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Wednesday 6 March 2019

दर्द नया दे चल दिये !

दर्द नया दे चल दिये !
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जिन्हें   मीत समझा
अजनबी बनाके चल दिये
  दिल के फिर टुकड़े हुये
दर्द नया दे चल दिये !

रंग भरने की न सोच
  जल जाएगी ज़िंदगी
ताउम्र किसीकी याद में
  कटती कहाँ ये ज़िंदगी ?

मयख़ाने तो हैं अनेक
  साक़ी     मिला ना  कोई
जाम जो ऐसा दे पिला
नशा हो न फिर कोई !

ज़ख्मी दिल से ना पूछ
  नादानी तेरी किसने सही
ज़ुबां पे न उफ़ किसीकी
 बेगाना बना के चल दिये

यतीमों को ठिकाना कहाँ
  क़ब्र तक   पनाह देती नहीं
आशियाना एक दिल में था
नापाक़ बता के चल दिए  !!!!!

           -व्याकुल पथिक

13 comments:

  1. बहुत खूब....
    यतीमों को ठिकाना कहाँ
    क़ब्र तक पनाह देती नहीं
    आशियाना एक दिल में था
    नापाक़ बता के चल दिए !!!!!

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  2. आप को ब्लॉग पर देख प्रशंता हुई ,आशा करती हूँ अब आप स्वस्थ होंगे,भगवान् से प्रार्थना है आप हमेशा ब्लॉग पर यूँ ही सक्रिय रहे ,एक बार फिर से एक सुंदर रचना की बधाई ,सादर नमस्कार

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  3. जी स्थिति बहुत ठीक नहीं कामिनी जी, फिर भी मन नहीं लग रहा था , तो रेणु दी को दिखलाने के बाद पोस्ट कर दिया।
    प्रणाम।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-03-2019) को "नारी दुर्गा रूप" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. प्रणाम, धन्यवाद।

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  6. जिन्हें मीत समझा
    अजनबी बनाके चल दिये
    दिल के फिर टुकड़े हुये
    दर्द नया दे चल दिये !
    बहुत ही मार्मिकता के साथ मन की वेदना प्रकट हुई है प्रिय शशि भाई |

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  7. आशियाना एक दिल में था
    नापाक़ बता के चल दिए !!!!!
    बेहतरीन
    सादर

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  8. अच्छी कविता. छायावाद का पूरा प्रभाव है.

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  9. मन की वेदना शब्दों के माध्यम से दिल को तार तार कर गयी ...
    संवदनशील अभिव्यक्ति ...

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  10. सभी को प्रणाम ,आशीर्वाद बना रहे।

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yes