सबक़
****
दर्द जो सीने में है
उसे दिखाया न कर
ख़ामोशी जो दिल में है
उसे बताया न कर
है रात रंगीन जिनकी
उनसे दिल न लगा
तेरी उदासी पर हँसेंगे
नहीं कुछ तेरा वहाँ
रंग बदलती दुनिया में
दोस्ती कर संभल के
ऐसे भी हमदर्द यहाँ
ज़ख्म बन जाते नासूर
मख़मली एहसासों को
न अपनी ख़्वाहिश बना
गर्द जम चुकी इश्क़ पे
क़ब्र में कराह रहा वो
गुजर गये जो दिन
वे लौटते फ़िर कहाँ ?
वाह-वाह की महफ़िल में
तेरे लिये नहीं कुछ वहाँ
पूछ देंगे तुझे वे अपनी
हसीन रातों में से दो पल ?
हाथी के दांत दिखाने के
खाने के कुछ और
है ये सबक़ तेरे लिये
वैरागी बन, जी न जला
- व्याकुल पथिक
****
दर्द जो सीने में है
उसे दिखाया न कर
ख़ामोशी जो दिल में है
उसे बताया न कर
है रात रंगीन जिनकी
उनसे दिल न लगा
तेरी उदासी पर हँसेंगे
नहीं कुछ तेरा वहाँ
रंग बदलती दुनिया में
दोस्ती कर संभल के
ऐसे भी हमदर्द यहाँ
ज़ख्म बन जाते नासूर
मख़मली एहसासों को
न अपनी ख़्वाहिश बना
गर्द जम चुकी इश्क़ पे
क़ब्र में कराह रहा वो
गुजर गये जो दिन
वे लौटते फ़िर कहाँ ?
वाह-वाह की महफ़िल में
तेरे लिये नहीं कुछ वहाँ
पूछ देंगे तुझे वे अपनी
हसीन रातों में से दो पल ?
हाथी के दांत दिखाने के
खाने के कुछ और
है ये सबक़ तेरे लिये
वैरागी बन, जी न जला
- व्याकुल पथिक
वाह-वाह की महफ़िल में
ReplyDeleteतेरे लिये नहीं कुछ वहाँ...... बहुत सही.
गद्य से पद्य की ओर अग्रसर आपके कवि मन और क़लम को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteदर्द और व्यंग्य मिलाकर लिखी आपकी अनूठी रचना...।
शायद दुनिया को देखने के लिए सबके पास अपना चश्मा होता है..जिसको ज़िंदगी से जो मिलता है वही वो बाँटता है। "हाथी के दाँत" विचारणीय है।
जी प्रणाम।
ReplyDeleteआप दोनों को
यहाँ ,तो दर्द ही अपना सब-कुछ है।
ReplyDeleteवही मेरे लिये बसंत और फागुन है।
वहीं मेरी अपनी दुनिया है।
वाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी प्रणाम, शुक्रिया।
ReplyDeleteवाह-वाह की महफ़िल में
ReplyDeleteतेरे लिये नहीं कुछ वहाँ
यकीनन सब मायावी है
बहुत सुंदर
बहुत ही सुन्दर शशि भाई 👌
ReplyDeleteआप के लिए कुछ लिख रही हूँ मन हुआ लिखने का
कभी हम भी सजाएंगे महफ़िल
हमारी भी जिंदगी में बहार होगी
कभी मन को पलट कर तो देखो
बाहर दुनिया तुम्हारे इंतजार में होगी
आभार
सादर
आपकी लेखनी को बारबार प्रणाम
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी
ReplyDeleteदर्द और व्यंग को बहुत खूब वया किया आपने ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteजी सही कहा आपने, पर यह मन का पागलपन ही है।
ReplyDeleteरंग बदलती दुनिया में
ReplyDeleteदोस्ती कर संभल के
ऐसे भी हमदर्द यहाँ
ज़ख्म बन जाते नासूर
दर्द में डूबे मन से बहुत ही आहत स्वर निसृत हो रहें हैं | अत्यंत भावपूर्ण सृजन शशि भाई . जो निशब्द कर देता है |
जी दी आभार।
Deleteबहुत खूब,दर्द और व्यंग की बेहतरीन जुगलबन्दी के साथ आपका ये "सबक़"।
ReplyDeleteआभार प्रवीण जी
Deleteरंग बदलती दुनिया मे दोस्ती कर सम्हाल के यहाँ।।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाई साहब।(जो दर्द दिखते नही,वो लहू बनकर बहते बहुत है।)
आभार मनीष जी।
Deleteअति सुंदर 👌🌹🙏
ReplyDeleteआभार।
Deleteदुनिया की सच्चाई चन्द लाइनों में, वाह ....👌👌🙏 - आशीष बुधिया, पूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष मिर्ज़ापुर।
ReplyDelete***
कोई हाथ भी न मिलाएगा,
जो गले मिलोगे तपाक से !
ये नये मिज़ाज का शहर है,
ज़रा फ़ासले से मिला करो !!
- मो० रजी, होटल गैलेक्सी
****
इस लाक डाउन में बेहतरीन कविता प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत बधाई हो।
ReplyDeleteआभार मित्र
Delete