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Tuesday 2 April 2019

स्वांग

स्वांग
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हैं रातें रंगीन जिनकी
  वे  वाह-वाह किया करते हैं
किसी की उदासी पर क्यों ?
 वे  मुस्कुराया  करते हैं

सम्वेदनाओं की झोली उनकी 
 फिर भी है  क्यों खाली  ?
   शब्दों  की   चाशनी में
   जो जहर पिलाया करते हैं

नियति ने  दे रखी  है
  जिन्हें  अपनों  का  साथ
  यतीमों  के दर्द पर क्यों ?
 वे  खिलखिलाया  करते हैं

बनते  तो हैं  वे सभी
  सकारात्मकता के पुतले
 फिर अपने ग़म में यूँ
क्यों  छटपटाया करते हैं ?

खुशियों का मुखौटा जिन्होंने   
  लगा  रखा  है  सुहाना
दिल के आईने में चेहरा उनका
  क्यों  बुझा- बुझा होता है ?

 दर्द छुपा बैठें हैं वे भी कई
   उजालों का मगर स्वांग रचते हैं
 सच से मिलती जब भी निगाहें
   वे क्यों तिलमिलाया करते हैं ?

ठहर पथिक तू तनिक  ठहर
   इन मीठी बोलियों को तौल
 मौसम चुनाव का है गंभीर
  नेताओं सा ढ़ोग ये किया करते हैं
         - व्याकुल पथिक 

16 comments:


  1. बनते तो हैं वे सभी
    सकारात्मकता के पुतले
    फिर अपने ग़म में यूँ
    क्यों छटपटाया करते हैं ?

    खुशियों का मुखौटा जिन्होंने
    लगा रखा है सुहाना
    दिल के आईने में चेहरा उनका
    क्यों बुझा- बुझा होता है ?
    ये जरूरी होता है कभी कभी... शशिभैया, वो गाना भी सुना है ना आपने ?
    "तुम जो हँसोगे तो दुनिया हँसेगी
    रोओगे तुम तो ना रोएगी दुनिया !"

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  2. जी प्रणाम।
    ठीक कहा आपने दी,फिर भी
    ये रातें अभी जगा रही हैं और हमारे जागने से दुनिया भला क्यों जागे दी ?😊

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  3. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 06 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत ही बेहतरीन रचना

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  5. वाह ! बहुत सुन्दर आदरणीय
    सादर

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  6. खुशियों का मुखौटा जिन्होंने
    लगा रखा है सुहाना
    दिल के आईने में चेहरा उनका
    क्यों बुझा- बुझा होता है ?
    प्रिय शशि भाई -- किसी के लिए दर्द है कराह है वही दूसरों के लिए वाह है | क्यों और कैसे -- ये कोई नहीं पाया पाया है - फिर भी किसी की मजबूरी को जो ना समझे अव इन्सान कहने योग्य नहीं | गहरे दर्द को समेटे मार्मिक रचना | मेरी शुभकामनायें स्वीकार हों | जल्द ही कवि रूप में पहचाने जायेंगे आप | सस्नेह

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  7. जी प्रणाम रेणु दी।
    भाई हूँ आपका, तो कुछ असर आना चाहिए न ?

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  8. यथार्थ और सार्थक रचना

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  9. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" l में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/116.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  10. सम्वेदनाओं की झोली उनकी
    फिर भी है क्यों खाली ?
    शब्दों की चाशनी में
    जो जहर पिलाया करते हैं
    बहुत ही गहरी व अर्थपूर्ण रचना हेतु साधुवाद आदरणीय पथिक जी।

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  11. मीठी बोलियों को तो तोल ही लेना चाहिए ... आज के मौसम का क्या भरोसा कभी भी पलट सकता है ... गहरा भावपूर्ण लिखा है ...

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  12. धन्यवाद आप सभी को भाई साहब

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  13. मृम स्पर्शी रचना।
    शानदार प्रस्तुति ।
    अतिंम चरण में सामायिक परिप्रेक्ष्य पर सटीक प्रहार ।

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  14. जी प्रणाम मीना दी।

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yes