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Friday 8 March 2019

गरीबी संग उपहास लिये !

गरीबी संग  उपहास लिये !
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दो वक़्त की रोटी ,जो होती
यूँ परदेश गुजारा ना करते।
छोड़ के निकले थें , घर को
अँखियों में उदासी साथ लिये।

बेगानों सा हम ,भटकते रहें
गरीबी संग  उपहास लिये !
कभी माँ के दुलारे हम भी थें
अब ग़ैरोंसे,रहमकी आस लिये।

  अनजान डगर, हम बढ़ते रहे
  कोई संगी साथी ना साथ लिए।
  ईमान की रोटी बस  चाह रही
  बेईमानों से जो मुलाकात हुई।

सौदागर वो कैसे थें, समझो
जो बिकते रहें ,मालामाल हुये।
लुटेरों से सजी है, ये महफ़िल
जो बिक न सके,  बेहाल रहें।

रंग बदलती   दुनिया में
पूछो न हमने, क्या-क्या सहे।
दिल का भी   सौदा होता है
जो कर न सके,वो  यूँ ही  रहें।

हमने सहे  परिहास  मगर
 पर दर्द जिगर का साथ रहा ।
हर चीज की कीमत थी ,लेकिन 
वादों पर ना  विश्वास रहा ।

  वो रंगमहल और ये चौबारे
दिल से भी हम गरीब   न थें।
ना जाने फिर, कैसी गुनाह हुई
बन घुंघरू भी,हम बज न सके।

               -व्याकुल पथिक
  जब भूख सताती है , ऊपर से निठल्ले होने का कलंक , जिससे  मुक्त होने की चाह में ,जब पथिक अपना देश छोड़ परदेश को निकला, तो उसे क्या मिला, इसी दर्द को समर्पित है यह रचना।


16 comments:

  1. दो वक़्त की रोटी ,जो होती
    यूँ परदेश गुजारा ना करते।
    छोड़ के निकले थें , घर को
    अँखियों में उदासी साथ लिये।
    .
    बेहतरीन रचना आदरणीय...वाह

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-03-2019) को "पैसेंजर रेल गाड़ी" (चर्चा अंक-3269) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. गरीबी का एहसास सिर्फ गरीब को ही होता है।
    नयी पोस्ट: ग़ज़ल को उम्दा रखेंगे।
    iwillrocknow.com

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  4. ब्लॉक पर पथिक अपने मन को हल्का करता है ,अपनी यादों को शब्द देता है। इसके अतिरिक्त उसे न कविता ,न कहानी, ना ग़ज़ल और न ही लेखन कला आती है।
    प्रणाम।

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  5. बेहतरीन रचना शशि भाई 👌👌
    सादर

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  6. बहुत बढ़िया

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  7. बहुत ही बेहतरीन रचना

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ११ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  9. दिल से सीधे निकले शब्दों को सुंदरता से गूँथा है आपने ।

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  10. हर कोई गरीब है ... कोई किसी बात पे कोई किसी बात पे ...
    दिल से निकले भाव दिल में सीधे उतर जाते हैं ... लाजवाब ...

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  11. बेहतरीन रचना ,वो रचनाये ही क्या जिसे पढ़ आप का दर्द दूसरे के दिल में न उतर जाये ,दर्द भरा बेहद सुंदर रचना ,सादर नमन शशि जी

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  12. जी सभी को प्रणाम, आशीर्वाद बना रहे।

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  13. प्रिय शशि भाई, आपके भीतर व्याप्त वेदना शब्दोंं के रूप में कविता में ढल गयी है, जो मन को स्पर्श कर एक पीडा का एहसास कराती है।
    कविता लेखन का आपका प्रयास सरहनीय है। सस्नेह

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  14. बहुत ही हृदयस्पर्शी, सुन्दर, सार्थक रचना...।
    बहुत लाजवाब...

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  15. जी प्रणाम रेणु दी और सुधा जी।

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yes