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Friday 10 April 2020

सैनिकों जैसा अनुशासन

          सैनिकों जैसा अनुशासन
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     तीन सप्ताह के लॉकडाउन के दौरान अपने शहर मीरजापुर में यह देखने को मिल रहा है कि एक बड़ा वर्ग संवेदनशील विषय पर भी गंभीर नहीं है। वह अकारण अनुशासन भंग कर अपने परिवार एवं समाज के लिए संकट का कारण बना हुआ है। सड़कों एवं गलियों में चहलक़दमी कर रहा है। पुलिसकर्मियों को डंडा ले बार-बार बिना मास्क लगा रखे ऐसे युवाओं को दौड़ाना पड़ रहा है। यहाँ भी आधा दर्ज़न जमती छिपे हुये थे। जिनमें से दो कोरोना पॉजिटिव पाये गये। फ़िर हवाबाज़ी शुरू हो गयी और एक वृद्धा की कोरोना से मृत्यु की झूठी ख़बर भी ट्वीट कर दी गई।
    यह सब देख मेरे मन में एक सवाल उठता है -- काश ! सैनिकों-सा अनुशासन ऐसे लोगोंं में भी होता ? यदि किसी व्यक्ति के पास अनुशासन नहीं है, तो वह अपने परिवार, समाज और देश की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी नहीं ले सकता है।
      वैसे, छात्र जीवन में राष्ट्रीय पर्वों पर रगों में जोश भरने वाले गीत -ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का.. के अतिरिक्त सैनिकों के संदर्भ में मुझे कोई विशेष जानकारी नहीं थी। हाँ, इतना जानता था कि हम सुरक्षित हैं, क्योंकि देश की सीमा पर तैनात हमारे जवान शत्रुओं से हमारी रक्षा करते हैं। वे हमारे लिए अपने प्राणों की आहुति दिया करते हैं, किन्तु हम वर्ष में दो बार भी अपने राष्ट्रनायकों और बलिदानी शहीदों को ठीक से याद नहीं करते हैं। बालमन में ऐसी जिज्ञासा थी कि कहीं ऐसे राष्ट्रीय पर्व , शहीद दिवस इत्यादि औपचारिक मात्र तो नहीं है।
   हाँ, नानी माँ अकसर 1971 के भारत- पाक युद्ध के संदर्भ में चर्चा करती थीं। तब वे सभी सिलीगुड़ी( पश्चिम बंगाल) में रहती थीं, मेरा भी जन्म हो चुका था और युद्ध की दृष्टि से यह एक संवेदनशील क्षेत्र था, तो ब्लैक-आउट के दौरान उन्हें किस तरह की सावधानी बरतनी पड़ती थी, संबंधित में अनेक रोचक बातें बताया करती थीं। 
   वैसे मैं उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार के कई जनपदों में रहा, हर वर्ग के लोगों से मेरी जान पहचान रही, किन्तु दुर्भाग्य से सेना के किसी भी ज़वान से मेरी मैत्री कभी नहीं रही , न ही कभी किसी सैन्य शिविर में जाने का अवसर ही मिला है।
          इंटरमीडिएट की परीक्षा देने के पश्चात जब कालिम्पोंग गया था , तो छोटे नाना जी के मिष्ठान भंडार पर सेना के अधिकारी अपने विशेष कार्यक्रमों में मिठाई का ऑर्डर बुक कराने आया करते थे। हजार -डेढ़ हजार की संख्या में वे छेने की मिठाइयाँ ले जाते थे, किन्तु कभी कमीशन की मांग नहीं की। हाँ, स्वच्छता,अनुशासन अतिथि सत्कार के वे अभिलाषी थे। प्रतिष्ठान पर कैप्टन , मेजर आदि आते थे। सो,उनके साथ किस तरह का व्यवहार करना है। वह छोटे नाना जी ने मुझे बता दिया था। नाना जी स्वयं भी अपने समय के जानेमाने बॉक्सर थे , अतः वे यूपी और बिहार प्रांत के इन सैनिकों को देख हर्षित हुआ करते थे। इन सैनिकों की मुझे जो बात पसंद थी, वह इनकी पारदर्शिता ही थी। वहीं पहाड़ पर एक लैफ्टिनेंट कर्नल के बंगले को देखने का अवसर मिला। धनाढ़य जनों से कहीं अधिक वह बंगला सुसज्जित दिखा।यह देख मैं आश्चर्यचकित रह गया। उन्होंने कहा था- " सेना का अधिकारी हो या जवान सभी दिल खोल के ख़र्च किया करते हैं। अगला जन्म किसने देखा है। "
   और यहाँ मीरजापुर में जब आया तो एक वृद्ध अवकाश प्राप्त सैनिक को गांडीव अख़बार दिया करता था। उन्होंने अपने घर का नाम सैनिक- कुटीर रखा था। यह निःसंतान दम्पति मुझे पुत्रवत  स्नेह देता था। देर शाम जब मैं समाचर पत्र लेकर  पहुँचता तो चाय लिये वे दोनों मेरी प्रतीक्षा करते मिलते । बूढ़े बाबा कई दशक पहले रिटायर हो गये थे। पेंशन भी मामूली मिलती थी। लेकिन, सेना वाला ही अनुशासन घर पर था। प्रातः समय से उठना , साफ़-सफ़ाई से लेकर , तुलसी के बड़े-बड़े पौधों में पानी डालना, बाज़ार से सामान लाना और पत्नी के अस्वस्थ होने पर वे स्वयं भोजन भी पकाने का कार्य वे किया करते थे।वर्ष में एक बार रामायण पाठ करवाते और उसके समापन पर प्रसाद-भोज भी। उसी पेंशन से अपने सारे सामाजिक एवं धार्मिक कर्तव्यों का निर्वहन करते थे। जब मैं उनके निवास पर जाता तो मुझे देख वे अपना चिलम किनारे रख ,मुस्कुराते हुये कहा करते -" बेटा, यही एक अवगुण है, अन्यथा सेना में रह कर भी मैंने कभी शराब तक को हाथ नहीं लगाया था ।" 
              वे सफ़ाई कर्मियों के मुहल्ले में रहते थे, जो शाम ढलते ही मदिरापान कर झगड़ते रहते थे। यह देख मैं अक़्सर उनसे कहता कि इन्हें भी अपनी तरह अनुशासित जीवन जीने की कला सीखा दें , तब समझूँ आप एक फ़ौजी हैं। यह सुनकर पलटकर वे कहते कि बिल्कुल सुधर जाएँगे, बस इज़राइल की तरह  यहाँ भी सभी नागरिकों को सेना में जाना अनिवार्य कर दिया जाए। वहाँ लड़कों को तीन वर्ष और लड़कियों को दो वर्ष का सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है। सम्भवतः इसीकारण दुनिया के एकमात्र छोटे से यहूदी राष्ट्र इज़राइल की सैन्य-शक्ति का लोहा पूरी दुनिया मानती है। 
           मेरा भी यही मानना है कि हम जिस भी क्षेत्र में हो, किन्तु सैनिकों के कुछ गुण जैसे अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और राष्ट्रभक्ति हममें होना ही चाहिए। यदि हम सभी सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किये होते, तो सम्भव है कि  ये जमाती अपने वतन के प्रति वफ़ादार होते और कथित धर्मगुरु इन्हें मज़हब के नाम पर ग़ुमराह नहीं कर पाते। धर्म और राजनीति के ठेकेदारों का बाज़ार यूँ न चटकता। ज़िम्मेदार पदों पर होकर भी लोग इसतरह भष्टाचार में आकंठ न डूबे होते। 
            मैंने कई बार अवकाश पर घर आये सैनिक को सरकारी विभागों में व्याप्त भष्टाचार से संघर्ष करते देखा है। उसे सफलता न भी मिली हो, फ़िर भी अन्याय के विरुद्ध एक आवाज़ तो उठी ?
      अरे हाँ ! कलम का सिपाही तो हम पत्रकारों को भी कहा जाता है। परंतु एक सैनिक की तरह ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा अब हममें भी नहीं रही। हम जुगाड़तंत्र के हाथों की कठपुतली हैं। इसीकारण देश की राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था का सही दृश्य जनता के समक्ष नहीं रख पाते हैं।  इसीलिए यदि सुव्यवस्था चाहिए तो सर्वप्रथम हमें सैनिक बनना ही होगा। ऐसा सैनिक जो अनुशासित ,निर्भीक, स्पष्टवादी, नैतिक मूल्यों से ओतप्रोत हो, कठिन चुनौतियों में भी जिसके चेहरे की मुस्कान कम न हो, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ऊपर उठ कर वह राष्ट्र के प्रति समर्पित हो। 
   देश के प्रति हमसभी का कुछ कर्तव्य होता है।  हम भष्टाचार, भाई-भतीजावाद,धार्मिक पाखंड जैसा कि इन दिनों जमाती कर रहे हैं और  रूढ़ीवाद अथवा  कथित प्रगतिशीलवाद से ऊपर उठकर सर्वप्रथम राष्ट्रवाद को महत्व देते ,उसके प्रति अपने नागरिक दायित्व को समझते, बातें बनाना छोड़ , सैनिकों की तरह ही माँ भारती के लिए अपना शीश देने को तत्पर रहे।और एक सच्चा सैनिक देश में कितनी ही समस्यायें क्यों न हो, लेकिन अपने राष्ट्र की बुराई कभी भी नहीं करता।...जयहिंद ।

                              -व्याकुल पथिक
👇👇👇 https://youtu.be/J_94ROL
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25 comments:

  1. लॉकडाउन तो यही कहता है कि लोग अपने घरों में क़ैद रहें। यह फ़ैसला सरकार का है। जनता के हित में है, ताकि उसके स्वास्थ्य को कोई ख़तरा न हो। पूरा प्रशासनिक अमला कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए तैनात कर दिया गया है। जनता को तो सहयोग करना होगा, वरना सुरक्षा के लक्ष्य को पाया नहीं जा सकता। इन सबसे परे हम ऐसी ज़िंदगी जीते आए हैं, जहाँ पर इस तरह की कोई पाबंदी न थी। अचानक जब कोई पाबंदी आयत कर दी जाती है, तो हमें बड़ी बेचैनी होती है। हमने ऐसी भी महिलाओं को देखा है कि घूंघट में अपनी पूरी ज़िंदगी दीवारों के भीतर गुज़ार देती हैं। ऐसी भी महिलाओं को देखा है जो सिंगल मदर रूप में हर ग़म को पीते हुए अपने बच्चों की परवरिश करती हैं। न जाने कितने 21 दिन उनकी ज़िंदगी में आते हैं और चले जाते हैं। कोई भी ज़िंदगी लगातार पाबंदियों में नहीं जीती है। एक सीमा बाद उसे भी आज़ादी चाहिए। ऐसा कभी नहीं हुआ था कि लंबे अरसे के लिए सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया जाए। यह अभूतपूर्व है। हम आपदा से डरे हुए हैं, लेकिन ज़्यादा पाबंदियाँ हमारे मन के अंदर से डर निकाल देती हैं। कई ऐसे लोग भी पाबंदी उल्लंघन करते हुए सड़क पर आ रहे हैं, क्योंकि उनके पास एक ही कमरा है। जब वो काम पर चले जाते थे, तो परिवार के दूसरे सदस्य थोड़ा-सा स्पेस पाते थे। लॉकडाउन ने इस अवसर को छीन लिया है। जिनके पास नौकरियाँ है, उन्हें कम चिंता है, लेकिन जिनके पास कुछ भी नहीं है, उन्हें बहुत चिंता है। ज़िंदगी को फिर शुरू करना है। हालात को फिर सामान्य करना है। कितना वक़्त लगेगा किसी को पता नहीं। इतना तो तय है कि काफ़ी कुछ बदल जाएगा। हो सकता है कि नए अवसर मिलें, नए रास्ते मिलें। यह मनुष्य संभावनाओं के बल पर ही जीता है और अपनी आशा को कभी छोड़ता नहीं। यही कारण है कि बीच-बीच में लोग सड़क पर आकर इधर-उधर झाँक रहे हैं। वैसे उन्हें पूरे अनुशासन के साथ निर्धारित अवधि तक इस लॉकडाउन का पालन करना चाहिए, ताकि जल्दी ही हमें आज़ादी मिले और हम सुरक्षित माहौल में जी सकें।

    आपने सैनिकों जैसी अनुशासन की बात कही है।‌ सैन्य संस्कारों के लिए सरकार की नीतियाँ और परिवार की पृष्ठभूमि बहुत मायने रखती है। वैसे हर घटना हमें प्रशिक्षण देती है। जैसे इस लॉकडाउन की घटना ने हमें प्रशिक्षण दिया है। यह अनुभव बहुत बड़ा है। देखा जाए तो देश ने दिखा दिया कि कैसे एकजुट रहा जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि शुरुआत में लगा कि कुछ लोगों का ख़्याल नहीं रखा गया है, लेकिन अब सरकार विशेष योजनाएँ लेकर गरीबों के सामने हाज़िर है। निश्चित रूप से हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी दृढ़ता के मनोविज्ञान को समझते हैं और उस पर पूरी तरह से खरा उतरने का प्रयत्न करते हैं। राज्यों की सभी विचारधारा की सरकारें उनके साथ हैं। देश की जनता भी सरकार की कठिनाइयों को समझती है। छोटी-मोटी घटनाओं को छोड़ दे, तो लॉकडाउन हमारे देश में कामयाब है और सही समय पर लिया गया निर्णय था।

    शशि भाई आपने अपने तमाम संस्मरणों को हमारे सामने रखा है, निश्चित रूप से हम सबके लिए प्रेरणादायक है। हमेशा की तरह बढ़िया लेखन।💖

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    1. मैं जिस होटल में रहता हूँ , उसके सामने एक मुस्लिम परिवार रहता है। दर्जनों की संख्या में बच्चे और स्त्री- पुरूष एक ही मकान में रहते हैं। छोटे- छोटे कमरे हैं। हाँ प्रधानमंत्री आवास योजना का कुछ लाभ मिल गया है। परंतु लॉकडाउन में वे इन कमरों के कैसे रहते अब। सो, दो दर्जन सदैव घर के बाहर सड़क पर दिखते हैं। पुलिस संग लुकाछिपी इनका चलता रहता है यदि शहर में इस महामारी का प्रभाव होता तो क्या होता ? इनके बच्चे तो बाहर नाली में शौच तक करते हैं।
      अब कौन अनुशासन इन्हें बाँध सकता है।
      देश में जबतक जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई ठोस कदम न उठाया जाए। हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं।
      ऐसी ही स्थिति मलिन बस्तियों की भी है । वहाँ भी ऐसा ही दृश्य देखने को मिलेगा।
      आपने अपनी प्रतिक्रिया में बहुत कुछ स्पष्ट किया है। इसके लिए आपका अत्यंत आभार । आप सदैव किसी भी लेख को विस्तार देकर उन तथ्यों को भी समेट देते हैं जो उसमें इंगित ना हो। धन्यवाद अनिल भैया।🌹🙏

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  2. शशि जी जब तक आम नागरिक अपने हित और अहित को स्वयं नहीं समझेगा वो अनुशासन का महत्व भी नहीं समझ पायेगा और समाज को इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा।

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    1. जी उचित कहा प्रवीण जी आपने

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  3. अद्वितीय लेखनी

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  4. जीवन में अनुशासन की बडी महत्ता है । अनुशासित जीवन ही जीवन है ।
    देवी प्रसाद गुप्ता

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  5. 🤙 बहुत बढ़िया,राष्ट्र के प्रति संजीदगी की मार्मिक अनुभूति 💐
    - सत्यम कुमार पत्रकार, अहरौरा

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  6. भैया लोगो की अनुशाशन के साथ सामाजिक जिम्मेदारी बनती है कि इस वैश्विक महामारी के लिए शासन द्वारा जारी दिशानिर्देश का पालन करे सभी को यह समझना चाहिए कि यह कोई लुका छुपी का खेल नही चल रहा है यह वायरस है जो यही किसी की संक्रमित करता है तो पूरे समाज की उससे खतरा हो सकता है। सरकार जानती है कि यदि अन्य देशों की तरह स्तिथि यहां हुई तो हमारे पास तो संसाधन भी नही है और जनसंख्या बहुत ज्यादा है। इस लिए अनुशाशन की जगह जिम्मेदारी समझे और दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करे।

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    1. जी आपने बिल्कुल उचित कहा , सावधानी हटी नहीं कि दुर्घटना घटी।

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  7. निश्चित तौर पर कुछ चंद लोगों की बेजा लापरवाही ओं से वैश्विक महामारी कोरोना को और भी विकराल रूप लेने का भय बना हुआ है। हम सुरक्षा की संपूर्ण जिम्मेदारी केवल पुलिस और सेना के जवान के कंधे पर ही नहीं थोप सकते हैं, कुछ हम लोगों की भी तो नैतिक जिम्मेदारी बनती है? लेकिन नहीं सच तो यह है कि हमें अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से पीछे हटने का गुमान हो रखा है, केवल स्वहित के मामलों में हम गंभीर विचार करते हैं! राष्ट्र और समाज के मुद्दे पर हम गौड़ नजर आते हैं।
    शशि जी का यह लेख वास्तव में समाज के ऐसे लोगों को आईना दिखाने के लिए काफी है, बशर्ते वह इसे आत्मसात करें तो ---

    समय-समय पर समाज को दशा और दिशा प्रदान करने वाले आलेखों के जरिए लोगों को आईना दिखाते आ रहे शशि जी निश्चित तौर पर बधाई के पात्र हैं।

    -संतोष देव गिरि
    (स्वतंत्र लेखक/पत्रकार)

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  8. मिर्जापुर में कुछ ऐसे लोग हैं जो लात घुसे की भाषा समझते हैं उनको ना अपने परिवार की चिंता है ना समाज की, ऐसे लोगों को पुलिस द्वारा चौराहे पर खड़ा करके सबके सामने पिटाई करनी चाहिए जिससे उनको यह लगे कि हमने गलत किया है
    - सुरेश सर्राफ(वरिष्ठ नागरिक)

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  9. अनुशासन जीवन के लिए सहायक है। सभी को आपदा प्रबंधन में सहयोग करना चाहिए। आपका प्रयास सराहनीय है ।
    ज्योत्सना मिश्रा

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  10. बिल्कुल सही कहा शशि भाई कि यदि हम सभी सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किये होते, तो सम्भव है कि ये जमाती अपने वतन के प्रति वफ़ादार होते और कथित धर्मगुरु इन्हें मज़हब के नाम पर ग़ुमराह नहीं कर पाते। धर्म और राजनीति के ठेकेदारों का बाज़ार यूँ न चटकता।

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    1. बस ऐसा ही सोच रहा हूँ, बूढ़े बाबा की बात याद आ गयी, प्रतिक्रिया के लिए आभार ज्योति दी।
      इन दिनों लॉकडाउन के कारण काम कुछ अधिक बढ़ गया है।
      तमाम सूचना पाठकों की ओर से आती रहती हैं। उसे पुष्ट करना फ़िर व्हाट्सएप ग्रुप में चलाना । अखबार के लिए भी समाचार।
      ख़ैर , सावधानी तो रखनी ही होगी।
      हवाबाज़ी से हम पत्रकार भी परेशान ही रहते हैं।

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  11. परम आदरणीय शशि भैया सादर प्रणाम🙏 आपका यह लेख सैनिको जैसा अनुशासन👌 दिल को छूने वाला लेख लगा🙏 आपके लेख में शब्दों का सुंदर उपयोग किया गया है✍ आपके ऊपर ईश्वर की असीम कृपा है लेखन कला में✍ आपको ढेर सारी शुभकामनाएं💐🙏🎩 जादूगर रतन कुमार की तरफ से🙏😊✍

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  12. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१२-०४-२०२०) को शब्द-सृजन-१६'सैनिक' (चर्चा अंक-३६६९) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  13. आपका आभार अनीता बहन।

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  14. प्रिय शशि जी
    मुझे ऐसा प्रतित होता है वास्तव में आने वाला समय हमलोगों के लिए और कठीन परीक्षा लेने वाला है क्योंकि कोरोना वायरस से संक्रिमत मरीज़ो में प्रतिदिन एक हज़ार लोगो का इज़ाफ़ा हो रहा है और ये आंकड़े उसपर है जब हमारे पास टेस्ट करने की आवश्यक चीज़ों की कमी है अर्थात अगर हमारे पास टेस्ट करने के सयंत्र और सिस्टम ज़्यादा होते.. तो हो सकता है ये आंकड़े और ज्यादा होते! फिलहाल हमलोगों के साथ आगे क्या होगा कुछ समझ मे नही आ रहा क्योंकि ये रुकेगा कैसे सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है। अमेरिका,इटली,स्पेन, फ्रांस,ब्रिटेन जैसे सुपर पावर और विकसित देशो को अभी तक समझ मे नही आ रहा कि क्या होगा? कैसे संभलेगा ये सब... तो हमारे देश की हालत तो हम सब लोग जानते ही है कि जब ये आंकड़े बढ़ेंगे तो किस तरह से स्वास्थ्य विभाग इनसे निपटेगा इसलिए हम सभी जिम्मेदार लोगों को गैर जिम्मेदार लोगो को समझाना होगा कि हमलोगों को वही करना है जो हमे डॉक्टर और प्रधानमंन्त्री द्वारा निर्देशित किया जा रहा है उसका अकझरस पालन करना होगा इस कठिन समय मे हमलोगों को जीवन जीने और बचाने की प्रबल इच्छाशक्ति से भी काम करना होगा और आने वाले इस क्रुररतं आपदा से निकलने के लिए अदम्भय साहस से काम लेना होगा।
    - धीरज अग्रवाल।

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  15. Bahut hi achi Salah derahe hai. People should follow the advice.
    Bahut Bahut Dhanyabad Shashi ji
    Rajkumar Tandon
    General Secretary of All India khatri Mahasabha.

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  16. बहुत सुन्दर

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  17. सामायिक विषय पर कई पहलुओं पर प्रकाश डालता सार्थक लेख।

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  18. शशि भाई , बहुत अच्छा लिखा आपने | सैनिक एक साथ कई खूबियों से भरा वो मसीहा है जो हमारे देश की सीमाओं की चौकसी करने के साथ- साथ देश समाज का एक प्रेरणा पुंज भी है | घर परिवार से दूर आत्म संयम से भरा इंसान अपनी कर्तव्यनिष्ठा से हर देशवासी के मन के करीब है |लेकिन सबसे बड़ा है सैन्यजीवन का अनुशासन | सैनिक का पर्याय है हर वो व्यक्ति भी है जो अपने कर्तव्य पथ पर निरंतर अग्रसर है | निष्काम आयर निस्वार्थ भाव से , चाहे वह पत्रकार हो या कोई और बस उसका कर्म समाज के कल्याण के निहित हो | चिंतनपरक लेख में आपने सैनिकों के प्रति जो निष्ठा दिखाई है सच में हर मन की यही भावनाएं हैं हमारे वीर जवानों के प्रति | उनका अनुशासन अनुकरणीय है | हर युवा यदि उनके जैसा अनुशासनप्रिय हो तो जीवन की दौड़ में कभी पीछे ना रहे |

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  19. जी रेणु ,उचित कहा आपने।
    बिना अनुशासन के हम लक्ष्य की ओर नहीं बढ़ सकते है।
    प्रतिक्रिया के लिए आभार।

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yes