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Saturday 7 April 2018

व्याकुल पथिक 7/4/18

आत्मकथा

    पत्रकारिता में विद्वत्ता ही प्रमुख पहचान नहीं होती है। सवाल यह बना रहता है कि हम किसके लिये लिखते हैं, क्या लिखते हैं और कितना लिखते हैं। यदि हम लोभ में आकर चाटूकारिता भरी पत्रकारिता करेंगे, तो भले ही कितनी भी बड़ी बड़ी डिग्री क्यों न लिये हो, पोल खुलना तय है। यह पब्लिक है न जो, वह सब जानती है। अब देखें न तमाम इलेक्ट्रॉनिक चैनल हैं  और उसके पत्रकार भी। लेकिन आम आदमी का सुपरस्टार कौन हैं, इस क्षेत्र में, तो नाम रवीश कुमार का स्वतः ही जुबां पर आ जाएगा। समयाभाव के कारण मैं टेलीविजन तो नहीं देख पाता। फिर भी स्क्रीन पर पांच -सात बार रवीश कुमार को खास अंदाज में जनहित के मुद्दे उठाते देखा हूं। बढ़िया लगा। नहीं तो सलमान-सलमान के शोर में पूरे दिन टीवी बुक ही रहा। लेकिन समाज को क्या संदेश मिला। मेरे एक अनुज जो विंध्याचल क्षेत्र के हैं, को मेरी सादगी भरी पत्रकारिता पसंद है। उनका कहना रहा कि आपके ही तरह  बनना चाहता हूं। तो मेरा उनसे यही कहना है कि लेखनी का उपयोग उन लोगों के लिये न करें, जिन्होंने समाज की व्यवस्था को चोट पहुंचाई हो। भले ही वे अपने बाहुबल, जातिबल और धनबल से स्टार बन गये हो। लगदक खादी पहन कर लग्जरी गाड़ियों के काफिले से निकल रहे हों। माननीय भी बन गये हो। फिर भी पहचान उनकी नहीं बदल सकती, न ही सोच ही । भले ही भय और स्वार्थ से लोग उनके सामने नतमस्तक होते हैं। इस जनपद में ऐसे अनेक बाहुबलि सफेदपोश बन कर आयें। परन्तु मैंने अपनी कलम से उनका महिमामंडन नहीं किया। यदि किसी को विज्ञापन देना था, तो उसका पेज अलग था। उसके साथ वह अपनी सामग्री भले ही प्रकाशित करवा ले। परंतु मैं अपनी कलम से तभी कुछ लिखूंगा, जब आप कुछ अच्छा करें। और जो लिखूंगा वह भी ऐसे लोगों के पुराने इतिहास को ध्यान में रखकर। इसी कारण तो समाज में मेरी पहचान पत्रकारिता जगत में अलग रही। आखिर हम पत्रकार क्या संदेश देना चाहते हैं , अपनी लेखनी से ऐसे दागदार राजनेताओं को जन नायक बना कर। बड़ा कठिन डगर है एक खाटी पत्रकार की , मेरे भाई। तमाम अपराधों में लिप्त गुंडों, अवैध कारोबार से जुड़े लोगों को यदि आप समाजसेवी बता देंगे, अखबार के अपने कालम में, तो फिर क्या खाक पत्रकारिता में अपनी पहचान बनाएंगे। सो, जब तक अखबार है, चैनल है तभी तक जनता में आपकी पहचान रहेगी। उसके बाद आपका पर्दे के पीछे वाला पत्रकार धर्म लोगों को याद रहेगा। इसीलिए मित्रों यदि  पत्रकार  बनना है, तो लोभ, चाटूकारिता और जुगाड़ वाला लेखन तो छोड़ना ही पड़ेगा । चाहे परिणाम उसका कुछ भी हो।अतः पत्रकार यह आत्मावलोकन करते रहें कि आमजन के हित में कितने कालम की खबर सप्ताह -पखवाड़े भर में लिखते हैं। और पत्रकार धर्म क्या यह कहता है कि हम अपना अधिकांंश समय किसी वरिष्ठ अधिकारी को पटा कर अधिनस्थ कर्मचारियों को मनचाहे स्थान पर तैनाती दिलवाने में जाया करें ? या जिसने हमारी इच्छा की पूर्ति नहीं की हम उनकी शिकायत करते रहें। सो, मित्रों पत्रकारों का मंच सजाना और बात है, लेकिन एक पत्रकार के रुप में पहचान बनाना हंसी खेल नहीं है। किसी वरिष्ठ अधिकारी को खुश करने के लिये हम कलम तोड़ लेखनी चलाएंगे, तो यह जनता बेवकूफ तो है नहीं। मैं किसी को कठघरे में खड़ा करने के लिये यह सब नहीं लिख रहा हूं । हां यदि पत्रकार कहलाना है, तो इन सभी लोभ से ऊपर उठना ही होगा । ऐसा मैंने करने का प्रयास किया, तभी आज अखबार बांटने के बावजूद भी अपने क्षेत्र में  कुछ तो अलग पहचान रखता ही हूं। सो, कुछ पाया है, तो बहुत कुछ खोया भी। लक्ष्य हासिल करने के लिये त्यग करना ही पड़ता है। अब आप ठेकेदार, कोटेदार ,सरकारी मास्टर, राजनेता, व्यापारी भी हैं और पत्रकार भी हो जाना चाहते हैं , तो दो नाव की सवारी भला कैसे करोंगे... (शशि)

क्रमशः

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