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Thursday 2 May 2019

सबक़

सबक़
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दर्द  जो सीने में है
उसे दिखाया न कर

ख़ामोशी जो दिल में है
उसे बताया  न कर

 है रात रंगीन जिनकी
उनसे दिल न लगा

तेरी उदासी पर हँसेंगे
नहीं  कुछ तेरा वहाँ

रंग बदलती दुनिया में
दोस्ती कर संभल के

 ऐसे भी हमदर्द  यहाँ
ज़ख्म बन जाते नासूर

 मख़मली एहसासों को
 न अपनी ख़्वाहिश बना

गर्द जम चुकी इश्क़ पे
क़ब्र में कराह रहा वो

गुजर गये जो दिन
वे  लौटते फ़िर कहाँ ?

वाह-वाह की महफ़िल में
तेरे लिये नहीं कुछ वहाँ

पूछ देंगे तुझे वे अपनी
 हसीन रातों में से दो पल ?

हाथी के दांत दिखाने के
 खाने के कुछ और

है ये सबक़ तेरे लिये
वैरागी बन, जी न जला

       - व्याकुल पथिक
       

23 comments:

  1. वाह-वाह की महफ़िल में
    तेरे लिये नहीं कुछ वहाँ...... बहुत सही.

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  2. गद्य से पद्य की ओर अग्रसर आपके कवि मन और क़लम को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
    दर्द और व्यंग्य मिलाकर लिखी आपकी अनूठी रचना...।
    शायद दुनिया को देखने के लिए सबके पास अपना चश्मा होता है..जिसको ज़िंदगी से जो मिलता है वही वो बाँटता है। "हाथी के दाँत" विचारणीय है।

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  3. जी प्रणाम।
    आप दोनों को

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  4. यहाँ ,तो दर्द ही अपना सब-कुछ है।
    वही मेरे लिये बसंत और फागुन है।
    वहीं मेरी अपनी दुनिया है।

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  5. जी प्रणाम, शुक्रिया।

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  6. वाह-वाह की महफ़िल में
    तेरे लिये नहीं कुछ वहाँ
    यकीनन सब मायावी है
    बहुत सुंदर

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  7. बहुत ही सुन्दर शशि भाई 👌
    आप के लिए कुछ लिख रही हूँ मन हुआ लिखने का

    कभी हम भी सजाएंगे महफ़िल
    हमारी भी जिंदगी में बहार होगी
    कभी मन को पलट कर तो देखो
    बाहर दुनिया तुम्हारे इंतजार में होगी
    आभार
    सादर

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  8. आपकी लेखनी को बारबार प्रणाम

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  9. दर्द और व्यंग को बहुत खूब वया किया आपने ,सादर नमस्कार

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  10. जी सही कहा आपने, पर यह मन का पागलपन ही है।

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  11. रंग बदलती दुनिया में
    दोस्ती कर संभल के
    ऐसे भी हमदर्द यहाँ
    ज़ख्म बन जाते नासूर

    दर्द में डूबे मन से बहुत ही आहत स्वर निसृत हो रहें हैं | अत्यंत भावपूर्ण सृजन शशि भाई . जो निशब्द कर देता है |

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  12. बहुत खूब,दर्द और व्यंग की बेहतरीन जुगलबन्दी के साथ आपका ये "सबक़"।

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  13. Manish Khattri14 May 2020 at 02:08

    रंग बदलती दुनिया मे दोस्ती कर सम्हाल के यहाँ।।
    बहुत सुंदर भाई साहब।(जो दर्द दिखते नही,वो लहू बनकर बहते बहुत है।)

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  14. दुनिया की सच्चाई चन्द लाइनों में, वाह ....👌👌🙏 - आशीष बुधिया, पूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष मिर्ज़ापुर।
    ***
    कोई हाथ भी न मिलाएगा,
    जो गले मिलोगे तपाक से !
    ये नये मिज़ाज का शहर है,
    ज़रा फ़ासले से मिला करो !!

    - मो० रजी, होटल गैलेक्सी
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  15. इस लाक डाउन में बेहतरीन कविता प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत बधाई हो।

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yes