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Friday 15 March 2019

ग़म तुझे क्यों यह ख़्याल आया

ग़म तुझे क्यों  यह ख़्याल आया
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ग़म तुझे क्यों  यह ख़्याल आया
 खुशियों से हुई मुलाकात जो याद आया

रंगीन है महफ़िल और ये दुनियाँ भी
    दर्द सीने में  फ़िर  दबाए क्यों रखा है

चलते रहेंं ना मिली मंज़िल फ़िर भी
     देखो हर मोड़ पर ज़ख्म इक नया पाया

खुशियों की बात छिड़ी,सुन ले ये ग़म
      दर्द ये पा के अपनोंं को समझ पाया

जो दिखते हैं  वैसे वो होते तो नहीं
     इंसानों की फितरत ना कभी समझ पाया

ये ज़श्न ये महफ़िल और हैंं खुशियाँ भी
   फ़िर तुझे क्यों बेवफ़ाई का ख़्याल आया

हाल दिल का बता दे हम ग़ैर नहीं
   फ़र्क इतना हम दिखते,तुम छिपते नहीं

जलती शमा को बुझाने की ना सोच
    देख तेरे ख़्वाब में  परवरदिगार आया

वक़्त होगा तेरा अभी और ग़मगीन
  खुशनसीबी का नहीं कोई क़रार आया

बेक़रारी अब कैसी मिले हमदम तुझे
     देख तेरे जनाज़े  का वो साज़ आया

ग़म  तुझे  क्यों  यह ख्याल आया
   ग़ैरों का क्या,अपनोंं का ना जवाब आया

                       - व्याकुल पथिक

12 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-03-2019) को "पन्द्रह लाख कब आ रहे हैं" (चर्चा अंक-3277) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. धन्यवाद, शास्त्री सर

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  3. प्रिय शशि भाई--- विचलित और व्याकुल मन के विरह- वेदना में पगी रचना बहुत ही मर्मस्पर्शी है।
    गम तुझे क्यों ये ख्याल आया
    गैरों का क्या अपनों का भी ना जवाब आया! !!
    भावपूर्ण रचना के लिए साधुवाद।

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  4. जी दी,
    कुछ मिला न मिला, परंतु खुशनसीब इतना हूँ कि कुछ लिख तो पा ही रहा हूँ। यह भी बड़ी बात है रेणु दी।

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  5. वाह !!बहुत खूब ....

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  6. चलते रहेंं ना मिली मंज़िल फ़िर भी
    देखो हर मोड़ पर ज़ख्म इक नया पाया... मार्मिक रचना

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  7. क्या लिखा सर आपने जिंदगी की असली हकीकत सामने दिख गई

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yes