नजरों में कैसी समायी ये दुनिया
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नजरों में कैसी समायी ये दुनिया
पलकें उठा कर बिजली गिराती
उमड़ते अरमानों को है जलाती
निगाहों में यादें बसाती ये दुनिया
इंसानों को ठगती ,हैवानों को भाती
अपनी सी लगती ,मगर गैर होती
निगाहों में जिसके नहीं है ठिकाना
उम्मीदों के दीपक जलाती बुझाती
रिश्तों में उलझा - सताती ये दुनिया
किस्तों में दिलको जलाती ये दुनिया
ये सिक्के और पायलों की खनखन
बहका के क्यों बहलाती ये दुनिया
किसी को हँसी दे रुलाती है दुनिया
नजरों में उठा के गिराती है दुनिया
वफाओं को निगाहों से गिरा के
कातिलों सी मुस्काती ये दुनिया
सिसकती है यादें सताती है दुनिया
हँसी लबों की चुराती ये दुनिया
पनाहों में लेकर - ठोकर क्यों देती
किसी को बसंत किसी को सर्द देती
मुहब्बत का पैगाम सुनाती ये दुनिया
चिता फिर उसकी सजाती ये दुनिया
बुझी राख को सहलाती ये दुनिया
नजरों में कैसी समायी ये दुनिया
अपने ये जो आँसू खिलते कमल हैं
इसे न सूखा दो ये प्यारी सी दुनिया।
-व्याकुल पथिक
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नजरों में कैसी समायी ये दुनिया
पलकें उठा कर बिजली गिराती
निगाहों में यादें बसाती ये दुनिया
इंसानों को ठगती ,हैवानों को भाती
अपनी सी लगती ,मगर गैर होती
निगाहों में जिसके नहीं है ठिकाना
उम्मीदों के दीपक जलाती बुझाती
रिश्तों में उलझा - सताती ये दुनिया
किस्तों में दिलको जलाती ये दुनिया
ये सिक्के और पायलों की खनखन
बहका के क्यों बहलाती ये दुनिया
किसी को हँसी दे रुलाती है दुनिया
नजरों में उठा के गिराती है दुनिया
कातिलों सी मुस्काती ये दुनिया
सिसकती है यादें सताती है दुनिया
हँसी लबों की चुराती ये दुनिया
पनाहों में लेकर - ठोकर क्यों देती
किसी को बसंत किसी को सर्द देती
मुहब्बत का पैगाम सुनाती ये दुनिया
चिता फिर उसकी सजाती ये दुनिया
बुझी राख को सहलाती ये दुनिया
नजरों में कैसी समायी ये दुनिया
अपने ये जो आँसू खिलते कमल हैं
इसे न सूखा दो ये प्यारी सी दुनिया।
-व्याकुल पथिक
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-02-2019) को "तम्बाकू दो त्याग" (चर्चा अंक-3243) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी धन्यवाद शास्त्री सर ।
ReplyDeleteव्वाह...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
दिलखुश
सादर
बेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteजी प्रणाम यशोदा दी ।
ReplyDeleteअनुराधा जी आपकों भी ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
११ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह बहुत दमदार काव्यात्मक अभिव्यक्ति भाई आपकी बहुत ही शानदार तरीके से बयान किया नजर के हर रूप को।
ReplyDeleteसुंदर रचना ।
जी प्रणाम
ReplyDeleteअपने ये जो आँसू खिलते कमल हैं
ReplyDeleteइसे न सूखा दो ये प्यारी सी दुनिया।
बहुत ही सुंदर पक्ति...
धन्यवाद
ReplyDeleteकामिनी जी,
आप सदैव ब्लॉग पर आती हैं।
बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDeleteवाह!!!!
जी प्रणाम।
ReplyDeleteकविता तो मुझे आती नहीं,मन का एक भाव है। उत्साहवर्धन के लिये आपके ये शब्द मेरे लिये अमूल्य हैं। प्रणाम।
वाह !!बेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteसादर
जी प्रणाम
ReplyDeleteरिश्तों में उलझा - सताती ये दुनिया
ReplyDeleteकिस्तों में दिलको जलाती ये दुनिया
ये सिक्के और पायलों की खनखन
बहका के क्यों बहलाती ये दुनिया !!!!!!!!
शब्द- शब्द मन की वेदना बही है रचना के रूप में शशी भैया | साहित्य की काव्य विधा में लेखन आपको मुबारक हो |लिखते रहिये मेरी शुभकामनायें आपके साथ रहेंगी |
जी प्रणाम दी
ReplyDeleteआपके कवि रूप से आज वाकिफ हुआ.
ReplyDeleteधन्यवाद सलीम भाई
ReplyDeleteबस मन का भाव है यह