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Monday 15 April 2019

ललकी की पाती सीएम के नाम



75 दिनों में ही 80 गौवंश की हो चुकी है यहाँ मृत्यु
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    मीरजापुर । प्रदेश सरकार के फरमान पर यहाँ नगर में जब गौशाला खुला तो हमने सोचा था कि सड़कों और गलियों में भटकने वाले छुट्टा पशु कहलाने से हमें मुक्ति मिलेगी। इससे पूर्व वर्षों से हम जब कभी पेट की अग्नि को शांत करने की विवशता में मुकेरी बाजार, गुड़हट्टी, गनेशगंज और घंटाघर की सब्जी और गल्ला मंडी में किसी की दुकान अथवा ठेले से कोई खाद्य सामग्री ग्रहण करते थें, तो हमें भोजन चोर बता कर पिटाई होती थी। कभी - कभी इंसानों का जूठन भी नहीं मिलता था, ऐसे में हमारे लिये यह नया शरणस्थल मनभावन होगा, कुछ ऐसे ही कल्पना लोक में खोये हुये थें हम।
        पर  तब यह नहीं समझ सके थें कि नियति ने इस नये घर ( गौशाला)  का निर्माण हम जैसे निरपराध प्राणियों को मृत्यु दंड देने के लिये निर्मित करवाया है। मानो यह किसी हिटलर का गैस चैम्बर हो ,जहाँ जीवन की उम्मीद बेमानी है। अब आंकड़ों में आपको बताऊँ, तो इस गौशाला के खुले 75 दिन में  80 गौवंश की मौत  हो चुकी है । इतने संगी-साथियों को खोकर मेरा दिल मर्माहत भी है । पता नहीं कल मैं भी रहूँ ना रहूँ ?  स्वास्थ्य यहाँ मेरा निरंतर बिगड़ते जा रहा है। पेट की आग से कहीं अधिक इस भीषण गर्मी में पानी के लिये हम छटपटा रहे हैं। हमारी पुकार पर कुछ गोभक्त, मीडिया कर्मी और बाद में गौपालक नगर विधायक रत्नाकर मिश्र भी यहाँ आये। जिन्होंने सख्त चेतावनी दी थी कि भविष्य में एक भी गौवंश की मृत्यु हुई तो समझना गौहत्या का पाप लगेगा। हमारी देखभाल करने वाले इंसानों से उन्होंने और भी बहुत कुछ कठोर शब्दों में कहा था। पुआल की जगह भूंसे की व्यवस्था भी हमारे लिये करवाई गयी थी। लेकिन, आपने यह उक्ति सुनी है न कि चार दिनों की चाँदनी , फिर अंधेरी रात..?
  इसी बीच हमारे कई साथी मर गये। सच तो यह है कि वे मरे नहीं यहाँ की दुर्व्यवस्था के शिकार हो गये। लेकिन, फिर कोई गौवंश रक्षक यहाँ नहीं आया ,जो उनके विरुद्ध सजा तय करता ,जिनकी जिम्मेदारी बनती है। भविष्य में भी स्थानीय किसी रहनुमा से हमें उम्मीद नहीं है। अतः सोचा आपको अपनी पाती लिख दूँ । जिससे प्रदेश के मेरे वंशजो का भला हो सके । अतः आँखों में आँसू लिये पत्र लिख रहा हूँ।  हम बेजुबान हैं। अतः स्थानीय पत्रकार साथियों के सहयोग से यह   आखिरी पत्र आप तक भेज रहा हूँ, क्यों कि जानता हूँ कि इस पत्र के पहुँचते - पहुँचते मैं भी  आपके इस गौशाला में दम तोड़ दूँगा। पर मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ मेरे ये आँसू गवाह हैं, जिससे इन पत्रकारों ने अपने कैमरे में प्रमाण के तौर पर रख लिया है। इंसानों का जो कानून है, वह साक्ष्य मांगता है न , तो  ये रहें मृत्युदंड से पूर्व हमें मिलने वाली यातनाओं का प्रमाण मुख्यमंत्री जी । अब तनिक मेरी पीड़ा सुनिए।
    " परम प्रिय गौ रक्षक भक्त योगी जी आप अपने सद्कर्मों और पूर्व जन्म के प्रताप से इस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हैं । आपकी मंशा गंगाजल की तरह पवित्र है पर आपके नुमाइंदे आड़ा - खापा से बाज नहीं आ रहे हैं  । जिनकी करनी से जिला मुख्यालय के गैबीघाट में गौशाला मौतशाला बन गया है । नवरात्रि बीतते ही रविवार को पांच गौवंश की मौत हो गयी । सोमवार को भी मेरा एक साथी गौलोक चला गया जबकि दूसरा प्रभु श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए जाने की तैयारी में है । जबतक मेरी पाती आप तक पहुंचेगी तबतक वह भी अनन्त यात्रा की ओर प्रस्थान कर जायेगा । मेरी आँखों से बह रहे आंसू मेरे सीने में अपनों की उदासीनता का परिणाम है ।आप मेरी आँखों से निकल रहे आंसुओं को पढ़ना और हो सके तो ऐसा करना जिससे गौशाला में दाना - पानी और बीमारी के चलते अब और अकाल मौत न हो ।
        मुझे ललकी के नाम से जाना जाता है । मुझे सड़क पर घूमते वक्त आपके नुमाइंदों ने पकड़ कर नगर के गैबीघाट में बने सरकारी गौशाला में डाल दिया गया । उस दौरान की गयी रस्सा कस्सी से मेरे कई साथियों के सींग तक उखड़ कर लटक गये । जख्मी होकर कई परलोक सिधार गये । जब से आपने गौशाला खोला है 75 दिन में 80 साथी इस मायावी दुनिया से चले गये । इसमें आपके मातहतों का भरपूर योगदान रहा । आप ही बतायें केवल पुआल खाकर कोई जिंदा रह सकता है ।गौपालक विधायक रत्नाकर मिश्र की फटकार के बाद पुआल को बोरा में भर दिया गया । जो आज भी गौशाला में है । उसके बाद से अब भूंसा मिल रहा है । डीएम के कहने पर खाने और पीने के लिए बर्तन मंगाया गया । उस वक्त नगर पालिका परिषद अध्यक्ष मनोज जायसवाल, नगर मजिस्ट्रेट सुशील श्रीवास्तव आकर निरीक्षण करते और निर्देश भी देते रहे ।
     जिलाधिकारी अनुराग पटेल जब औचक निरीक्षण पर आये थे तो गौशाला में उन्हें हम सब की कुल संख्या 215 बताया गया था । अब मात्र 164 रह गया है । गौशाला को 28 जनवरी 2019 को खोला गया । आज की तारीख यानि 75 दिन में 80 गौवंश की मौत हो चुकी है ।
         वर्षो पूर्व हुई बोरिंग का बदबूदार गंदा पानी मोहल्ले के लोग नहीं पीना चाहते उसे हम सबको पिलाया जा रहा है । जिसे आप छूना भी नहीं चाहेंगे उसे हम कैसे पीते है वह हम सबका दिल ही जानता है । खूंटे से बंधे होने के कारण विवशता है । हम तो बोतल के पानी की आस नही करते पर वह दूषित भी न हो की बीमार करके मौत ही दे जाये । जिस प्रकार भगवान सूर्य नारायण के पौ फटते ही कितना भी घना अंधेरा क्यों न हो मिट जाता है
 दिन अपनी उपस्थिति का आभास कराता है ।  आशा है कि उसी प्रकार व्यवस्था के नाम पर चल रहे अव्यवस्था का खात्मा होगा । तभी आपकी नेक नियति के साथ खोला गया गौशाला सफल होगा । जिसके रोम रोम में देवताओं का वास हो उनकी प्रसन्नता और खिन्नता धर्म के अनुसार कामी अहमियत रखती है । वैसे आप खुद समझदार है ।
       गौशाला की दुर्व्यवस्था की कहानी सुनकर जिलाधिकारी गौशाला में आये थें  । उस दौरान नगर विधायक रत्नाकर मिश्र भी आये और घूम घूमकर निरीक्षण किया था । भला हो विधायक का उस वक्त हम सबके पास खाने और पीने के लिए कोई पात्र नहीं था । मुझे और अन्य साथियों को खूंटे से बांध दिया गया था । दूर पानी नजर आता पर सूख रहे गले को तर करने की मंशा समय के साथ और बढ़ती जाती । कई साथी तो पानी न मिलने से प्यासे ही इस दुनिया से चले गये । उस वक्त हम सबको पुआल खाने को दिया जाता था । आपको तो मालूम है कि सर्दी के मौसम में कई जगह पुआल खिलाया जाता है वह भी भूंसा में मिला कर । लेकिन यहाँ पुआल मिला पर पानी नदारद था । खाली पुआल भी कई साथियों के लिए जहर बन गया । पुआल तो जो शरीर को गर्मी प्रदान करता है । शहर की सड़कों पर फेंके गए जूठन वगैरह खाकर जहा पानी मिला पीकर टंच रहते थें । आपके बनाये गौशाला में दूसरों के भरोसे दाना पानी वह भी आधा अधूरा रह गया है । उन दिनों जिलाधिकारी के आने पर कुल आंकड़ा 215 बताया गया था । अब मात्र 164 गौवंश बचे हैं  । गौशाला इसी वर्ष 28 जनवरी को खोला गया । 75 दिन में हममें से 80 की मौत हो चुकी है ।
      धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो''  के साथ ही गौमाता की जय हो और गंगा मैया की जय हो भी बोला जाता है।
   आज भी यह जय घोष भारतीय संस्कृति का उद्घोष बन  हुआ है। फिर भी क्यों  गंगा और गौमाता का दर्द इसी जयघोष में घुटकर रह जा रहा है ?
   उम्मीद है कि आप स्वयं अपने इन गौशालाओं का औचक निरीक्षण कर  इस पत्र की सत्यता को परखेंगे।






10 comments:

  1. वाहह्हह... सराहनीय सार्थक सृजन बहुत सुंदर लेखन शशि जी...बेहतरीन...बहुत अच्छी लगी।
    👍👍👍👌👌👌👌

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  2. बहुत ही बेहतरीन तरीके से आपने बेजुबान का दर्द
    अपने शब्दों में बयान किया है बेहद मर्मस्पर्शी लेख लिखा आपने 👌👌

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  3. आशा है इस मर्म-स्पर्शी सत्य के उदघाटन के बाद इन तथाकथित गो-भक्तों का पातक आतंक थमेगा और इनकी आत्मा जागेगी. बहुत आभार आपका इस सजग पत्रकारिता का.

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 17 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. सभी को प्रणाम।
    कल स्वास्थ्य ठीक न होने से विलंब से आप सभी स्नेही जनों के प्रति आभार व्यक्त कर रहा हूँ।

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  6. बहुत ही मर्मस्पर्शी खत लिखा है आपने मौके पर ली गयी तस्वीरेंं उन हालातों की गवाह हैं आशा है आपके इस खत से
    सरकार और ये गौरक्षक अपने आप को इस जघन्य पाप से बचाने की कोशिश करें...इन बेजुबानों पर कुछ रहम करें...
    आपका ये लेख और इस तरह इन बेजुबानों पर सहानुभूति बहुत ही सराहनीय प्रयास है....अनन्त शुभकामनाएं आपको।

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  7. बहुत ही मार्मिक लेख प्रिय शशि भाई | ललकी की पीड़ा उसी के मुंह से ! बहुत ही जानदार और मन को छु लेने वसली पुकार है ललकी की | जो पाषाण हृदय को भी बींध दे |चित्र इस मार्मिक पुकार के सजीव साक्षी हैं | ये संतोष का विषय है कि आप जैसे सजग और करुणा भाव से भरे सज्जन इस तरह के उपक्रमों से जुड़े हैं | गौ वंश का इस तरह उपेक्षित हो जीना बहुत ही पीडादायक है | वह देश जहाँ गीता , गंगा गायत्री के साथ गौ को माता शब्द से सम्मान दिया जाता है उसी भूमि पर उसकी दुर्दशा के लिए बहुत सी बाते जिम्मेवार है | हमारे शहर में मैंने ऐसी बहुत कम घटनाएँ सुनी हैं मैं कई बार यहाँ की गौ शाला में गई हूँ वहां बहुत ही सुव्यवस्थित ढंग सेगौवंश की देखभाल होती है | लोग यहाँ से भारी मात्रा में गौ माता का दूध भी खरीदते हैं |आपका ये लेख कितना कारगर हार्दिक शुभकामनायें सिद्ध हुआ इसके बारे में दुसरे लेख में लिखना ना भूलें | शुभकामनाओं के साथ -

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  8. बहुत मार्मिक लेख शशि भाई |पढ़ कर आँखें भर आई
    सादर

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  9. व्याकुल पथिक20 April 2019 at 20:37
    [21/04, 08:56] प्रदीप मिश्रा: शशि जी आज आपके ब्लॉग में अनेक लेख जी आपने लिखे हैं को विधिवत पढ़ा।विशेषतः महावीर जयंती और मुख्यमंत्री के नाम एक निरीह पशु की पाती ने अंदर से मर्माहत कर दिया।आप कलम के सिपाही हैं और जो जिम्मेवारी आपको मिली है नियति अनुसार आप बखूबी उसका पालन भी कर रहे हैं,और ऐसे लोगों की राह बड़ी मुश्किल भी होती है किन्तु अपने नैतिक कर्तव्य की पूर्ति करके जो आत्म सन्तुष्टि मिलती है वह उस कठिन मार्ग पर भी आगे बढ़ते रहने की ऊर्जा प्रदान करती है।जीवन तो सभी जीते हैं किन्तु प्रश्न यह है कि कैसे जीते हैं?एक तरफ लुभावन सस्ती लोकप्रियता और क्या अकेले मेरे संघर्ष से समाज बदल जाएगा? की भावना है और दूसरी तरफ बूँद,बूँद से सागर बनता है, तिनके,तिनके से रामसेतु बनेगा(गिलहरी की कर्तव्यशीलता) की भावना है।आपने राम की गिलहरी वाली भावना को अपने जीवन का ध्येय पथ बनाया है।मशहूर कवि दुष्यंत कुमार की लाइनें हैं*** तुम्हारे पाँवों के नीचे कोई जमीं नहीं,कमाल है कि फिर भी तुम्हें यकीं नहीं।मै बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ, मै इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं।पुनः कोटिशः धन्यवाद,अपनी लेखनी को स्याही की अंतिम बूंदों तक यूँ ही चलाते रहें।ॐ शांति👌👍🙏
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    प्रदीप मिश्रा जी प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में आध्यात्मिक शिक्षक/ रेनबो पब्लिक स्कूल, विन्ध्याचल का प्रबन्धक भी हैं।
    आपका हृदय से आभार।

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