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Thursday 28 March 2019

नियति का कटाक्ष


नियति का कटाक्ष
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न अमृत की चाह हो   
 मृत्यु  भी  उपहार  हो
कर्म का उपहास हो
पथिक तुम बढ़ते चलो

कहीं ना  प्रकाश हो
 अधर्म का सम्मान हो
भ्रष्ट  तंत्र साथ हो
 रुको नहीं बढ़े चलो

नियति का कटाक्ष हो
  धर्म  जब  परास्त  हो
समय भी प्रतिकूल हो
 पथिक  तुम बढ़े चलो

हृदय में संताप  हो
  स्नेह की न आस हो
प्रीति पर आघात हो
   धीर  धर  बढ़े  चलो

मित्र न  कोई साथ हो
  पथ  में  अंधकार  हो
संघर्ष सभी व्यर्थ हो
 है  कर्मपथ , बढ़े चलो

बसंत का  उन्माद हो
  फाग   का परिहास  हो
बन पावस बरसो,मगर
 अग्निपथ पर  बढ़े चलो

सकारात्मकता का प्रलाप हो
  सम्वेदना  करे  विलाप क्यों ?
नकारात्मक   संग   लिये
       मुक्तिपथ पर बढ़ते चलो

सूना  यह  संसार  हो
   यादों  की  बरसात  हो
वैराग्य करें विश्वासघात जो
     है धर्मपथ ,  बढ़े   चलो

          - व्याकुल पथिक

मो0 9415251928
      7007144343



 



6 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर कर्म पथ को अग्रसर गहन भाव रचना।

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  2. जी प्रणाम धन्यवाद, आप दिनों दिन इसी तरह ब्लॉग जगत में आगे बढ़ते रहें।

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  3. मित्र न कोई साथ हो
    पथ में अंधकार हो
    संघर्ष सभी व्यर्थ हो
    है कर्मपथ , बढ़े चलो
    प्रिय शशि भाई आपके लेखन में जब इस तरह का सार्थक विचार पाती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है | सचमुच विपरीत परिस्थितियों में जीने कीकला ही जीवन है | शुभकामनायें |

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  4. जी प्रणाम दी और ओंकार जी आपको भी धन्यवाद।

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