है तू इक भूल और ...
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आज की रात तुझे
नींद न फिर आई
यादों की राह में
वो दर्द जो ले आई
चादर की इन सिलवटों में
वो खुशियाँ तो नहीं
ये तेरे करवटों की कराह है
और कुछ भी नहीं
खुली जुल्फ़ों में बिखरी
ये वो मोहब्बत भी नहीं
उन मचलते हुये बाँहों में
तेरी ख़्वाहिश तो नहीं
खिलखिलाते उन होंठों पे
तेरा नाम तो नहीं
खनखनाती पायलों में
ना तेरी हँसी है छुपी
ज़ख्म जो तेरे जिगर में
क्यों ना भर पाता कभी ?
बिखरे हुये कुछ कांच वहाँ
तेरी किस्मत तो नहीं
ख़्वाबों में आते हो क्यों
जब दिल पे दस्तक ही नहीं
तू है गुनाहों का देवता
और एक भूल ये सही
मत कोस जमाने को
ये तेरी दुनिया ही नहीं
है तू इक भूल
और कुछ भी नहीं..!
-व्याकुल पथिक
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ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-04-2019) को "मतदान करो" (चर्चा अंक-3300) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद, प्रणाम।
ReplyDeleteशास्त्री सर।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteदर्द से भरा दिल को छू लेने वाली रचना ,सादर नमस्कार शशि जी
ReplyDeleteजी कामिनी जी प्रणाम।
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 10 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धन्यवाद प्रणाम।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना आदरणीय 🙏
ReplyDeleteजी प्रणाम
ReplyDeleteवाह!!बहुत ही उम्दा !!
ReplyDeleteजी प्रणाम, धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आदरणीय
ReplyDeleteसादर
जी धन्यवाद , प्रणाम।
ReplyDeleteव्यथा की अभिव्यक्ति करती हुई सरल सीधी सादी रचना।
ReplyDeleteजी प्रणाम मीना दी
ReplyDeleteप्रिय शशि भाई -- यादों के ज्वार और आसुओं के खार ने इस भावपूर्ण अभिव्यक्ति को बहुत ही मार्मिक बना दिया है |
ReplyDeleteमत कोस जमाने को
ये तेरी दुनिया ही नहीं
है तू इक भूल
और कुछ भी नहीं..!
सचमुच कभी कभी ये भूल ही जीवन का सबसे बड़ा पछतावा बन जाती है |निशब्द हो जाती हूँ इस विरह वेदना के आगे |!!!!!!! किसी शायर की पंक्तियाँ --
एक वही शख्स याद रहा मुझको
जिसको समझा था भूल जाऊंगा
जी दी प्रणाम।
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