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Friday 15 February 2019

श्वेत पलाश सा तू मुस्काना

श्वेत पलाश सा तू मुस्काना
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बाबा देख तुझे क्यों ?
ऐसा लगता मेरा-तेरा रिश्ता है।
एक नदी किनारे बैठा है,
एक भवसागर में डूबा है।

 पथराई सी तेरी अँखियाँ,
 मन  मेरा भी सुना है ।
वैरागी बना काहे तू बाबा,
क्या खेल जगत का देखा है ?

कुछ तो मुझसे बोल दे बाबा ,
दिल का दर्द खोल दे बाबा,
भटके को  दे जीवन -दर्शन,
कर ले सफल तू अपना मग ।

रिश्तों का सब बंधन छूटा ,
अपनों का यह स्वांग है झूठा,
तेरी राह में  मैं  बढ़ जाऊँ,
बाबा मुझकों गले लगाना ।

अपना वो वैराग्य दे बाबा,
बसंत का उपहार दे बाबा,
फूल पलाश सा; न मुझे बनाना ,
रंग स्नेह दे; क्यों हुआ बेगाना ?

बाबा बोलें बच्चा सुन लें,
वन की आग बन ;
न मन को जलाना,
श्वेत पलाश सा तू मुस्काना ।

दुर्लभ समझ ढ़ूंढे जब कोई,
रीति जगत का  उसे बताना।
दिल का दर्द न किसे सुनाना,
मन की बात न मुख से लाना।

डोली सजी अब पिया बुलाये,
मुझकों -  तुझसे  दूर है जाना।
"पथिक" जब होते हर फूल यतीम,
पुष्प पलाश सा तू  मुस्काना ।

  - व्याकुल पथिक

11 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-02-2019) को "श्रद्धांजलि से आगे भी कुछ है करने के लिए" (चर्चा अंक-3250) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    अमर शहीदों को श्रद्धांजलि के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. धन्यवाद शास्त्री सर

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  3. डोली सजी अब पिया बुलाये,
    मुझकों - तुझसे दूर है जाना।
    "पथिक" जब होते हर फूल यतीम,
    पुष्प पलाश सा तू मुस्काना ।
    बहुत खूब ,लाजबाब शशि जी

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  4. वन की आग बन ;
    न मन को जलाना,
    श्वेत पलाश सा तू मुस्काना ....
    अच्छी रचना।

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  5. जी धन्यवाद भाई साहब।

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  6. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति सोमवार 18 फ़रवरी 2019 को प्रकाशनार्थ "पाँच लिंकों का आनन्द" ( https://halchalwith5links.blogspot.com ) के विशेष सोमवारीय आयोजन "हम-क़दम" के अट्ठावनवें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    अंक अवलोकनार्थ आप सादर आमंत्रित हैं।

    सधन्यवाद।

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  7. डोली सजी अब पिया बुलाये,
    मुझकों - तुझसे दूर है जाना।
    "पथिक" जब होते हर फूल यतीम,
    पुष्प पलाश सा तू मुस्काना ।
    बेहतरीन प्रस्तुति

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  8. डोली सजी अब पिया बुलाये,
    मुझकों - तुझसे दूर है जाना।
    "पथिक" जब होते हर फूल यतीम,
    पुष्प पलाश सा तू मुस्काना । बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय
    सादर

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  9. बहुत सुन्दर... लाजवाब रचना...

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yes