सच्चा सम्मान
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर नगर के कई स्थानों पर सम्मान समारोह आयोजित था। ऐसी गोष्ठियों में नारी सशक्तिकरण पर बढ़-चढ़कर चर्चा हो रही थी। समाजसेवा सहित अन्य क्षेत्र में पहचान रखने वालीं महिलाएँ, आयोजक एवं मंच संचालक पूरी तैयारी से आये हुये थे। आधी आबादी के समर्थन में , उनके विकास, समानता के अधिकार और मान-सम्मान पर हो रहे आघात के लिए शेष आधी आबादी के तथाकथित दोषियों के विरुद्ध आग उगलते एक से बढ़कर एक शब्दबाणों ने कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिये थे। जिससे तालियों की गड़गड़ाहट से कार्यक्रम स्थल गुंजायमान हो उठा था।
मुख्य अतिथि से सम्मान पत्र लेने के लिए कार्यक्रम में सभ्य समाज की आमंत्रित महिलाओं के चेहरों पर मुसकान था। संचालक प्रत्येक का नाम पुकारता और फिर जैसे ही वह उनके सामाजिक कार्यों का वर्णन करता; कक्ष एक बार पुनः इनके जयघोष से गूंज उठता था। इस सफल कार्यक्रम से सभी हर्षित थे। सेल्फी और ग्रुप फोटोग्राफी के माध्यम से इन यादगार पलों को तत्क्षण सोशल मीडिया में साझा किया जा रहा था।
इन महिलाओं के मध्य एक भी स्त्री ऐसी नहीं दिखीं, जो श्रमिक वर्ग से हो, जिनके श्रमजल अश्रु बन मुसकाते हो , क्योंकि यहाँ भी जुगाड़तंत्र का कड़ा पहरा था, तो फिर इस वर्ग की महिलाओं की खोज की आवश्यकता ही किसे थी कि उन्हें भी महिला दिवस पर सम्मान मिले।
उधर, इस आयोजन से दूर शहर के मध्य स्थित सभ्य जनों की रैदानी कालोनी के समीप एक अस्सी वर्षीया वृद्धा गिट्टी तोड़ रही थी। ऐसे किसी समाजसेवक की दृष्टि उसकी ओर नहीं गयी थी। उसके श्रम को पुरस्कृत करना तो दूर, सम्भवतः किसी ने उसे सम्मान से पुकारा भी न होगा। इनमें से किसी को भी उसमें कोई रुचि नहीं थी। वह बुढ़िया सिर झुकाएँ पत्थर तोड़े ही जा रही थी।
अचानक आज का दिन उसके लिए तब विशेष हो गया, जब मंडलीय अस्पताल चौकी प्रभारी रामवंत यादव की नज़र पड़ गयी । धूप में ईंट-पत्थर तोड़ती वृद्धा को पूरे जोश के साथ अपने बुढ़ापे को चुनौती देते देखकर वे बिल्कुल चकित रह गये।
यह सोचकर कि वह निराश्रित होगी, इसी जिज्ञासा में उन्होंने उससे प्रश्न किया- " मैया , क्या घर पर कोई नहीं है ? "
"नाही दरोगा बाबू , सबलोग हैय अउर ऊ हमके मानत भी हैन ..।"
वृद्धा की ये बातें उपनिरीक्षक श्री यादव को पहेली-सी लगी। अतः उन्होंने उससे इस अवस्था में अर्जुनपुर गाँव से शहर आकर इतना कठोर परिश्रम करने का कारण जानना चाहा।
वृद्धा ने स्वाभिमान से कहा- ''जब तक भुजाओं में बल है , तब तक वह मेहनत- मशक्कत से पीछे क्यों हटे।"
नारी दिवस पर उस अनपढ़ वृद्धा की कर्मठता के समक्ष दरोगा जी नतमस्तक थे । वे मन ही मन बुदबुदाते हैं कि "काश ! किसी विशेष दिवस पर ऐसी भी महिलाओं को प्रतिष्ठित मंच से सम्मान मिलता।"
और तभी श्री यादव को ख्याल आता है कि वृद्धा भूखी भी हो सकती है। प्रतिउत्तर में जब उसने सकारात्मक मुद्रा में सिर हिलाया तो चौकी प्रभारी श्री यादव ने बड़ी आत्मीयता से उस वृद्ध मैया को भोजन ग्रहण करवाया । इस पर बुढ़िया की आँखें छलक उठीं। वह दरोगा बाबू को अपने संतानों से भी कहीं अधिक दुआ देती है।
आज नारी दिवस पर किसी स्त्री का एक पुरूष के हाथों यह सबसे बड़ा सम्मान था।
- व्याकुल पथिक
महिला दिवस पर सम्मान प्रदर्शन ढकोसलेबाजी है इस बात को कौन नहीं जानता?
ReplyDeleteलेकिन वृद्धा की हिम्मत और जज्बे को सम्मान मिला ये आज का सबसे बड़ा सम्मान है। जिसमे कोई दिखावा नहीं।
सार्थक रचना रचते रहिये।
अच्छा लगता है।
नई पोस्ट - कविता २
धन्यवाद भाई जी, आज बुखार कुछ ज्यादा है। कल मैं आपकी रचना पढ़ कर प्रतिक्रिया देता हूँँ, शुभ रात्रि।
ReplyDeleteबहुत खूब। यही हाल है आजकल।
ReplyDelete--
रंगों के महापर्व
होली की बधाई हो।
आभार गुरु जी प्रणाम।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका यशोदा दी।
Deleteजब तक मनुष्यों में प्रेम और करुणा है मानवता जीवित रहेगी। इस कहानी में दो ही किरदार हैं, एक तो वह महिला, दूसरा वह सब इंस्पेक्टर है। दोनों ही मिलकर समाज के एक ऐसे पहलू को उजागर करते हैं, जो हमें चौंकाता है। इसका कारण यह है कि तमाम महिलाएं उपेक्षा की स्थिति से गुज़र रही हैं। उनका कोई ध्यान रखने वाला नहीं है। लेकिन यहाँ पर जिस पुलिस बल से मानवता की उम्मीद नहीं की जाती है, उसी पुलिस बल में मानवता का एक पुजारी अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को अतिशय सम्मान देता है। बहुत बढ़िया लिखा है शशि भाई। इस प्रकार की कहानियों को सदैव समाज के समक्ष लाना चाहिए।
ReplyDeleteजी अनिल भैया,
Deleteजो मैं देखता हूँ अथवा जो मेरी अपनी अनुभूति है, वही ब्लॉग पर लिखता आ रहा हूँ।
जिसे कुछ ने नकारात्मक बता उपहास किया, तो कुछ ने वास्तविक कह मनोबल बढ़ाया भी , आपकी प्रतिक्रिया मुझे सदैव दिशा देती है।
पुलिस का यह रूप सराहनीय एवं अकल्पनीय है, ईश्वर सभी को यह सद्बुद्धि दें, सुरेश सर्राफ
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-03-2020) को "होलक का शुभ दान" (चर्चा अंक 3637) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के महापर्व होलिकोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार गुरुजी
Deleteबहुत ही हृदयस्पर्शी लेख....एकदम सटीक ...
ReplyDeleteसचमुच ऐसे बहुत लोंग ह़ै जो सच में सम्मानप्राप्ति का सच्चा अधिकार रखते हैं ....
शशि भैया, एक दिन महिला दिवस के नाम एक तमाशा भर ही है, ये बात तो तय ही मानिये। ये शोर - शोराबा एक सीमित वर्ग तक ही रहता है। नारी को ये सम्मान नहीं दिल से सम्मान चाहिए। ये लघु कथा यही कहती कि अगर किसी को सम्मान करना है , तो कोई खास दिन नहीं हर दिन महिला दिवस है। संवेदनशील रचना के लिए साधुवाद 🙏🙏
ReplyDeleteजी दी , उचित कहा आपने
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