न जलाओ दीपक , न दो मुझे सलामी !
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वतन के लिये ,कफन हमने बांधा ;
थी चाहत अपनी, दुश्मनों को मिटाना।
लड़ के मरे हम ,हो प्रताप तुम्हारा;
संगीन पर हो , तब मस्तक हमारा।
राणा के वंशज, वो झांसी की रानी;
वीरों सा सीना, गरजती थी वाणी ।
चले थें घर से , ये तमन्ना लिये हम;
दुश्मन जो ताकें , लाहौर हो हमारा ।
अर्थी सजी हो,तब लोग ये पुकारे;
देखों बन ,अब्दुल हमीद घर आया।
टूटी चूड़ियाँ ,जब खनकने लगे ;
कहे ,गीदड़ों को मार तेरा वीर आया।
प्रेम -दिवस तब , हुंकार करे सब ;
कहे मत रो , हो शहीद लौट आया।
माता का आंचल , पुकार करे जब ;
कहे लाल तेरा ,वो वतन में समाया ।
बूढ़े पिता की , है लाठी जो टूटी ;
कहे लाल तेरा , हो अमर घर आया।
कलाई पर बंधा, है धागा जो टूटा;
कहे भाई तेरा , हुआ सबको प्यारा।
बेटा बुलाएँ, है पिचकारी जो टूटी;
कहे बाप तेरा , अब होली में समाया।
पर मुझे यूँ मरना , तुझे है सिसकना;
बता कैसे चुकाऊँ ,माँ भारती कर्ज तेरा।
वो कत्ल करें , हम शीश बढ़ाएँ ;
बता कैसे निभाएँ , माँ भारती फ़र्ज़ तेरा ।
ये मजमा लगा है, जयचंदों का कैसा ;
न जलाओ दीपक , न दो मुझे सलामी।
-व्याकुल पथिक
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वतन के लिये ,कफन हमने बांधा ;
थी चाहत अपनी, दुश्मनों को मिटाना।
लड़ के मरे हम ,हो प्रताप तुम्हारा;
संगीन पर हो , तब मस्तक हमारा।
राणा के वंशज, वो झांसी की रानी;
वीरों सा सीना, गरजती थी वाणी ।
चले थें घर से , ये तमन्ना लिये हम;
दुश्मन जो ताकें , लाहौर हो हमारा ।
अर्थी सजी हो,तब लोग ये पुकारे;
देखों बन ,अब्दुल हमीद घर आया।
टूटी चूड़ियाँ ,जब खनकने लगे ;
कहे ,गीदड़ों को मार तेरा वीर आया।
प्रेम -दिवस तब , हुंकार करे सब ;
कहे मत रो , हो शहीद लौट आया।
माता का आंचल , पुकार करे जब ;
कहे लाल तेरा ,वो वतन में समाया ।
बूढ़े पिता की , है लाठी जो टूटी ;
कहे लाल तेरा , हो अमर घर आया।
कलाई पर बंधा, है धागा जो टूटा;
कहे भाई तेरा , हुआ सबको प्यारा।
बेटा बुलाएँ, है पिचकारी जो टूटी;
कहे बाप तेरा , अब होली में समाया।
पर मुझे यूँ मरना , तुझे है सिसकना;
बता कैसे चुकाऊँ ,माँ भारती कर्ज तेरा।
वो कत्ल करें , हम शीश बढ़ाएँ ;
बता कैसे निभाएँ , माँ भारती फ़र्ज़ तेरा ।
ये मजमा लगा है, जयचंदों का कैसा ;
न जलाओ दीपक , न दो मुझे सलामी।
-व्याकुल पथिक
ये मजमा लगा है, जयचंदों का कैसा ;
ReplyDeleteन जलाओ दीपक , न दो मुझे सलामी।
जब अपने ही घर में छुपे जयचंद हो तो क्या कहे ,सत सत नमन हैं वीरो को ,हम उन्हें सिर्फ अश्रुरूपी श्रधांजलि ही दे सकते हैं।
जी सही कहा आपने कामिनी जी प्रणाम।
ReplyDeleteदुखद। जयचंदों को चुन चुनकर देश से निकालिए, फिर सलामी दीजिए।
ReplyDeleteजी भाई साहब, प्रणाम
ReplyDeleteवो कत्ल करें , हम शीश बढ़ाएँ ;
ReplyDeleteबता कैसे निभाएँ , माँ भारती फ़र्ज़ तेरा ।
ये मजमा लगा है, जयचंदों का कैसा ;
न जलाओ दीपक , न दो मुझे सलामी।....सही कहा आदरणीय |क़लम को तोड़ डालो आदरणीय नेताओं को और राजनीति मत करने दो |किसी का बेटा किसी का पिता और किसी का सुहाग मत लुटाओं |क़लम की ताकत बतानी है
यही वीर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है |नमन
सादर
जी ,कुछ भी तो नहीं हो रहा सिर्फ विधवा विलाप के।
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा, प्रणाम।
सच है जब तक ये जयचंद हैं देश में ... कुर्बानियों का दौर जारी रहेगा ...
ReplyDeleteशर्म की बात है हर हिन्दुस्तानी के लिए ...
दिल रोता है वीर सैनिकों के लिए ... नमन है मेरा ...
जी बिल्कुल भाई साहब,
ReplyDeleteघर के भेदी और निकम्मी राजनीति।
प्रणाम।
ये मजमा लगा है, जयचंदों का कैसा ;
ReplyDeleteन जलाओ दीपक , न दो मुझे सलामी।
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय शशि भैया | इन देश के गद्दारों के कारण राष्ट्र अपने ही घर में हारा है |कथित अपनों के ये छल बहुत ही घातक होते हैं |अगर ये जयचंद पहचाने जाएँ तो इनका नामोनिशान दुनिया से मिटने से कोई नहीं रोक सकता | परिवार की वेदना शब्दों में नहीं समा पाती | वीर शहीदों के लिए बस नमन और वन्दन |
जी रेणु दी।
ReplyDeleteनमन वंदन
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति
जी प्रणाम।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-02-2019) को "कश्मीर सेना के हवाले हो" (चर्चा अंक-3252) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री सर।
ReplyDeleteये मजमा लगा है, जयचंदों का कैसा ;
ReplyDeleteन जलाओ दीपक , न दो मुझे सलामी।
दुखद है जयचंदों का होना , हर्दय्स्पर्शी अभिव्यक्ति
हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteजी प्रणाम
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आइये बनें हम भी सैनिक परिवार का हिस्सा : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteधन्यवाद भाई साहब।
ReplyDeleteन जलाओ दीपक,न दो मुझे सलामी
ReplyDeleteधारा 370 की ले लो तुम कुर्बानी।