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Friday 12 April 2019

अटल सत्य

अटल सत्य
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ए नादान परिंदे  तू
इंसानों की फ़ितरत को समझ

ये तुझे देते हैं दाना-पानी,पर
 इसे अपनी क़िस्मत ना समझ

अरे ! मुर्ख नासमझ पक्षी
  ये  तेरी खुशियों पर नहीं

ये  तेरी  कराह पर नहीं
  तेरे  क़त्ल  पर भी नहीं

 वे तो तेरे गोश्त की चाह में
 खिलखिलाते और मुस्कुराते हैं

 नहीं है उनमें भी  रहम
कह मछली जल की रानी

जो लिखते हैं तुझ पे कविता
   वे तुझे सहलाते हैं, मगर

 है  तू आखेट उनका  भी
   आज नहीं  तो कल

नौ दिन ये,उनके उपवास के
पगले ,इसे जीवनदान न समझ

टूट पड़ेंगे भूखे भेड़िये से तुझपे
 अभी बने हैं जो बगुला भगत

और बात राजनीति की करूँ
 तो चुनावी मौसम है रंगीन

 जन सेवक के पोशाक में
 आज जो तुझे दिख रहे हैं दोस्त

पहचान इन नक़ाबपोशों को
  कल  वे ही होंगे तेरे हिटलर

  नियति की  निष्ठुरता को
तू भी पथिक तनिक तो समझ

  मत  पूज तू  इसको कभी
मृत्यु दण्ड तेरा भी है अटल सत्य

          -व्याकुल पथिक

18 comments:

  1. व्याकुल पथिक इस अटल सत्य को समझो
    नियति की निष्ठुरता को पथिक तनिक तू भी तो जरा समझ

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  2. बिल्कुल हर किसी के लिये एक ही नियम है इस सृष्टि में वह है
    मृत्युदंड।
    इसलिए औरों को दंड न दो ।


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  3. बहुत खूब प्रिय शशि भाई | सार्थक रचना के जरिये आपने उन दोहरे चरित्र वाले भक्तों को आईना दिखा दिया जो केवल कुछ दिनों के लिए बगुले भक्त बन पशु पक्षियों के लिए करुणा और स्नेह का दिखावा करते हैं |और अंत में इन्ही अनबोल प्राणियों को भुनकर खाने से नहीं हिचकते | जीवन देने और लेने का अधिकार मात्र ईश्वर का है इन्सान को नहीं | नवरात्रों में तो इन कथित भक्तों चरम पर होती है | भावपूर्ण रचना के लिए आपको शुभकामनायें | राम नवमी और माँ भगवती की पावन अष्टमी आपके लिए शुभता भरी हो | सस्नेह --

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  4. जी दी मैं तो बस इनसे एक बात पूछता हूँ कि जिस आराध्य का पूजन करते हो, व्रत रखते हो, फिर उन्हें भी मांसाहार भोग क्यों नहीं अर्पित करते।
    तब तो शाकाहारी बन जाते हो।
    स्पष्ट है कि ऐसे लोग स्वयं भी मानते हैं कि उनके भगवान को मांस पसंद नहीं, फिर वे क्यों खाते हैं। अपनी रसना के लिये क्यों करवाते हैं किसी अन्य प्राणी की हत्या।
    क्या यह धर्म है?

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  5. व्रत अष्टमी का कल है रेणु दी।

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-04-2019) को " बैशाखी की धूम " (चर्चा अंक-3304) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    - अनीता सैनी

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  7. सच कहा आपने कि अपनी भुख शांत करने के लिए निरपराध पशु पक्षियों की हत्या नहीं करनी चाहिए। ईश्वर ने खाने के लोए अनगिनत चीजें बनाई हैं। विचारनीय प्रस्तूति।

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  8. जी प्रणाम।
    काश! ऐसा ही होता।
    कम से कम पूजापाठ करने वाले लोग तो इनकइनकी हत्या का कारण न बनें।
    अन्यथा फिर कैसा धर्म।

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  9. जी प्रणाम धन्यवाद।

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  10. नौ दिन ये,उनके उपवास के
    पगले ,इसे जीवनदान न समझ

    टूट पड़ेंगे भूखे भेड़िये से तुझपे
    अभी बने हैं जो बगुला भगत सही कहा आपने आदरणीय बहुत ही बेहतरीन रचना

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  11. जी प्रणाम, किसी पर व्यंग्य नहीं है,बस एक सवाल है ?

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  12. बहुत सुंदर प्रस्तुति है भाई मन की अकुलाहट और हर प्राणी के प्रति करूणा सुंदर संदेश है ।बस जीभ के क्षणिक स्वाद के लिये कितने बेरहम हो जाता है इंसान। ज्यों ज्यों व्यक्ति मांसाहार की तरफ बढ़ता है उसके अंदर की कोमल भावनाएं खत्म होती जाती है।
    बहुत प्रेरणा दाई रचना ।

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  13. जी प्रणाम ।
    कुसुम दी।

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  14. वे तो तेरे गोश्त की चाह में
    खिलखिलाते और मुस्कुराते हैं
    सत्य को निर्विकार रूप में प्रस्तुत किया सर आपने और उस पर समसामयिक मुद्दों का छौंक भी, बहुत भा रहा है यह सृजन।

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  15. बेहतरीन रचना ,सादर नमस्कार आप को

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  16. जी निश्छल जी और कामिनी जी बहुत बहुत आभार।

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  17. बहुत ही सुंदर रचना बड़ेभाई,

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yes