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विश्वास
" हमारे पास इतनी सकारत्मक उर्जा है कि वह आपकी नकारात्मकता दूर कर देगी .. । "
एक भद्र महिला का मैसेज देख सुधीर पशोपेश में पड़ गया ..।
उसे तनिक भी लालसा नहीं थी कि वह किसी स्त्री से बात करे.. पहले से मिली चोट पर नश्तर रखना कितनी बुद्धिमानी है ? उसका हृदय गवाही नहीं दे रहा था..।
सो, उसने सामान्य शिष्टाचार का प्रदर्शन कर संवाद समाप्त करने का प्रयत्न किया..।
और एक दिन फिर संदेश आया - " लगता है कि आपको हमसे वार्तालाप में कोई रुचि नहीं है, हम ही व्यर्थ में ये लालसा रखते हैं..।"
इस बार उस स्वर में ऐसी आत्मीयता थी कि सुधीर की आँखें भर आयी थीं..।
उसे रुँधे गले से कहा -- " नहीं-नहीं , ऐसा न कहे, बस डरता हूँ --सच्चे इंसान कम हैं दुनिया में ।"
" परंतु मैं तो वैसी नहीं हूँ । विश्वास करें और मुझे अपना अच्छा मित्र समझें ..। "
मधुरिमा की शहद घुली वाणी से सुधीर के नेत्रों में अश्रुधारा बह चली.. ।
कुछ ही दिनों में मधुरिमा उसके अभिभावक की भूमिका में थी। ऐसा वह स्वयं भी कहती थी । अतः वह आज्ञाकारी बालक की तरह सिर झुकाए उसकी डांट को भी स्नेह का उपहार समझता । और हाँ, समय का मारा सुधीर मधुरिमा की तनिक सी नराजगी पर अधीर हो उठता था।
उसके भय पर मुस्कुराते हुये वह महिला मित्र विश्वास दिलाती -
" क्यों व्यर्थ में डरते हो। मैं स्वतः ही आप से बात कर रही हूँ न और यह जानती हूँ कि अन्य पुरुषों से आप अलग हो और मुझे आपसे कभी कोई परेशानी नहीं होगी..। "
उसका कहना था कि शुभचिंतक सदैव साथ रहते हैं और जो अपने नहीं हैं , वे साथ छोड़ने पर पलट कर देखते तक नहीं । मेरे शुद्ध स्नेह पर विश्वास करो, यह औपचारिकता मात्र नहीं है.. ।
सुधीर जब कभी मोबाइल पर वार्ता के दौरान उसके बच्चों को मम्मी -मम्मी पुकारते सुनता, उसे भी अपनी माँ के छाँव का एहसास होता ।
वह अपने नये अभिभावक से खुश था .. बहुत खुश ।
और एक दिन ..सुधीर अस्पताल में पड़ा था। अन्य मरीजों के तीमारदारों को देख उसका मन भी पवित्र स्नेह के दो शब्द के लिए न जाने क्यों मचल उठा..।
फिर क्या , विश्वास का यह डोर कच्चे धागे से कमजोर निकली .. सुधीर अपना अपराध पूछता रह गया था..।
और एक दिन फोन पर क्रोधित मधुरिमा ने उसे धिक्कारते हुये कहा -
" मुझे अपनी प्रेमिका समझ लिया था ? तुम तो बिल्कुल वैसे नहीं हो ।"
" हे ईश्वर ! संदेह का यह कैसा भँवरजाल ? क्या इसे ही विश्वास कहते हैं ? " - काँप उठा था सुधीर का अंतर्मन ।
उसके भावुक हृदय ने दुनियादारी जो नहीं सीख रखी थी ,परंतु हाँ इतना अवश्य जानता है कि विश्वास किसे कहते हैं..।
अतः वह ★ विश्वास ★ जो मित्रता के समय उसके प्रति मधुरिमा को था , उसे कायम रखने के लिए सुधीर ने अपनी वेदना पर प्रतिशोध के भाव को कभी भी भारी नहीं पड़ने दिया..।
पर जब इस तिरस्कार की पीड़ा असहनीय होती है, तो अपने दिल को समझाने के लिए यूँ गुनगुनाता है -
दुनिया ने कितना समझाया
कौन है अपना कौन पराया
फिर भी दिल की चोट छुपा कर
हमने आपका दिल बहलाया..।
- व्याकुल पथिक
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका यशोदा दी।
Deleteजिसे घर में प्यार नहीं मिलता, जिसे घर में समर्थन नहीं मिलता, उसे इस दुनियाँ में कुछ नहीं मिलता। कुछ अपवाद हो सकते हैं, किंतु तमाम लोगों को भटकते हुए देखता हूँ। घर-परिवार और समाज के लिए किया गया कोई त्याग आपके काम नहीं आता। अंततः आप एक खालीपन के शिकार हो जाते हैं। आपका खाली मन किसी तरह भरना चाहता है। उसे कैसे भरेंगे? अचानक हवा का कोई झोंका आता है, आप सोचते हैं कि अब मन को मुराद मिल गई है। किसीके चंद शब्दों ने आपके ऊपर बारिश की बूँदों की तरह असर कर दिया। आप भीगने लगते हैं। आप भावुक होकर उसे ख़ुदा मान बैठते हैं। मित्र, ज़िंदगी अनेक रंग लेकर आती है। हर रंग में हज़ारों रंग होते हैं। पूरी ज़िंदगी आप इन्हें पहचान नहीं पाएंगे। हर बार कुछ चौंकाने वाली चीज़ें आती हैं। हर बार एक नया प्रयोग एक नया अनुभव देकर जाता है। जब आपकी ज़िंदगी में संयोग नहीं है, तो उसे कहाँ से लाएंगे।
ReplyDeleteविश्वास दिलाने वाली बातों पर आप विश्वास कर जाते हैं। बस यही से भ्रमित हो जाते हैं। सच्चे को सच्चा मिलना बड़ा कठिन है। आप सच्चे हैं, तो सबको सच्चा समझते हैं। आप सरल हैं, तो सबको सरल समझते हैं। जनाब, दुनियाँ ऐसी नहीं है। प्यार-मोहब्बत अब खालीपन का शगल बन गया है। आपको माँ का प्यार नहीं मिला, तो दूसरों को अपनी माँ लेते हैं। पिता का प्यार नहीं मिला, तो दूसरों में पिता का स्वरूप खोज लेते हैं। और, कोई इशारा मिला, तो उसमें में तो सारे संबंधों का एक विराट स्वरूप देखने लगते हैं। फिर, अचानक उसका कोई भिन्न विचार, कोई भिन्न व्यवहार आपकी आँखों के सामने अँधेरा ला देता है।
उस अँधेरे पल में ख़ुद को आप टटोलते हैं। दिल को चोटें लगती हैं। दिल की चोटों का कोई इलाज नहीं। इसका एक परिणाम होता है कि दिल की चोटों को लिए हुए जीना शुरु करते हैं। आप अपेक्षा करना छोड़ देते हैं। यहीं से आप परिपक्व हो जाते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि संसार एक व्यायामशाला है, यहाँ मज़बूत होने आए हैं। बस मन से मज़बूत होते रहिए, ज़िंदगी बीत जाएगी। आपकी लघुकथा ज़िंदगी की कठोर सच्चाई है। इस सच्चाई में महज़ चंद शब्द नहीं हैं, बल्कि आपका धड़कता-तड़पता-सिसकता दिल है जिसको हम लोग शिद्दत से महसूस करते हैं। बहुत बढ़िया लिखा है शशि भाई।💖
क्या बात कही है अनिल भैया , सादर नमन...
Deleteऐसी परीक्षाएँ तो जीवन में होती ही रहेंगी और इसी का नाम तो ज़िंदगी है ?
बहुत ही सार्थक और बिल्कुल सधी हुई प्रतिक्रिया आपकी रहती है
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " "बरगद की आपातकालीन सभा"(चर्चा अंक - 3615) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
मंच पर मेरी लघुकथा को स्थान देने के लिए आपका आभारी हूँ ,कामिनी जी।
Deleteशशि भाई लघुकथा में खंडित विशवास की पीड़ा है पर सृजन का मार्ग भी इसी पथ से होकर निकलता है | नायक का निर्णय नितांत सही है | तिरस्कार से आहत होकर भी विश्वास की महिमा रखना ही एक सच्चे इंसान की पहचान है | भावपूर्ण लेखन के लिए शुभकामनाएं|
ReplyDeleteजी दी , आपने बिल्कुल सही कहा। किसी ना किसी को विश्वास कमान रखना चाहिए तभी तो मानवता टिकी रहेगी ,अन्यथा उसका रुदन मनुष्य जाति के लिए घातक होगा।
Deleteसादर प्रणाम।
मैंने तो सोचा इस लघुकथा को पाठक पसंद नहीं करेंगे, परंतु आपने और इससे पूर्व अनिल भैया ने टिप्पणी कर मेरा उत्साह बढ़ाया है।
कभी-कभी किसी पर हद से ज्यादा विश्वास ही हमारे दिल को तोड़ देता है।
ReplyDeleteऐसा ही कुछ सुधीर के साथ हुआ,अपनेपन की छाँव के लिए तरसते सुधीर को
जब स्नेह की दो बूँद मिली,जिसे इस दिखावे की दुनिया में सच समझ बैठा।
जो सच नहीं मात्र एक छलावा थी। बेहद हृदयस्पर्शी लघुकथा 👌
जीवन पाठशाला है । सबक सिखाना चाहिए। सुधीर के लिए भी यही कहना चाहता हूंँ।
Deleteप्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ।
आपकी हर लघुकथा में जीवन का लघुतत्व महीनता से घुला होता है। इन्सान, विश्वास और आस्थाओं से जुडा एक पुतला मात्र है। जिस दिन भरोसा, विश्वास जैसी चीजें उठ गई, समझो पुतला निरीह और मृत हुआ। पुनः आपको शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteजी बड़े भैया, आपका स्नेहाशीष इस तरह से मिलता रहे..
Deleteप्रणाम।
आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सृजन है। बहुत खूब लिखा आपने।
आपका आभार आँचल जी, प्रणाम।
ReplyDeleteखून के रिश्ते से बढ़कर रिश्ता अहसास का होता है। संबंधों के विषय में बहुत कुछ कहना था लेकिन बस डरता हूँ - इंसान कम ही है दुनियां में।
ReplyDeleteआप हृदयझंकृत शब्दों के प्रयोगशाला है जहाँ सच्चा इंसान होता है।
- हरिकिशन अग्रहरि , अहरौरा।
As reported by Stanford Medical, It is really the ONLY reason this country's women live 10 years more and weigh an average of 19 kilos lighter than us.
ReplyDelete(And actually, it has NOTHING to do with genetics or some hard exercise and really, EVERYTHING about "HOW" they eat.)
BTW, What I said is "HOW", and not "WHAT"...
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