिए प्रणाम।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१५-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१२ "भाईचारा"(चर्चा अंक -३६४१) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
मंच पर स्थान देने के लिए आपका आभार अनीता बहन।
Deleteशशी भाई ।
ReplyDeleteपत्थर के खुदा, पत्थर के सनम पत्थर के इंसा पाये हैं। आप कहते हैं मुहब्बत - ए - शहर, हम जान बचा के आये हैं।
-श्री राजेंद्र तिवारी शिक्षक नेता एवं पत्रकार।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteराजनीति के भाईचारे पर लाज़बाब व्यंग ,सादर नमन
ReplyDeleteआपका अत्यंत आभार।
Deleteआदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाओं के अंतर्गत नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' २५ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/03/blog-post_25.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'