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Saturday 17 March 2018

आत्मकथा

व्याकुल पथिक
(आत्मकथा)

तो मै कह रहा था कि एक  बुजुर्ग ग्रामीण मेरे घर तब आया था,जब मैं हाईस्कूल में था। रात्रि 11 बजे मुझे बॉयोलॉजी से जुड़ा चित्र बनाते देख, उन्होंने मेरी हस्तरेखा देखी, फिर तपाक से कह दिया कि विद्या रेखा तो तेरे पास है ही नहीं ! दरअसल , जब मैं रात साढ़े दस बजे के बाद पढ़ता था,तो अभिभावक टोक देते थें कि लाइट बंद कर दो। पर भला मैं कहां मानता था। हो सकता है , जो सज्जन आये थें, इसी कारण उत्सुकता वश उन्होंने मेरे हाथ की रेखाओं पर नजर डाली हो। वैसे, मैं इन भाग्य रेखाओं में विश्वास तो तब भी नहीं करता था और अब भी ना ही कहूंगा। भले ही उक्त सच्चन का कथन सत्य हुआ । हाईस्कूल में काफी अच्छा रिजल्ट होने के बावजूद भी पढ़ाई छोड़ मुझे मौसी के घर जाना पड़ा। इसी में एक वर्ष बर्बाद हो गया। और तब जाकर पुनः बनारस आ कर इंटर किया। परिवार का साथ नहीं मिलने से पुनः आगे की शिक्षा छोड़ देनी पड़ी। सो, आज भी सोच में पड़ जाता हूं कि एक अनाड़ी सा दिखने वाला ग्रामीण कितनी आसानी से मेरी बर्बादी की भविष्यवाणी कर गया।

( शशि)13/ 3/18

क्रमशः

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