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Wednesday 13 February 2019

है कैसी जुदाई...

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सर्द निगाहों से   दिल ने पुकारा
कहाँ है वो श्वेत वस्त्र तुम्हारा ?
उठेगी डोली बजेगी शहनाई-
मिलन की रात,है कैसी जुदाई ?

   उठा   बचपन में साया किसी का
  दुल्हन के जैसे अर्थी सजी थी   ;
आँखों में आँसू,नहीं थें वो सपने-
  मिलन की राह, है कैसी जुदाई ?

    तरसती जवानी बहकती निगाहें-
    मिले  संगी - साथी - हुये वो पराये;
    तन्हाई मिली है  गुजरा जमाना-
    यादों की बारात , है कैसी जुदाई ?


भटकती रूहों को है पास आना ,
आंचल तुम्हारा है वो आशियाना ;
पथिक का नहीं है कोई ठिकाना-
मिलन की चाहत,है कैसी जुदाई?

    उखड़ती सांसें वो - तरसी  निगाहें-
    तुम्हें पुकारे जो बहे अश्रुधारा ;
    अगन जला, है अनंत में समाना
    बसंत की  आस, है कैसी   जुदाई ?

(व्याकुल पथिक)

13 comments:

  1. उखड़ती सांसें वो - तरसी निगाहें-
    तुम्हें पुकारे जो बहे अश्रुधारा ;
    अगन जला, है अनंत में समाना
    बसंत की आस, है कैसी जुदाई ?...
    संजीदा लेखन, बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।

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  2. जी प्रणाम,
    प्रयास कर रहा हूँ, दर्द को साज दे सकूं।

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  3. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 16 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. जी प्रणाम यशोदा दी, थोड़ा अधिक ही उत्साहित हो रहा हूँ।

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-02-2019) को “प्रेम सप्ताह का अंत" (चर्चा अंक-3248) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. धन्यवाद शास्त्री सर जी

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  7. आत्म वेदना का सुरीला सरगम।

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  8. धन्यवाद भाई साहब।

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  9. उखड़ती सांसें वो - तरसी निगाहें-
    तुम्हें पुकारे जो बहे अश्रुधारा ;
    अगन जला, है अनंत में समाना
    बसंत की आस, है कैसी जुदाई ?
    प्रिय शशि भाई -- मन की वेदना शब्द शब्द बह चली पर एक सोया कवि जग पड़ा | घनीभूत पीड़ा को बहुत ही सरलता और सहजता से मुखरित कियाआपने | आपके कवि रूप का स्वागत है | इस विधा में भी खुद को आजमाइए | मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं |

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  10. भटकती रूहों को है पास आना ,
    आंचल तुम्हारा है वो आशियाना ;
    पथिक का नहीं है कोई ठिकाना-
    मिलन की चाहत,है कैसी जुदाई?
    लाजबाब ,बेहद मार्मिक हर एक शब्द ,सादर नमन आप को

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  11. प्रिय शशि दर्द को महसूस करना,दर्द को झेलना,दर्द को लिखना,दर्द की अभिव्यक्ति करना,दर्द को दिल में रखना एक कला है।लेकिन सभी दर्दो को कविता में पिरोना बहुत कठिन है।आप इसमें सफल रहे।प्रयास जारी रखें हर बार






    रखना आसान है।लेकिन सभी दर्दो को एक

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yes