संत रविदास जी
की
जयंती पर
नमन एवं वंदन
*************
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मंजिल ढ़ूंढे, दर-दर भटके ;
पथिक , कहाँ तुझे जाना ।
है तेरा कौन ठिकाना ?
दे हृदय पर ताला ।
आयो बसंत, फुले पलाश;
जगमग हुआ मधुशाला ।
पथिक, तू न प्रेम बढ़ाना ;
दे हृदय पर ताला ।
प्रीति की रीति न जाने कोई;
बनिये सा व्यापार नहीं होई।
पथिक , फिर ना पछताना;
दे हृदय पर ताला।
हँसी-ठिठोली करे जो सखियाँ;
पथिक , ना तू भरमाना ।
तुझे साजन संग है जाना;
दे हृदय पर ताला ।
फगुवा बहे, हिय जब झुलसे ;
जेठ से प्यास बुझाना ।
पथिक , ना तू घबड़ाना;
दे हृदय पर ताला ।
होनी करे, सब खेल निराला;
माटी का पुतला जग सारा ।
पथिक, फिर काहे पछताना;
दे हृदय पर ताला।
प्रेम नगर का ठौर ठिकाना;
तुझे पता जहाँ है जाना ।
धीरज रख ,मन बहलाना;
दे हृदय पर ताला।
सतगुरु मिले जान न पाया;
माया ने तुझको भटकाया ।
पथिक ,अब न नाच दिखाना;
दे हृदय पर ताला।
जग भोगी, तू जोग में हुलसे ;
न मंदिर , ना मस्जिद जाना ।
पथिक !किसका है तू दीवाना;
दे हृदय पर ताला।
जाग पथिक, मिलेंगे प्रियतम ;
हिय कठोती,ज्यों गंग समाना।
सतनाम का अलख जगाना;
खोल हृदय का ताला ।
-व्याकुल पथिक
की
जयंती पर
नमन एवं वंदन
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मंजिल ढ़ूंढे, दर-दर भटके ;
पथिक , कहाँ तुझे जाना ।
है तेरा कौन ठिकाना ?
दे हृदय पर ताला ।
आयो बसंत, फुले पलाश;
जगमग हुआ मधुशाला ।
पथिक, तू न प्रेम बढ़ाना ;
दे हृदय पर ताला ।
प्रीति की रीति न जाने कोई;
बनिये सा व्यापार नहीं होई।
पथिक , फिर ना पछताना;
दे हृदय पर ताला।
हँसी-ठिठोली करे जो सखियाँ;
पथिक , ना तू भरमाना ।
तुझे साजन संग है जाना;
दे हृदय पर ताला ।
फगुवा बहे, हिय जब झुलसे ;
जेठ से प्यास बुझाना ।
पथिक , ना तू घबड़ाना;
दे हृदय पर ताला ।
होनी करे, सब खेल निराला;
माटी का पुतला जग सारा ।
पथिक, फिर काहे पछताना;
दे हृदय पर ताला।
प्रेम नगर का ठौर ठिकाना;
तुझे पता जहाँ है जाना ।
धीरज रख ,मन बहलाना;
दे हृदय पर ताला।
सतगुरु मिले जान न पाया;
माया ने तुझको भटकाया ।
पथिक ,अब न नाच दिखाना;
दे हृदय पर ताला।
जग भोगी, तू जोग में हुलसे ;
न मंदिर , ना मस्जिद जाना ।
पथिक !किसका है तू दीवाना;
दे हृदय पर ताला।
जाग पथिक, मिलेंगे प्रियतम ;
हिय कठोती,ज्यों गंग समाना।
सतनाम का अलख जगाना;
खोल हृदय का ताला ।
-व्याकुल पथिक
जाग पथिक, मिलेंगे प्रियतम ;
ReplyDeleteहिय कठोती,ज्यों गंग समाना।
सतनाम का अलख जगाना;
खोल हृदय का ताला ।.... बहुत सुंदर
जी प्रणाम
ReplyDeleteप्रीति की रीति न जाने कोई;
ReplyDeleteबनिये सा व्यापार नहीं होई।
पथिक , फिर ना पछताना;
दे हृदय पर ताला।.....बेहतरीन रचना आदरणीय |
सर सुना है G+बंद हो जायेगा | काफ़ी दोस्त fb पर नज़र आये |पर आप कहीं नज़र नहीं आये | भविष्य में भी आप का सानिध्य प्राप्त हो |आप की fb id किस नाम से है |
सादर
सतगुरु मिले जान न पाया;
ReplyDeleteमाया ने तुझको भटकाया ।
पथिक ,अब न नाच दिखाना;
दे हृदय पर ताला।
बहुत ही सारगर्भित और भावपूर्ण अध्यात्मिक रचना प्रिय शशि भैया | मन के कपाट खोल कर देखें तो ये जीवन के मृगतृष्णा सरीखा ही तो है | मन के द्वार खोलना ही तो जीवन की सार्थकता है | संत रविदास जी ने भी इसी प्रकार दुनिया का मार्गदर्शन किया | कृष्ण की अनन्य आराधिका मीरा बाई भी रैदास जी को गुरु रूप में पाकर परम धन्य हुई | सादर -- सस्नेह शुभकामनाये आपको पुण्य पुरुष रविदास जी की जयंती पर |
जी दी प्रणाम।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर काव्य रचना ... जीवन दर्शन के भाव से ओत-प्रोत ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार भाई साहब।
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