सुर मेरे ! उपहार बन जा
जिसे पा न सका जीवन में
सुन , मेरा वो प्यार बन जा
फिर न पुकारे हमें कोई
तू ही वह दुलार बन जा
खो गये हैं स्वप्न हमारे
दर्द की पहचान बन जा
न कर रूदन, मौन हो अब
सुर, मेरा वैराग्य बन जा
जीवन की तू धार बन जा
राधा का घनश्याम बन तू
प्रह्लाद का विश्वास बन ना
ध्रुव का हरिनाम बन कर
सुर, मेरा ब्रह्मज्ञान बन जा
अंतरात्मा की आवाज बन
निरंकार - ओंकार बन जा
गीता और क़ुरआन बन ना
झंकृत करे विकल हिय को
तू मीरा की वीणा बन जा
आँखें न रहे कभी मेरी तो
इस " सूर " का साज़ बनना
बनें हम भी बुद्ध- महावीर
तू ही अनहद नाद बन जा
करे उद्घोष सत्य का हम
पथिक का सतनाम बन जा
-व्याकुल पथिक
जिसे पा न सका जीवन में
सुन , मेरा वो प्यार बन जा
फिर न पुकारे हमें कोई
तू ही वह दुलार बन जा
खो गये हैं स्वप्न हमारे
दर्द की पहचान बन जा
न कर रूदन, मौन हो अब
सुर, मेरा वैराग्य बन जा
जीवन की तू धार बन जा
राधा का घनश्याम बन तू
प्रह्लाद का विश्वास बन ना
ध्रुव का हरिनाम बन कर
सुर, मेरा ब्रह्मज्ञान बन जा
अंतरात्मा की आवाज बन
निरंकार - ओंकार बन जा
गीता और क़ुरआन बन ना
झंकृत करे विकल हिय को
तू मीरा की वीणा बन जा
आँखें न रहे कभी मेरी तो
इस " सूर " का साज़ बनना
बनें हम भी बुद्ध- महावीर
तू ही अनहद नाद बन जा
करे उद्घोष सत्य का हम
पथिक का सतनाम बन जा
-व्याकुल पथिक
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 28 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद रवींद्र जी, प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! शाश्वत आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति के लिए क्षण-भंगुर लौकिक सुखों की आहुति तो देनी ही पड़ती है.
ReplyDeleteजी बिल्कुल , आभार आपका
Deleteवाह!!पथिक जी ,बहुत खूब !आध्यात्म झान देती हुई खूबसूरत कृति ।
ReplyDeleteजी आभार , आपका
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन शशि भाई.
ReplyDeleteसादर
बहुत-बहुत आभार आपका अनीता बहन
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (29-11-2019 ) को "छत्रप आये पास" (चर्चा अंक 3534) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
-अनीता लागुरी 'अनु'
बहुत- बहुत आभार अनु जी, आपके चर्चामंच पर यह सम्मान मिलना खुशी की बात है।
Deleteप्रिय शशि भाई ,जब अंतस की वेदना एक सीमा पार कर जाती है तो पीड़ा एक अदृश्य अवलंबन पर जा टिकती है | सुरों को मार्मिक उद्बोधन जिसके शब्द शब्द में करुणा भरी पुकार है | अध्यात्मपथ को आतुर पथिक की आत्मा का ये करुणामयी संगीत गीत बहुत हृदयस्पर्शी है | लिखते रहिये |आपके लेखन को ये भाव उच्चता प्रदान करेंगे |
ReplyDeleteरचना के मर्म को समझ सार्थक टिप्पणी करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार रेणु दी।
Deleteवाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी प्रणाम, धन्यवाद
Deleteवाह बहुत सुंदर भाई सूर्य की गर्मी में पीपल के छांव की अनुभुति देता सुंदर सृजन।
ReplyDeleteजी दी बिल्कुल सही कहा आपने हमें अपने मन की वीणा को ईश्वर को समर्पित करना चाहिए, वही श्रोता हो ,वही लक्ष्य हो और वही प्रिय हो..
ReplyDeleteअति उत्तम भईया
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
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