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Sunday 1 December 2019

सजदा ( जीवन की पाठशाला )

न कभी सजदा किया
ना दुआ करते हैं हम
दिल से दिल को मिलाया
बोलो,ये इबादत क्या कम है।


दर्द जो भी मिला
ख़ुदा ! तेरी दुनियाँ से
कोई शिकवा न किया
बोलो,ये बंदगी क्या कम है ।


कांटों के हार को समझ
नियति का उपहार
हर चोट पे मुस्कुराया
बोलो,ये सब्र क्या कम है।


अपनों से मिले ज़ख्म पे
ग़ैरों ने लगाया नमक
बिन मरहम काट लिये वक्त
बोलो,ये सजा क्या कम है ।


बारिश में छुपा अपने "अश्क़ "
मिटा असली-नकली का भेद
सावन में दिल को जलाया
बोलो ,ये तप क्या कम है।


शूल बन चुभते रहे वो बोल
राज यह भी किया दफ़न
फ़क़ीर बन होकर मौन
बोलो, ये वफ़ा क्या कम है।


सजदे का क्यों करते मोल
ये मेरे गुनाहों की माफी है
अल्लाह की तारीफ और
पैग़ाम इंसानियत का है !


रिश्ते में भी होते हैं सजदे
मतलबी इंसानों की बस्ती में
इसे कोई करे न करे क़ुबूल
सुनो,ये तो अपनी क़िस्मत है ।

व्याकुल पथिक

27 comments:

  1. कांटों के हार को समझ
    नियति का उपहार
    हर चोट पे मुस्कुराया
    बोलो,ये सब्र क्या कम है।
    बेहद हृदयस्पर्शी रचना शशि भाई।

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  2. हर बार की तरह अनुपम, दर्द का अम्बार है रचना में और बहुत समर्पित सार्थक भाव भी ।
    अभिनव सृजन।

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  3. मार्मिक रचना भाई

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  4. सबकी अपनी अपनी नियति है शशि भाई और इसे स्वीकार करना बिना किसी शिकायत के इस से बड़ी कोई इबादत नहीं है। अतिसुन्दर मार्मिक रचना!

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    1. जी भैया,
      बिल्कुल सही कहा आपने

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  5. शशि भाई, आपकी कविता देखी,अच्छी बन पड़ी है,तमाम लोगों ने ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाए
    हैं,जानना चाहा है कि किस तरह काम करता है,सज्जनों को संकट से
    उबारता है,महा भारत में यह सवाल
    युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा
    है,ईश्वर कई तरह से सजदा कबूल
    करता है, सहन शक्ति बढ़ा देता है,
    धैर्य का धनी बनाता है,विवेक शक्ति
    जाग्रत करता है,आत्मबल में वृद्धि
    करता है,अपने किसी भक्त के जरिए
    आपके काम आता है,जैसे चरवाहा
    जानवर की देख देख करता है वैसे
    भक्त के काम नहीं आता,विश्व में हर
    कोई किसी न किसी के लिए कभी
    न कभी ईश्वरीय वरदान के रूप में
    उपस्थित होता है।ये वफा, सजा,
    , तप वगैरह आपकी सहन शक्ति
    को नापने के पैमाने है।
    मजहब ए इश्क का ये कहना है,
    जिसे सहना है उसे रहना है।
    बेबसी का भी एक उल ह ना है,
    आदमी आदमी का गहना है।
    - अधिदर्शक चतुर्वेदी, वरिष्ठ साहित्यकार

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3560 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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  7. बारिश में छुपा अपने "अश्क़ "
    मिटा असली-नकली का भेद
    सावन में दिल को जलाया
    बोलो ,ये तप क्या कम है।
    आक्रांत मन का विरह गान शशि भाई | शब्द शब्द वेदना से भीगा और मर्मस्पर्शी है |

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    1. जी दी
      अपनी रचना को मैं सदैव अपनी अनुभूतियों के अनुसार लिखा करता हूँ।
      वह कहा गया है ना दी- कभी खुशी तो कभी गम..
      प्रणाम।

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  8. बेहद सार्थक सृजन ,हृदयतल से निकला हुआ
    हार्दिक शुभकामनाएं आ0

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    1. आपका बहुत- बहुत आभार, प्रणाम।

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  9. कांटों के हार को समझ
    नियति का उपहार
    हर चोट पे मुस्कुराया
    बोलो,ये सब्र क्या कम है।
    हृदयस्पर्शी सृजन शशि भाई ।

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  10. जी बहुत-बहुत आभार दी

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  11. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०८ -१२-२०१९ ) को "मैं वर्तमान की बेटी हूँ "(चर्चा अंक-३५४३) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  12. आपका बहुत- बहुत आभार अनीता बहन

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  13. सुन्दर प्रस्तुति

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  14. बहुत बढ़िया ।

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yes