प्रीति का ये कैसा रंग ..!
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" जान ! ये मेरा आखिरी वैलेंटाइन डे है।"
मोबाइल पर बात करते हुये सोनाक्षी कुछ इसतरह रुआँसी हो गयी थी कि सुमित तड़प उठा था।
उसने खुद को संभालते हुये कहा- " यूँ उदास न हो ,मेरे मनमंदिर में तुम सदैव रहोगी।"
सोनाक्षी- " मैं तो अगले वर्ष बहुत दूर चली जाऊँगी, परंतु तुम..?"
सुमित- " तुम्हारी ये तस्वीर है न..ताउम्र साथ निभाएगी .. । "
सोनाक्षी- " तुम भी न जान , पागल कहीं के .. काश ! मैं हमेशा केलिए तुम्हारी हो पाती ..।"
【 ठीक एक वर्ष बाद पुनः वैलेंटाइन डे पर..】
उदास सुमित मन की थकान मिटाने एक कॉफी हाउस में इंट्री करता है। तभी उसकी निगाहें पीछे की कुर्सी पर बैठी बादामी रंग का शूट पहने एक युवती पर जा टिकती हैं । हाथ में कॉफी का कप लिये खिलखिला रही उस लड़की को वह फटी आँखों से देखते रह जाता है..।
" अरे ! ये तो सोनाक्षी ही है। और साथ में यह युवक कौन है ? "
" केशव के फोटो से तो इसकी शक्ल मिलती नहीं है.. फिर कौन है ? "
जो दृश्य वहाँ देखा उसपर विश्वास नहीं कर पा रहा था सुमित..।
और फिर अगले दिन हृदय के बोझ को कम करने केलिए वह सोनाक्षी को फोन करता है।
" अच्छा- अच्छा , तो तुम हमारी जासूसी करने लगे हो..।"
क्रोध से तमतमाई सोनाक्षी का ऐसा कठोर स्वर सुनकर स्तब्ध रह गया था सुमित..।
सोनाक्षी - " अब देख ही लिया ,तो सुनो ..ये मेरा नया ब्वॉयफ्रेंड है..।"
" पर- पर , तुमने तो कहा था कि मेरे अलावा और किसी से बात तक नहीं करती हो.. तुम्हारी तो केशव से शादी होनी है ? .. और मुझे जो जान कह ' आई लव यू ' कहा करती थी , वह सब .. ? "
भारी हताशा में सुमित ने एक ही सांस में सारे प्रश्न पूछ डाले..।
किन्तु प्रतिउत्तर में सोनाक्षी जोर से ठहाका लगाती है.. ।
" क्यों बच्चों जैसी बात करते हो जासूस महोदय ..तुम मेरे हो कौन यह सब पूछने वाले.. ?
एक बात कान खोल कर सुन लो , यह जो मेरा नया ब्वायफ्रेंड है न , मैं इसकी बीवी भी नहीं बनने जा रही हूँ ..मेरा विवाह तो उसी बड़े घराने में होगा , जहाँ अभिभावकों ने तय कर रखा है। इकलौती बेटी और अपने घर की इज्ज़त जो हूँ मैं ?
और हाँ, सुनो यार ! ..यह दुनिया मौज मस्ती की है। तुम भी मेरे लिए टाइम पास थे और यह भी है .. ओपेन मांइड के हैं हम ..। "
सोनाक्षी ने बिना किसी ग्लानि के जिस उपहास भरे लहजे में उसके निर्मल प्रेम का पोस्टमार्टम कर दिया , उस वेदना से तड़प उठता था सुमित..।
उसके जीवन में अब फिर कभी वैलेंटाइन डे नहीं आएगा ..।
-© व्याकुल पथिक
सोनाक्षी जैसे लोग ही पवित्र प्रेम को बदनाम करते हैं। लेकिन सभी लडकियां सोनाक्षी जैसी नहीं होती। इसलिए सुमित को निराश नहीं होना चाहिए...उसके जीवन में भी वैलेंटाइन डे फ़िर कभी आ सकता हैं!
ReplyDeleteजी आभार आपका ज्योति दी।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति शशि जी ,लेकिन सुमित जैसे भी अब नहीं मिलते
ReplyDelete"यह दुनिया मौज मस्ती की है। तुम भी मेरे लिए टाइम पास थे और यह भी है .. ओपेन मांइड के हैं हम "
ये कथन सत्य हैं ,आज सभी युवाओं का नजरिया यही हैं।
सादर नमन आपको
जी , कामिनी जी आभार।
Deleteबस जो देखता हूँ, लिख देता हूँ।
जी यशोदी दी आभार।
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ReplyDeleteप्यार जैसी चीज़ को सब नहीं निभा पाते। कभी ये तो कभी वो नहीं निभा पाते। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि दोनों निभाने में कोई यक़ीन नहीं रखते। इससे किसी की ज़िंदगी ख़त्म नहीं होती। हर रात के बाद एक नया दिन आता है। जब भी किसी को मौक़ा मिलता है, वो किसी और का हो लेता है। आग तो हर तरफ़ लगी हुई है। इसमें बुराई भी क्या है। आख़िर, मनुष्य एक सामाजिक बुराई ही तो है। जिस मोहब्बत में बेवफ़ाई न हो, उसमें रोमांच कहाँ। प्यार में धोखा खाने वाले प्यार पर विश्वास करना छोड़ देते हैं। दूसरी ओर प्यार को मौज़-मस्ती समझने वाले बड़ी क़ामयाबी से नए-नए रास्ते तय करते रहते हैं। सच में दुनियाँ बहुत आगे है। न हर लड़की सोनाक्षी होती है, न हर लड़का सुमित होता है। प्यार से ही तो ज़िंदगी चलती नहीं। किसी भी प्यार को चलाने के लिए पैसों की बड़ी ज़रूरत होती है। कई लोग कहते हैं कि पैसा है, तो सब कुछ है। एक चर्चित नेता ने कहा था कि पैसा ख़ुदा तो नहीं, पर ख़ुदा से कम भी नहीं। जो दिल के साफ़ होते हैं, वो सभी को दिल का साफ़ समझते हैं। ऐसे लोग ही धोखा खाते हैं। अगर ज़िंदगी में धोखा नहीं खाया, तो फिर क्या खाया। जिसने भी धोखा खाया, उसी को ज़िंदगी जीना आया। प्यार-मोहब्बत शायरों के बड़े काम की चीज़ है। वाह-वाह हौसला तो देता है, लेकिन बिना पैसों के काम नहीं चलता। कोई आपको धोखा देकर चला जाए, तो समझ लीजिए कि उसने आपका कल्याण कर दिया है। आज़ाद होकर जीना, वफ़ा और बेवफ़ा की चिंता न करना मायने रखता है। तड़पना ठीक नहीं है, उस तड़प से आगे बढ़ना ठीक होता है। लैला-मजनूँ सिर्फ़ क़िस्सों में मिलते हैं। ज़िंदगी हताशा और निराशा का नाम नहीं है, ज़िंदगी आगे बढ़ने का नाम है
ReplyDeleteशशि भाई, बेहतरीन लघुकथा आपने लिखी है। आप एक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी हैं। एक पत्रकार का बहुआयामी होना महत्त्वपूर्ण है। पत्रकारिता जगत् में यह बड़े सम्मान की बात है। शशि भाई, जब भी मैं आपको पढ़ता हूँ, तो मेरे ज़ेहन में उथल-पुथल मच जाती है। वाक़ई , आपका लेखन एक क़ामयाब लेखन है। बहुत बधाई। 💖
जी अनिल भैया आपने बहुत ही सार्थक टिप्पणी की है । कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँँ हमें उस आनंद की ओर ले जाती हैं, जहाँँ सभी का पहुँँच पाना संभव नहीं होता है।
ReplyDeleteआपका मार्गदर्शन इसी तरह प्राप्त होता है,मैं ऐसी कामना आप से करता हूँँ।
प्रिय शशि भाई , अनिल यादव जी के लिखने के बाद मुझे लगता है मेरे कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं | हर एक अनुभव जीवन में बड़ी सीख देकर जाता है |सोनाक्षी जैसी लडकियाँ प्रेम का तिरस्कार करती हैं तो एक सच्चे इंसान को सदा के लिए एक जख्म भी दे देती हैं | बहुत मार्मिक लघुकथा है जो प्रेम के काले पक्ष को दर्शाती हैं | लेकिन सभी लडकियाँ सोनाक्षी जैसी बेवफा हों ये जरूरी तो नहीं | सस्नेह --
ReplyDeleteजी दी , उचित कहा आपने।
Deleteआज बहुत से लोग ऐसे हैं लेकिन इसमें प्रेम कहीं है ही नहीं प्रेम का भ्रम मात्र है जहाँ प्रेम है वहाँ सिर्फ़ प्रेम और शाश्वत प्रेम हौता है फिर वफा बेबफाई विश्वास अविश्वास मायने ही नहीं रखता....।
Deleteबहुत ही सुन्दर सार्थक विचारोत्तेजक लघुकथा।
मनोबल बढ़ाने के लिए हृदय से आभार सुधा दी।
Deleteआपका आभारा आँचल जी।
ReplyDeleteआधुनिक युग का बेपर्दा सत्य ।
ReplyDeleteसटीक , सार्थक लेखन शशि भाई।
आभार कुसुम दी।
DeleteBhai sb,
ReplyDeleteaap ki abhivyakti ka shuruaati viyog-pradhan bhag sa-hriday paatkak ke mann me sachche premiyon ke prati barbas dayaa ka bhao paida kar deta hai, jab ki uttaransh vartmaan ki aanshik hakeeqat🙏🏻
एक वरिष्ठ अधिकारी की प्रतिक्रिया
[18/02, 09:10] मालवीय जी : 'प्रीति का कैसा ये रंग' की कहानी सचाई भरी एक कड़वी कहानी है,वास्तव में प्रेम-प्यार का अर्थ करने में ही सब अटक जाते हैं अथवा समझने तक बहक जाते हैं," ये रूप क्या है?
ReplyDeleteसुनहली भोर है,
ये धूप क्या है?
सूरज का शोर है,
ये प्यार-प्रेम क्या है?
मन की एक उमस,
बाॅधो तो जंजीर,
तोड़ो तो डोर है "
[18/02, 09:13] मालवीय जी : प्रिय शशि जी आपकी मन को छूती हुई कहानियाॅ बहुत भाती हैं,आप सदैव स्वस्थ और प्रसन्न रहिये
[18/02, 09:15] मालवीय जी: रमेश मालवीय, अध्यक्ष भारत विकास परिषद् "भागीरथी"
दर्द से भरे समन्दर का जब भी मंथन होता है, साहित्यिक नीलकण्ठ मिलते हैं। जिनसे कुछ लिया ही जा सकता है।
ReplyDeleteआपकी रचनाएं एक साहित्यिक समन्दर ही है जिसमें मजा ही मजा है, ज्ञान ही ज्ञान है।
हरिकिशन अग्रहरि
अहरौरा से