Followers

Thursday 31 May 2018

पत्रकारिता दिवसःयह मेरा घर वह तेरा घर

इस बार यहां पत्रकारिता दिवस काफी कड़ुवाहट भरे दौर से गुजरा। अभी भी सोशल मीडिया पर धुंवाधार वाक्य युद्ध जारी है। विचित्र विडंबना है हम पत्रकारों की भी की राजनैतिक दलों की तरह अपनी अपनी पार्टी बना झगड़ते रहते हैं। वैसे तो जहां भी एक से अधिक प्रबुद्ध लोग होते हैं, आपसी एकता की गुंजाइश कम ही होती है, क्यों कि निःस्वार्थ भाव में कमी आ जाती है और अपने  हित में स्वार्थ भाव प्रबल होता जाता है। धर्म, जाति, परिवार , संगठन, समाज, मठ मंदिर सभी जगह विवाद के केंद्र में यह प्रबुद्ध प्राणी ही रहता है। जहां तक मेरा सवाल है , तो मुझे ऐसा कोई बड़ा पत्रकार संगठन स्वीकार नहीं, जहां मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुंचे।।पत्रकारिता में यहां आज जो भी पहचान है,वह मेरे परिश्रम  का परिणाम है।  न कोई मेरा गॉड फादर था और ना ही ऐसा कोई पत्रकार मंच , जो मुझे आगे बढ़ने में सहयोग किया हो अथवा में संकट में काम आया हो। पर पाठकों और गैर पत्रकार मित्रों ने का भरपूर सहयोग एवं स्नेह मिला। खैर , वर्ष में एक बार 30 मई को यहां पत्रकार संगठनों में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर ऐसा होना कोई बुरा भी नहीं है। जो युवा पत्रकार है, उन्हें यदि वरिष्ठ पत्रकार उनका हक अधिकार नहीं देंगे तो, तो वे अपने पराक्रम का प्रदर्शन निश्चित ही करेंगे। यही प्रकृति का नियम है। कभी बंदरों की लड़ाई आपने देखी है... इस जंग में जो युवा बंदर होता है, वह अंततः विजयी होता है और सारी बंदरियों की टोली उसके पास चली आती है। यहां पत्रकार संगठनों में भी इसी प्रकार की लड़ाई चलती रहती है। अब देखें न वर्षों बीत गये हैं, लेकिन पत्रकार भवन को लेकर आपसी सहमति तक नहीं बन पा रही है। पैसा आकर पड़ा है। जनप्रतिनिधि सहयोग को तैयार है। फिर भी पत्रकार भवन बनने से पहले ही उस पर वर्चस्व को लेकर जगहंसाई हो रही है, इस जनपद के पत्रकारों की। पुलिस और प्रशासन भी  तो यही चाहता है कि पत्रकार कभी एक न हो ! खैर यह मेरी व्यक्तिगत समस्या नहीं है, क्यों कि किसी अधिकारी और नेता को सलाम करने की फुर्सत नहीं है मेरे पास। जो अपनी पहचान इन्हें बताने  को लेकर व्याकुल रहूं। पहले एक दौर था कि हमलोग अधिकारियों से मिलने बिन बुलाये मेहमान की तरह नहीं पहुंच जाते थें, हमारी लेखनी बिन मुलाकात के ही हमारी पहचान आला अफसरों को बता देती थी। अधिकारी समाचार पढ़ कर समझ जाते थें कि किस पत्र प्रतिनिधि में कितना दम है। पर आज का दौर जो है , उसमें पत्रकार अफसरों से यह कहा करता है कि ये साहब ! कुछ छुटने न पाये , तनिक ध्यान रखिएगा।  विज्ञापन एवं खबरों के बोझ के कारण पत्रकारों का सिर अधिकारियों और राजनेताओं के दरबार पहले की तरह अब कहां तना रहता है। अब जब दिन भर संस्थान के लिये पत्रकार हाथ फैला रहा है, तो अपना भी तो घर परिवार है उसका। बिन लक्ष्मी के भला गृहलक्ष्मी कैसे सम्मान देगीं अपने पतिदेव पत्रकार महोदय का, जरा विचार करें !
   बता दूं कि  पत्रकार सम्मान कार्यक्रम में सबसे पहले मुझे बुलाने पर कुछ पत्रकारों को बुरा लगा, इतना तो समझ में आया। लेकिन हमारे घनिष्ठ मित्र कामरेड  मो0 सलीम भाई का कुछ और ही सवाल मुझसे था!
              उन्हें ऐसा लगा कि शशि भाई ने यह सम्मान कैसे स्वीकार कर लिया, जहां दागदार सफेदपोश भी हो। दरअसल,  एक आदर्श पत्रकार के रुप में मित्रों के बीच में मैं जो अपनी पहचान रखता हूं। सो, मुझे उन्हें सफाई देनी पड़ी।
 मैंने बताया कि भले ही ऐसे सफेदपोश मौजूद रहे हो , परंतु सम्मान चिन्ह तो जिलाधिकारी से ही लिया  न भाई । और यह सब मान सम्मान मेरे लिये अब इस उम्र में बेमानी है। हां, मेरी तमन्ना एक यह है कि किसी विशेष मंच से  श्रेष्ठ समाचार पत्र विक्रेता का  सम्मान मुझे एक बार मिले! मेरा सबसे अधिक परिश्रम भरा हॉकर वाला पहचान इस पत्रकारिता के भुलभुलैया में खो गया है।
 वैसे, मैं तो पत्रकारिता दिवस को पत्रकारों का मछली बाजार नहीं कहना चाहता।पर इस एक दिन की भाषणबाजी में भी यह मुद्दा प्रमुख नहीं होता कि सुबह आंख खुलने से लेकर देर रात बिस्तरे पर जाने तक काम करने वाले पत्रकारों को कुछ तो उचित वेतन मिलनी चाहिए, ताकि बीबी ताना न मारे घर पर...
(शशि)

2 comments:

  1. आदरणीय शशी भाई -- आपके जरिये पत्रकारिता की कई अनसुनी बातों से वाकिफ हो रहे हैं हम | सचमुच आज पत्रकारिता एक संघर्ष से कम नही | ये एक जूनून है | प्रिंट मीडिया में और भी जीवट चाहिए | फिर भी जनता के लिए खबरें जुटाने वाले समर्पित पत्तरकारों को सलाम | और आप अपने हाकर वाली जॉब को इतना सम्मान देते है ये बहुत बड़ी बात है | आप पत्रकार के साथ अखबार बाँटने के काम को इतना सम्मान दिया |सचमुच ये काम बहुत चुनौती पूर्ण और मुश्किल भी है |अपने काम को सम्मानित कर आप खुद सम्मानित हो गये हैं | लोगों का प्यार भी किसी सम्मान से कम नहीं | बहुत अच्छा लिखा आपने | सस्नेह --

    ReplyDelete
  2. जी धन्यवाद रेणु दी जो आप मेरे हर पोस्ट को पढ़ती भी हैं और उस पर अपना विचार भी रखती है। हॉकरों को मैं सदैव ही यह पैगाम देना चाहता हूं कि वे भी एक पत्रकार बन सकते हैं। मैं चाहता तो कब का अखबार बांटना छोड़ बड़े अखबार की नौकरी कर लेता। हो, सकता था कि अब तक उप सम्पादक भी कहीं बन गया होता।

    ReplyDelete

yes