Followers

Friday 1 November 2019

जेकर जाग जाला फगिया उहे छठी घाट आये..


***************************
आठ दशक पूर्व खत्री परिवार ने मीरजापुर में शुरू की थी छठपूजा
*************************

काँच ही बांस के बहंगिया बहँगी लचकत जाये
पहनी ना पवन जी पियरिया गउरा घाटे पहुँचाय
गउरा में सजल बाटे हर फर फलहरिया
पियरे पियरे रंग शोभेला डगरिया
जेकर जाग जाला फगिया उहे छठी घाट आये..

    छठपर्व पर ऐसे लोकगीत सुनकर मन में एक उमंग-सी छा गयी थी और भावनाओं पर नियंत्रण रखना तनिक कठिन प्रतीत होने लगा ।
    उफ !यह मन भी न.. मुझे बरबस मुजफ्फरपुर की ओर खींच ले गया । जहाँ मौसी जी के घर छठपूजा पर मैं दो बार मौजूद था। प्रथम बार हाईस्कूल की परीक्षा दे , घर छोड़ कर गया था और दूसरी बार अपने आश्रम का परित्याग कर, जिसे लेकर आज भी मुझे पश्चाताप है।
   परंतु छठपर्व पर जो खुशियाँ वहाँ मिली हैं , उन्हें मैं कैसे भुला पाऊँ ? घर और आश्रम से इतर यहाँ वह दृश्य देखने को मिला, जो मेरे लिये एक स्वप्न था, क्योंकि कोलकाता में जहाँ माँ-बाबा और मेरे अतिरिक्त और कोई नहीं था, तो वाराणसी में मेरे माता-पिता और हम तीन भाई- बहन ही थें । यहाँतक कि मेरी दादी भी हमारे  परिवार की सदस्य नहीं थी।  लेकिन , मुजफ्फरपुर में मौसी जी के विशाल परिवार के पूरे सदस्य एकसाथ गंगाघाट अथवा किसी पोखरे पर एकत्र होते थें। पर्व का सृजन इसी लिये तो किया गया है कि बिखरे हुये परिवार के सदस्य और शुभचिंतक एक साथ एक स्थान पर एकत्र हों ।  यहाँ पहली बार मुझे  शुद्ध देशी घी से निर्मित छठ का स्वादिष्ट  ठेकुआ खाने को मिला। मैंने अनुभव किया कि बड़े अथवा संयुक्त परिवार में कितनी भी वैमनस्यता रही हो, फिर भी ऐसे पर्वों पर उनमें संवादहीनता नहीं रहती, हँसते-खिलखिलाते हुये सभी एक हो जाते हैं। यही हमारी संस्कृति , संस्कार और  पहचान है।  छठपर्व जैसे पर्व के अतिरिक्त किसी मांगलिक कार्यक्रम में ही ऐसा अब संभव है ? परिवार की  परिभाषा - " हम पति-पत्नी और हमारे बच्चे " में बदलती जा रही है।
    इस बार छठपूजा के पश्चात मौसी जी सपरिवार पाँच दिनों के लिये मीरजापुर आ रही हैं। मेरे स्वास्थ्य की उन्हें चिन्ता रहती है।  छठ के प्रसाद (ठेकुआ) ही नहीं सिंघाड़े के छिलके का आचार भी वे लेकर आ रही हैं।  मुजफ्फरपुर था तो वहाँ बड़े-छोटे एक दर्जन बच्चे थें। मौसा जी सहित चार भाइयों का परिवार था। बाद में इनमें से जो दो भाई संपन्न थें, उन्होंने अपना नया आशियाना बना लिया , फिर भी छठपूजा पर सब साथ होते थें। बड़ी मौसी जी व्रत करती थी और सभी उनके सहयोगी होते थें। गंगाघाट पर हम बच्चों की खुशी तो पूछिये ही मत। वहाँ बच्चे दीपावली के पटाखों को छठपर्व के लिये भी बचाकर रख लेते थें। मुझे तो मौसी जी की सभी जेठानियों का स्नेह मिलता था, परंतु था तो बेगाना ही न, सो थोड़ा शर्मीला और सहमा रहता था। अपना घर कोलकाता या फिर बनारस था, जहाँ भी अपना कोई नहीं था । वो गीत है न-

सबको अपना माना तूने मगर ये न जाना
मतलबी हैं लोग यहाँ पर मतलबी ज़माना
सोचा साया साथ देगा निकला वो बेगाना
बेगाना बेगाना..


       खत्री परिवार एवं सहयोगी

    इन्हीं स्मृतियों में मैं खोया हुआ था, तभी मेरे मित्र नितिन अवस्थी ने कहा कि श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ आयोजन समिति  के पत्रकारवार्ता में हो लिया जाए और वहाँ से अपने नगर के धुंधीकटरा मुहल्ले में चलना है। यहाँ एक खत्री परिवार है,जिसने बिहार के लोक आस्था का महापर्व छठपूजा को लगभग आठ-नौ दशक पूर्व सर्वप्रथम मीरजापुर में स्थापित किया और आज स्थिति यह है कि यहाँ के दाऊजी गंगाघाट से प्रारंभ छठी मैया का यह पूर्व विस्तार ले चुका है। यहाँ के प्रमुख गंगाघाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ कुछ इस तरह से उमड़ेगी है कि जिसे देख कर भ्रम-सा होने लगेगा है कि कहीं हम बिहार  के किसी शहर में तो नहीं चले आये हैं ।
  नगर में इस पर्व के प्रारम्भ से संबंधित विशेष समाचार संकलन के लिये हमदोनों केदारनाथ खत्री के घर जा  पहुँचे। लगभग अस्सी वर्षीय बुजुर्ग खत्री जी ने हमारा स्वागत-सत्कार किया।  छठपूजा करने वाली अन्य महिलाएँ भी वहाँ आ गयी थीं। वे सभी हम पत्रकारों को देखकर हर्षित हुई । इनमें से किसी का मायका मुजफ्फरपुर, तो किसी का पटना अथवा समस्तीपुर था। सभी बिहार प्रांत की थीं । इन्होंने हमें छठ पर्व के कुछ गीत भी सुनाएँ। छठ के लोकगीतों में इस पौराणिक परंपरा को जीवित रखा है-

काहे लागी पूजेलू तूहू देवलघरवा हे
अन-धन सोनवा लागी पूजी देवलघरवा (सूर्य) हे पुत्र लागी करी हम छठी के बरतिया हे..

          इसमें व्रती कह रही हैं कि वे अन्‍न-धन, संपत्ति‍ आदि के लिए सूर्यदेवता की पूजा और संतान के लिए ममतामयी छठी माता या षष्‍ठी पूजन कर रही हैं।इस तरह सूर्य और षष्‍ठी देवी की साथ-साथ पूजा किए जाने की परंपरा है।


       अब हम अपने काम में जुट गये । हमने इन सभी का फोटोग्राफ लिया , उनके द्वारा गाये लोकगीतों का वीडियो बनाया और फिर केदारनाथ  जी की धर्मपत्नी श्रीमती चाँदनी खत्री से रूबरू हुये।
  इस बुजुर्ग दम्पति को इसबात का गर्व है कि उनके परिवार ने इस शहर में छठपूजा का प्रारम्भ किया है। केदारनाथ बतलाते हैं कि उनकी अवस्था अस्सी वर्ष है और उनके जन्म के पहले से ही उनके परिवार में यहाँ छठपूजा होती थी। उनकी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि उत्साह से भरी चाँदनी खत्री ने उनके परिवार के माध्यम से छठपूजा का प्रारम्भ किस तरह से मीरजापुर में हुआ , यह बताना शुरू कर दिया। उन्होंने हमें बताया कि उनकी बुआ सास लालदेवी और चाची सास सुमित्रा खत्री इस पर्व को करती थीं । तब कुछ अन्य लोग भी गंगाघाट जुटने लगे थें।
  उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये बताया कि तीन पुत्रियों की प्राप्ति के बाद भी पुत्र की लालसा उनके मन में बनी रही। उनका मायका पूसा , मुजफ्फरपुर (बिहार ) था, जहाँ उनकी माँ छठपूजा किया करती थी।  तब उनकी माँ ने ही उनकी गोद भरी और वर्ष भर में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उनको यह खुशी छठी मैया के आशीर्वाद से मिली थी। अतः अपनी मां की आज्ञा से उन्होंने पुत्र जन्म के पाँच वर्ष बाद यह व्रत आरंभ किया । उन्होंने बताया कि यहाँ व्रत के पहले वर्ष उन्होंने पाँच गोद भरी थीं और छठी मैया की कृपा से सभी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई , तब से छठपूजा करते हुये चाँदनी देवी को अठ्ठाइस वर्ष हो गये हैं। वे छठी मैया का व्रत पूजन-अर्चन निरंतर करती आ रही हैं । उनके साथ अनेक भक्त जुड़ते गये । छठी मैया की कृपा पाने के लिए करुणा मैनी,  प्रियंका अग्रहरी, पूनम बरनवाल, क्षमा खत्री, बबीता खत्री, रेनू खत्री, राधा खत्री, सुनीता सेठी, सुषमा सेठ, पूजा खन्ना एवं मीरा सोनी आदि भक्त व्रत और पूजन की तैयारी में लगी दिखीं ।
  जिसपर मैंने भी उन्हें बताया कि मुजफ्फरपुर में तो मेरी मौसी रहती हैं। यह जान उन्हें भी प्रसन्नता  हुई। उन्होंने कहाँ की छठ के दिन आप दोनों को आना है।

  सूर्य की बहन हैं षष्ठी माता
--------------
   इसके पश्चात सूर्यदेव और छठी मैया के संदर्भ में मुझे पौराणिक कथा जानने की जिज्ञासा हुई।
  पढने को मिला कि षष्‍ठी माता के संदर्भ में
श्‍वेताश्‍वतरोपनिषद् में बताया गया है कि परमात्‍मा ने सृष्‍ट‍ि रचने के लिए स्‍वयं को दो भागों में बांटा. दाहिने भाग से पुरुष, बाएँ भाग से प्रकृतिका रूप सामने आया। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्‍ट‍ि की अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्‍ठी है। पुराण के अनुसार, ये देवी सभी बालकों की रक्षा करती हैं और उन्‍हें लंबी आयु देती हैं।

''षष्‍ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्‍ठी प्रकीर्तिता |
बालकाधिष्‍ठातृदेवी विष्‍णुमाया च बालदा ||
आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी |
सततं शिशुपार्श्‍वस्‍था योगेन सिद्ध‍ियोगिनी'' ||
(ब्रह्मवैवर्तपुराण/प्रकृतिखंड)

   इन्हीं षष्‍ठी देवी को ही स्‍थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है। षष्‍ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है। जो नि:संतानों को पुत्र प्रदान करती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं। पौराणिक वर्णन के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने ही पहली बार 'छठी माई' की पूजा की थी। इसी के बाद से छठ पर्व मनाया जाने लगा। कहा जाता है कि लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब राम और सीता वापस अयोध्या लौट रहे थें , तब उन्होंने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठी माता और सूर्य देव की  भी पूजा की थी। तब से ही यह व्रत लोगों के बीच इतना प्रचलित है।

छठपर्व का वैज्ञानिक  विश्लेषण
- ---------
 आध्यात्मिक को विज्ञान से जोड़कर परिभाषित करने वाले बड़े भैया आदरणीय सलिल पाण्डेय  ने छठ पूजा पर अपना दृष्टिकोण कुछ इस तरह से रखा है। उनका  कहना है कि  धर्म और विज्ञान दोनों मानता है कि सूर्य की सुबह और शाम की किरणों में जीवनदायिनी शक्तियाँ हैं । आता और जाता सूर्य उस सुसम्पन्न मेहमान की तरह है जो आता है ढेरों उपहार लेकर और जाता है तो घर के सभी सदस्यों को दान-दक्षिणा दे कर जाता है ।
   .उत्तम स्वास्थ्य के लिए 1-मस्तिष्क, 2- हार्ट, 3- लीवर, 4-किडनी, 5- आंतें, 6-रक्त-प्रवाह सही होना चाहिए । इन छः प्रणाली को शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध करने वाले देवताओं की सेना के अधिपति शिवजी के पुत्र कार्तिकेय की पत्नी षष्ठी माता है जिनकी पूजा होती है और यह  सूर्य की बहन है । यानि भाई-बहन शरीर में प्रवेश कर जाने वाले रोग, इंफेक्शन रूपी शत्रु से मुकाबला करने की ऊर्जा देते है ताकि देव-अंश से मिला तन-मन स्वस्थ रहे । सूर्यषष्ठी का पर्व त्याग का भी संदेश देता है । राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव को जब सौतेली माता सुरुचि ने अपमानित किया तब उनकी मां सुनीति ने नीतिगत जीवन जीने के लिए तपस्या की सलाह दी । जंगल में आकर बालक ध्रुव ने पहले अन्न त्यागा, फिर पत्ते, फिर जल, फिर वायु त्याग दिया । इस त्याग के दौरान शरीर में जो तरंगीय ऊर्जा समाहित हुई, वहीं भगवान विष्णु की ताकत कहलायी । डाला छट पर व्रती महिलाएं सबसे पहले  नहाय-खाय के दिन लौकी और भात (चावल), दूसरे दिन खरना में  एक वक्त गुड़-चावल (बखीर) एवं घी लगी रोटी खाती हैं । लौकी पाचक, बलवर्धक एवं पित्त नियंत्रक है जबकि गुड़ पाचक, रक्तशुद्धता, धातुवर्धक, पुष्टिकारक, आयरनयुक्त होता है । तीसरे दिन छठ पूजा को निर्जला व्रत रहने के पीछे शरीर को उन परिस्थितियों के लिए तैयार करने का भी है कि किन्हीं कारणों से यदि किसी वक्त अन्न-जल न मिले तब उस हालात को झेलने के लिए शरीर तैयार रहे । यानि किसी भावी विषम परिस्थिति से जूझने का पूर्वाभ्यास का अंग यह कठिन व्रत । इसके अलावा जब शरीर के रसायन को अन्न-जल के पाचन से मुक्ति मिलती है तब वह तरंगीय शक्ति पूरी दक्षता से संग्रहित करता है । ढलते सूर्य को पानी में  खड़े होकर अर्घ्य के लाभ होते हैं । बहते पानी में नाभि तक खड़े होकर स्नान करने से नाभि के जरिए शरीर के आंतरिक हिस्से को लाभ मिलता है, यह जल-चिकित्सा का भी तरीका है । पूजा के सूप में फल, नारियल, गन्ना, ठोकवा (गुड़-आटे) सभी चिकित्सकीय लाभ की दृष्टि से रखे जाते हैं । अंतिम दिन सुबह स्नान कर नाक के ऊपर से बीच की मांग तक सिंदूर के लाभ से आयुर्वेदशास्त्र भरा-पड़ा है । सिर के बीचोबीच सहस्रार चक्र के पास स्थित पिट्यूटरी ग्लैंड एवं उसके बगल में पीनियल ग्लैंड की जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । खासकर महिलाओं के लिए जब वे इस ग्लैंड के ऊपर से सिंदूर लगाती हैं तब वह एनिमिक (रक्ताल्पता) नहीं होती । खासकर गर्भ धारण के कारण महिलाओं के प्रायः एनिमिक होने का अंदेशा रहता हैं । इस प्रकार डाला छठ का पर्व आंतरिक शुद्धीकरण का पर्व है । सामाजिक  दृष्टि से यह पर्व परिवार को एकसूत्र में बांधता भी है । डाला छठ का पर्व याद दिलाता है कि सिर्फ एक बार नहीं बल्कि जीवन-पर्यन्त सूर्य-किरणों का लाभ लिया जाए तो उसके अनगिनत लाभ हैं । दुर्गा सप्तशती के कवच स्त्रोत में 1-"रक्त, 2-मज्जा, 3-वसा, 4-मांस-5-अस्थि, 6-मेदांसि पार्वती" श्लोक में जिन 6 प्रमुख अवयवों की रक्षा की प्रार्थना की गई है, वह सूर्यकिरणों से पूर्ण की जा सकती है । तन के अलावा मन के स्तर पर भी सूर्य से तेजस्विता मिलती है ।


कसरहट्टी के पीतल के सूप से है बिहार का नाता
-----
  अरे हाँ, यह तो बताना अभी शेष ही है कि अपने कसरहट्टी मुहल्ले से बिहार का पुराना नाता  है।  भगवान भाष्कर को अर्पित किए जाने वाले प्रसाद को छठ घाटों तक ले जाने के लिए बांस के सूप/ दउरा की आवश्यकता होती है।  अनेक श्रद्धालु पीतल से बने सूप/दउरा का प्रयोग भी करते हैं। मीरजापुर  शहर के कसरहट्टी सहित कुछ अन्य मोहल्लों में जहाँ अलौह धातुओं के बर्तन बनते हैं और कभी यहाँ के पीतल के बर्तनों की भारी मांग उत्तर प्रदेश के अन्य जनपदों के अतिरिक्त आसपास के प्रांतों में थी। यहाँ निर्मित पीतल के सूप छठ पर्व पर बिक्री के लिये  बिहार जाता था। पीतल के बर्तन के लिए ख्यातिप्राप्त मीरजापुर में छठ पूजा में प्रयोग किए जाने वाले पीतल के सूप बनाने का काफी पुराना व्यापार रहा है । पहले जहां साधारण सूप बनाये जाते थें,  वहीं अब नक्काशीदार भगवान सूर्य की आकृति के साथ ही छठी मैया के जयकारे  लिखा हुआ सूप बाजार में उपलब्ध है ।  जिसे बनाने के लिए पर्व के आने से चार माह पूर्व ही तैयारी शुरू कर दी जाती है ।
    तो चले , गंगाघाटों की ओर जहाँ मेले जैसा दृश्य है, परंतु हम जिस प्रकृति की देवी का पूजन करते हैं,  आशीर्वाद स्वरूप उनसे संतान चाहते हैं,  उसी प्रकृति को किस तरह से बदरंग कर रहे हैं, यह हमारा कैसा धर्म-कर्म है,  छठ पूजा के बाद घाटों की स्थिति यह बताने के लिए पर्याप्त है।  पूजा के पश्चात भी हमें उसी तरह से घाटों को स्वच्छ कर के जाना चाहिए , जिस तरह से छठपूजा के पूर्व हम किया करते हैं।

 -व्याकुल पथिक
 जीवन की पाठशाला


18 comments:

  1. प्रिय शशि भाई , छठ पर्व की महिमा को बढाता आपका ये लेख बहुत ही स्नेहिल यादों से सजा है | बचपन में त्याहारों की उमंग और उत्साह अलग ही होते हैं | अपनों के साथ खुशियों के वो रंग भुलाये नहीं भूलते |आपने भी सखो कामिनी की तरह पर्व के बारे में बहुत बातें लिखी हैं | मुझे बहुत अच्छा लग रहा है इस अनोखे पर्व के बारे में सबकुछ जानना | आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनायें इस शुभ अवसर पर | साथ में उन समर्पण और श्रद्धा से भरे व्रतियों को कोटि नमन जो इस कठोर निर्जल उपवास को हँसी - ख़ुशी से करते हुए भगवान् दिवाकर और षष्टीमां की निष्काम आराधना करते हुए इस अनुष्ठान को पूरा करते हैं |

    ReplyDelete
  2. आभार दी,
    पर यह लेख काफी लम्बा हो गया है।

    ReplyDelete
  3. Shashi ji ,aapka aalekh dekha,utsavdharmita bhartiyon ke khoon me
    bahti hai,Bharat prakriti
    ke sath tadatmya sthapit
    karte hue jine ka kayal
    hai,mata bhumihi putroham prithivyam
    manyata vedic kal se
    nirantar chali aa rahi
    hai,surya,Chandra,nadi,
    van,parvat,peid,padhe
    sabhi ko jeevant samajhte
    hue har mausam,har mahaul ko samagrata me
    aatmsaat karte hue Bharat
    ne lamba safar tai kiya hai
    Mother earth kab Universe
    huin iski koi nishchit tithi
    nahin hai,ab to
    Saans ka carvan hai ye jivan,pangu ho kar ravan
    hai ye jivan,chhoo bhale
    lo pakad na paoge,bas
    dhuaan hi dhuaan hai yah
    Jivan,
    Mahanagaron ka Aasman
    mera gavah hai,
    Shabash Shashi,go ahead।
    -आदरणीय अधिदर्शक चतुर्वेदी जी की टिप्पणी

    ReplyDelete
  4. एक संग्रहणीय लेख। सूर्य की तरह सभी तत्वों को अपने में समाहित किये हुए जिसे पढ़कर मनोमस्तिष्क की सारी खुराक पूरी हो जाती है। बधाई और आभार। आप रेणु जी के इस प्रश्न का उत्तर दें कि यह त्योहार भौगोलिक रूप से एक क्षेत्र विशेष में ही क्यों मनाया जाता रहा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी प्रणाम , बहुत-बहुत आभार कि आपको मेरा लेख पसंद आया । जहाँ तक रेणु दी के प्रश्न का सवाल है, तो मैं यह कहना चाहूँगा कि इसका सही उत्तर तो भूगोल की जानकारी रखने वाला व्यक्ति ही बता पाएगा, क्योंकि जिस तरह से मकर संक्रांति पर्व पर हमारे उत्तर प्रदेश के " प्रयागराज "का विशेष महत्व होता है। जिसके पीछे सूर्य की किरणों का प्रभाव तथा प्राचीनकाल में विद्वतजनों के समागम और उनकी वाणी से जन्मी सरस्वती प्रमुख कारण है, सम्भव है कि उसी तरह से बिहार में भी छठ पर्व पर पृथ्वी का यह क्षेत्र विशेष अक्षांश हो ,निश्चित ही सूर्य के किरणों का कोई विशेष वैज्ञानिक प्रभाव यहाँ कार्तिक माह के षष्‍ठी के दिन पड़ता हो । मिथिला में राजा जनक के दरबार में अनेक विद्वान थे , संभव है कि उन्होंने इसका अध्ययन किया होगा, क्यों कि लंका विजय के पश्चात माता सीता ने भगवान राम के साथ सर्वप्रथम छठ मैया का पूजन किया था। कालांतर में उन्हें भी पुत्र की प्राप्ति हुई।
      सादर...

      Delete
    2. बहत आश्चर्य हैं शशि भाई | प्रश्न मैंने सखी कामिनी से किया था और उसने भी कोशिश की थी मुझे बताने की, पर उत्तर आपके ब्लॉग पर भी विषय
      पर काफी कुछ मिल गया | वैसे जानकार लोग और भी थे , किसी और ने कोशिश नहीं की | शायद मेरा प्रश्न ही सही नहीं था | सस्नेह आभार आपका |

      Delete
    3. जी दी
      आपका प्रश्न बिल्कुल सही है, जिज्ञासा ही मनुष्य को विकास एवं अध्यात्म की ओर ले जाता है।

      Delete
  5. निष्पक्ष और प्रतिष्ठित चर्चामंच पर मेरे लेख को स्थान देने के लिये आपका बहुत- बहुत आभार अनीता बहन, प्रणाम।
    पिछला लेख नहीं लगा, तो मुझे लगा कि कुछ ठीक नहीं लिख पाया शायद, दरअसल मैं साहित्यकार तो हूँ नहीं न..

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन और ज्ञानवर्धक लेख,

    ReplyDelete
  7. जी प्रणाम दी, धन्यवाद।

    ReplyDelete
  8. छठ पर्व की बहुत ही सविस्तर और रोचक जानकारी पढ़कर बहुत कुछ जानने मिला। बहुत ज्ञानवर्धक आलेख।

    ReplyDelete
  9. आप मेरे ब्लॉग पर आयी, यह मेरे लिये हर्ष का विषय है।
    प्रणाम, आभार।

    ReplyDelete
  10. आदरणीय शशि जी छठपर्व का बहुत ही सुंदर और विस्तृत वर्णन किया हैं आपने,छठपर्व के पारिवारिक ,सामजिक ,वैज्ञानिक और भगौलिक प्रत्येक पहलुओं पर प्रकाश डाला हैं ,रेणु बहन को व्रत के बारे में बहुत कुछ जानने की जिज्ञासा थी , यकीनन उन्हें अब संतुष्टि मिली होगी ,ये छठपूजा हम बिहारियों का गौरव हैं और मुझे बेहद ख़ुशी हो रही हैं कि जो व्रत सिर्फ बिहार तक सिमित था आज मान -सम्मान के साथ उसकी चर्चा चहुँ और हो रही हैं। सादर नमन

    ReplyDelete
  11. जी कामिनी जी आपकी टिप्पणी से मेरी लेखनी सार्थक हुई , प्रणाम।
    बहुत-बहुत आभार।

    ReplyDelete
  12. बहुत सुंदर लेख भैया। इतना अच्छा लिखते हैं और फिर कहते हैं कि मैं कोई साहित्यकार तो हूँ नहीं। इतनी अच्छी भाषा तो मुझे इतनी पढ़ाई करके भी नहीं आती।
    छठ पर्व के हर पहलू को आपने इस लेख में समाहित कर लिया। सच में संग्रहणीय लेख है।

    ReplyDelete
  13. जी दी आपके इस उत्साहवर्धन से मुझे अति प्रसन्नता हुई। सत्य कहा बस मैं एक साधारण पत्रकार हूँ , वरिष्ठजनों के आशीर्वाद से माँ सरस्वती ने मुझे अभिव्यक्ति का कुछ सामर्थ्य प्रदान किया है।
    आपका स्नेहाशीष बना रहे।

    ReplyDelete
  14. बहुत ही संग्रहणीय लाजवाब लेख ...छठ पर्व के बारे में जानकारी मिली अभी तक सिर्फ सुना था अब आपको पढकर यह पर्व और भी लुभा रहा है...हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई आपको।

    ReplyDelete
  15. जी ,आपकी प्रतिक्रिया से मेरा लेखन कार्य सफल हुआ,प्रणाम।

    ReplyDelete

yes