झुठ्ठा... !
*******
( दृश्य -1)
नये साहब ने आते ही ताबड़तोड़ छापेमारी कर जिले को हिला रखा था.. उनका एक पाँव दफ़्तर में तो दूसरा फ़ील्ड में होता .. जिस भी विभाग में पहुँचते ,वहाँ के अफ़सर से लेकर स्टॉफ तक पसीना पोंछते दिखते.. उपस्थिति पंजिका और भंडारगृह पर उनकी पैनी निगाहें थीं ..।
जनाब ! ग्रामीण क्षेत्र में लगे हैंडपंपों की पाइप तक निकलवा बोरिंग की जाँच करवाने लगते..उनकी हनक की धमक अगले दिन अख़बारों की सुर्ख़ियाँ होतीं..।
वे फरियादियों और मातहतों से धर्म-कर्म की बातें भी गज़ब की किया करते थे ..।
उधर, नये हाकिम की ईमानदारी के किस्से सुनकर नेकराम ख़ुशी से फूला न समा रहा था..।
उसे पूरा विश्वास हो गया था कि उसके मुहल्ले में चल रही तेल,घी और मसाले की नकली फैक्ट्री का भंडाफोड़ ऐसे ही अफ़सर कर सकते हैं..।
वैसे तो , सेठ दोखीराम के काले धंधे को जानते सभी थे ..लेकिन , क्या मज़ाल कि उसके कारख़ाने की ओर भूल से किसी परिंदे ने भी पर मारा हो..।
उधर, नये साहब की इस धुँआधार छापेमारी के समाचार के मध्य नेकराम रोज़ाना ही यह बाट जोहता कि उनका पदार्पण उसके मुहल्ले में कब होगा ..। अब तो उनको आये भी माहभर होने को था, पर उसे आश्चर्य इस बात पर था कि उसके इलाक़े में न तो उनका खौफ़ दिख रहा है और न ही दोखीराम के काले क़ारोबार पर कोई आँच आ रही है ..।
वह समझ गया कि सेठ के जुगड़तंत्र ने उसके धंधे की भनक को नये अधिकारी को नहीं लगने दिया है..और फिर एक दिन नेकराम ने हिम्मत जुटा कर बिल्ली के गले में घंटी बांधने की ठान ली..वह सीधे जा पहुँचा नये हाकिम के दफ़्तर..।
अफ़सर - " हाँ , तो बोलो क्या बात है ? "
नेकराम -" साहब , सबके सामने न बोल पाऊँगा , इसमें लिखा है...। "
उसने हाथ में ले रखे पर्ची की ओर संकेत किया..।
" हूँ ..! "
- अफ़सर उससे वह कागज़ ले बड़े ग़ौर से देखता है ..। उसकी आँखों में एक चमक- सी आ जाती है..।
" साब ! मेरा नाम गुप्त रहे.. ' जल में रह मगर से बैर' लेने की मेरी औक़ात नहीं ..।"
- हकलाते हुये नेकराम ने अपनी चिन्ता जाहिर की थी ..।
" अरे भाई ! चिन्ता न कर.. कल मैं स्वयं आऊँगा..। "
- शाबाशी देते नये साहब ने उसकी पीठ थपथपाई थी..।
- साहब के ठोस आश्वासन और मुखमुद्रा पर मुस्कान देख नेकराम को पूरा विश्वास हो गया था कि अब सेठ दोखीराम के बुरे दिन आने को है । अतः उसने जोश में आकर इस कॉकस में सम्मिलित कई कनिष्ठ अधिकारियों के नाम वाला दूसरा चिट्ठा भी उन्हें सौंप दिया था..।
( दृश्य- 2 )
हाकिम की पूरी टीम को लिए आधा दर्जन गाड़ियाँ दनदनाती हुई अलसुबह ही फैक्ट्री में जा घुसी , छापेमारी से पूर्व किसी को भनक तक नहीं लग सकी थी..।
सेठ दोखीराम का चेहरा सफेद पड़ गया था..। देर शाम तक मीडियावाले भी बाइट के लिए डटे रहे ..। ख़ासा मजमा लगा हुआ था मुहल्ले में..।
तमाशाइयों में कोई कहता कि आज तो गया यह सेठ काम से.. सुना है कि बड़ा कड़क अफ़सर है नया साहब ..। सरकारी वेतन को छोड़ ऊपरी कुछ लेता नहीं..।
तो वहीं कुछ बुद्धिमान लोग मुस्कुराते हुये इनसे सवाल करते कि हाथी के खाने का दाँत देखा है क्या तुमने ?
छापेमारी टीम के प्रस्थान के पश्चात नेकराम रातभर इसी सोच में करवटें बदलता रहा कि जरा देखा तो जाए कि सेठ के विरुद्ध पुलिस ने क्या मामला दर्ज किया है..।
( दृश्य-3)
अगले दिन सुबह समाचार पत्रों को देखते ही नेकराम का मुख मलिन पड़ जाता है..।
" हे भगवान ! यह कैसे हो गया.. ? नहीं - नहीं ऐसा नहीं हो सकता है.. !!"
- नेकराम बुदबुदाता है..।
उसी नये अफ़सर के हवाले से छपी इस ख़बर
' आल इज ओके ' के साथ उसे यह भी पढ़ने को मिला था कि किसी पड़ोसी ने द्वेष भावना से धर्मात्मा सेठ के विरुद्ध झूठी शिकायत की थी..।
साथ ही समाचार पत्रों में आगे यह भी लिखा हुआ था कि सेठजी का नागरिक अभिनंदन ' भ्रष्टाचार मिटाओ ' संस्था के बैनर तले किया जाएगा.. जिस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वयं नये साहब ही होंगे..और दोखीराम जी नये साल में अपनी फैक्ट्री की ओर से किये जाने वाले धर्मार्थ कार्यों जैसे निर्धन कन्याओं का विवाह , गरीब मेधावी छात्रों को आर्थिक मदद और मुहल्ले में स्थित मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए मोटी रक़म देने की घोषणा इसी मंच से करेंगे..।
पासा उलटा पड़ा देख , नेकराम अज्ञात भय से सिहर उठा था ..।
सप्ताह भर बाद नेकराम पर दुष्कर्म का मामला दर्ज हो जाता है.. हालाँकि उसपर लगा आरोप बिल्कुल झूठा था ..परंतु वह जेल चला जाता है.. बंदीगृह में विक्षिप्त- सा हो गया था नेकराम.. जुगाड़तंत्र ने उसके स्वाभिमान को बड़े ही निर्दयता से कुचल दिया गया था.. ।
यहाँ तक कि कोर्ट-कचहरी के खर्च और आरोप लगाने वाली महिला से सुलह- समझौता करने में उसका घर तक बिक जाता है..।
घर खाली कर जब वह जा रहा होता है..तो मुहल्ले वाले तंज़ कसते है.. बड़ा तोप बन रहा था ससुरा..।
राम - राम ! ऐसे धर्मात्मा सेठ को फंसा रहा था..अब भुगते अपने करनी का फल..।
मुहल्लेवासियों के मुख से ऐसे कठोर वचन सुन नेकराम की आँखें डबडबा गयी थीं..उसका हृदय यह कह चीत्कार कर उठा था कि उसने तो सबकी भलाई के लिए ही इतना बड़ा खतरा मोल लिया .. और उसके साथ हुये इस अन्याय का प्रतिकार न सही, पर यह तिरस्कार क्यों कर रहे हैं ये सभी ..?
..अपने ही मुहल्ले में पल भर ठहरना भी अब उसके लिए भारी पड़ रहा था..।
वह समझ चुका था कि नये साहब की ईमानदारी पर उसका विश्वास ही झूठा था .. !
अन्यथा यह तथाकथित सभ्य समाज उसे " झुठ्ठा " क्यों कहता...?
- व्याकुल पथिक
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( दृश्य -1)
नये साहब ने आते ही ताबड़तोड़ छापेमारी कर जिले को हिला रखा था.. उनका एक पाँव दफ़्तर में तो दूसरा फ़ील्ड में होता .. जिस भी विभाग में पहुँचते ,वहाँ के अफ़सर से लेकर स्टॉफ तक पसीना पोंछते दिखते.. उपस्थिति पंजिका और भंडारगृह पर उनकी पैनी निगाहें थीं ..।
जनाब ! ग्रामीण क्षेत्र में लगे हैंडपंपों की पाइप तक निकलवा बोरिंग की जाँच करवाने लगते..उनकी हनक की धमक अगले दिन अख़बारों की सुर्ख़ियाँ होतीं..।
वे फरियादियों और मातहतों से धर्म-कर्म की बातें भी गज़ब की किया करते थे ..।
उधर, नये हाकिम की ईमानदारी के किस्से सुनकर नेकराम ख़ुशी से फूला न समा रहा था..।
उसे पूरा विश्वास हो गया था कि उसके मुहल्ले में चल रही तेल,घी और मसाले की नकली फैक्ट्री का भंडाफोड़ ऐसे ही अफ़सर कर सकते हैं..।
वैसे तो , सेठ दोखीराम के काले धंधे को जानते सभी थे ..लेकिन , क्या मज़ाल कि उसके कारख़ाने की ओर भूल से किसी परिंदे ने भी पर मारा हो..।
उधर, नये साहब की इस धुँआधार छापेमारी के समाचार के मध्य नेकराम रोज़ाना ही यह बाट जोहता कि उनका पदार्पण उसके मुहल्ले में कब होगा ..। अब तो उनको आये भी माहभर होने को था, पर उसे आश्चर्य इस बात पर था कि उसके इलाक़े में न तो उनका खौफ़ दिख रहा है और न ही दोखीराम के काले क़ारोबार पर कोई आँच आ रही है ..।
वह समझ गया कि सेठ के जुगड़तंत्र ने उसके धंधे की भनक को नये अधिकारी को नहीं लगने दिया है..और फिर एक दिन नेकराम ने हिम्मत जुटा कर बिल्ली के गले में घंटी बांधने की ठान ली..वह सीधे जा पहुँचा नये हाकिम के दफ़्तर..।
अफ़सर - " हाँ , तो बोलो क्या बात है ? "
नेकराम -" साहब , सबके सामने न बोल पाऊँगा , इसमें लिखा है...। "
उसने हाथ में ले रखे पर्ची की ओर संकेत किया..।
" हूँ ..! "
- अफ़सर उससे वह कागज़ ले बड़े ग़ौर से देखता है ..। उसकी आँखों में एक चमक- सी आ जाती है..।
" साब ! मेरा नाम गुप्त रहे.. ' जल में रह मगर से बैर' लेने की मेरी औक़ात नहीं ..।"
- हकलाते हुये नेकराम ने अपनी चिन्ता जाहिर की थी ..।
" अरे भाई ! चिन्ता न कर.. कल मैं स्वयं आऊँगा..। "
- शाबाशी देते नये साहब ने उसकी पीठ थपथपाई थी..।
- साहब के ठोस आश्वासन और मुखमुद्रा पर मुस्कान देख नेकराम को पूरा विश्वास हो गया था कि अब सेठ दोखीराम के बुरे दिन आने को है । अतः उसने जोश में आकर इस कॉकस में सम्मिलित कई कनिष्ठ अधिकारियों के नाम वाला दूसरा चिट्ठा भी उन्हें सौंप दिया था..।
( दृश्य- 2 )
हाकिम की पूरी टीम को लिए आधा दर्जन गाड़ियाँ दनदनाती हुई अलसुबह ही फैक्ट्री में जा घुसी , छापेमारी से पूर्व किसी को भनक तक नहीं लग सकी थी..।
सेठ दोखीराम का चेहरा सफेद पड़ गया था..। देर शाम तक मीडियावाले भी बाइट के लिए डटे रहे ..। ख़ासा मजमा लगा हुआ था मुहल्ले में..।
तमाशाइयों में कोई कहता कि आज तो गया यह सेठ काम से.. सुना है कि बड़ा कड़क अफ़सर है नया साहब ..। सरकारी वेतन को छोड़ ऊपरी कुछ लेता नहीं..।
तो वहीं कुछ बुद्धिमान लोग मुस्कुराते हुये इनसे सवाल करते कि हाथी के खाने का दाँत देखा है क्या तुमने ?
छापेमारी टीम के प्रस्थान के पश्चात नेकराम रातभर इसी सोच में करवटें बदलता रहा कि जरा देखा तो जाए कि सेठ के विरुद्ध पुलिस ने क्या मामला दर्ज किया है..।
( दृश्य-3)
अगले दिन सुबह समाचार पत्रों को देखते ही नेकराम का मुख मलिन पड़ जाता है..।
" हे भगवान ! यह कैसे हो गया.. ? नहीं - नहीं ऐसा नहीं हो सकता है.. !!"
- नेकराम बुदबुदाता है..।
उसी नये अफ़सर के हवाले से छपी इस ख़बर
' आल इज ओके ' के साथ उसे यह भी पढ़ने को मिला था कि किसी पड़ोसी ने द्वेष भावना से धर्मात्मा सेठ के विरुद्ध झूठी शिकायत की थी..।
साथ ही समाचार पत्रों में आगे यह भी लिखा हुआ था कि सेठजी का नागरिक अभिनंदन ' भ्रष्टाचार मिटाओ ' संस्था के बैनर तले किया जाएगा.. जिस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वयं नये साहब ही होंगे..और दोखीराम जी नये साल में अपनी फैक्ट्री की ओर से किये जाने वाले धर्मार्थ कार्यों जैसे निर्धन कन्याओं का विवाह , गरीब मेधावी छात्रों को आर्थिक मदद और मुहल्ले में स्थित मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए मोटी रक़म देने की घोषणा इसी मंच से करेंगे..।
पासा उलटा पड़ा देख , नेकराम अज्ञात भय से सिहर उठा था ..।
सप्ताह भर बाद नेकराम पर दुष्कर्म का मामला दर्ज हो जाता है.. हालाँकि उसपर लगा आरोप बिल्कुल झूठा था ..परंतु वह जेल चला जाता है.. बंदीगृह में विक्षिप्त- सा हो गया था नेकराम.. जुगाड़तंत्र ने उसके स्वाभिमान को बड़े ही निर्दयता से कुचल दिया गया था.. ।
यहाँ तक कि कोर्ट-कचहरी के खर्च और आरोप लगाने वाली महिला से सुलह- समझौता करने में उसका घर तक बिक जाता है..।
घर खाली कर जब वह जा रहा होता है..तो मुहल्ले वाले तंज़ कसते है.. बड़ा तोप बन रहा था ससुरा..।
राम - राम ! ऐसे धर्मात्मा सेठ को फंसा रहा था..अब भुगते अपने करनी का फल..।
मुहल्लेवासियों के मुख से ऐसे कठोर वचन सुन नेकराम की आँखें डबडबा गयी थीं..उसका हृदय यह कह चीत्कार कर उठा था कि उसने तो सबकी भलाई के लिए ही इतना बड़ा खतरा मोल लिया .. और उसके साथ हुये इस अन्याय का प्रतिकार न सही, पर यह तिरस्कार क्यों कर रहे हैं ये सभी ..?
..अपने ही मुहल्ले में पल भर ठहरना भी अब उसके लिए भारी पड़ रहा था..।
वह समझ चुका था कि नये साहब की ईमानदारी पर उसका विश्वास ही झूठा था .. !
अन्यथा यह तथाकथित सभ्य समाज उसे " झुठ्ठा " क्यों कहता...?
- व्याकुल पथिक
आज का यथार्थ !
ReplyDeleteइसके शिकार पत्रकार भी हुये है..
ReplyDeleteकिस पर विश्वास करें ईमानदार व्यक्ति ?
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteपटल पर स्थान देने के लिए आपका आभार यशोदी दी।
Deleteनये साहब के आने से पहले उसके स्वागत की तैयारी कर लेते हैं बड़े बड़े-बड़े व्यापारी लोग,
ReplyDeleteगरीब जनता को गरीब भी नहीं देखते , लेकिन पैसे वाले को सभी देखते हैं, उसका बोलबाला हमेशा कायम रहता है
बहुत ही अच्छी सामयिक प्रस्तुति
ब्लॉग पर आपका सर्वप्रथम स्वागत एवं प्रतिक्रिया के लिए आभार।
Deleteउचित कहा आपने वर्ष 1994 में जबसे पत्रकारिता यहाँ कर रहा हूँ , एक आईपीएस को छोड़ किसी को भी जनता के भरोसे का नहीं समझा।
और वह एक जो थें उनका हर पाँच - छह माह में बोरिया- बिस्तर बंध जाता था ।
प्रणाम।
सामायिक मंथन देता आलेख, हर क्षेत्र में प्रतिबद्धता के मायने बदल गये हैं।
ReplyDeleteईमानदारी से काम करने वालों को कोई रहने कहां देता है?
बहुत यथार्थवादी लेखन।
सटीक सामायिक।
जी कुसुम दी, भोला व्यक्ति जुगाड़तंत्रके इस चक्रव्यूह से कैसे निकले फिर ?
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " करना मत कुहराम " (चर्चाअंक -3629) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
आपका हृदय से आभार मंच पर स्थान देने के लिए कामिनी जी।
Deleteएक ऐसे विषय पर आपने लिखा है जिस पर टिप्पणी करना थोड़ा कठिन है। ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं। आपको लगता है कि कुछ गलत हो रहा है, तो आप चाहते हैं कि गलत न हो। बस यही चाहत आपसे एक बड़ी गलती करा देती है। आप एक दुष्चक्र में फँस जाते हैं। फिर उसका परिणाम भयानक होता है। सत्य सज़ा पाने लगता है और असत्य मज़ा लेने लगता है। आप अकेले पड़ जाते हैं। मित्र और परिवार वाले आपका साथ छोड़ देते हैं। एक-दूसरे की मदद करने वाला है पूरा तंत्र होता है। इनसे आप लड़ नहीं सकते। ज़िम्मेदारियों को देखते हुए लोग अब लड़ना भी नहीं चाहते। एक और बेहतरीन कहानी शशि भाई।
ReplyDeleteAnil Yadav
Deleteअनिल भैया समस्या हर जगह एक ही है, यदि जो व्यक्ति ईमानदार है ,वह कुछ गलत होते नहीं देख पाता, चाहे हम सरकारी कर्मचारी हो, चाहे पत्रकार, राजनेता अथवा आम आदमी ही क्यों न, हम उसका विरोध करते हैं। यह सोचकर करते हैं कि हमारा प्रयास सफल होगा ,क्योंकि हमने ऐसे व्यक्ति तक अपनी बात रखी है पहुंचाई है जो अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान बताया जा रहा है, लेकिन सब कुछ बिका हुआ और हमारी यही गलती का परिणाम यह है कि चतुर लोग हमें सत्यवादी हरिश्चंद्र कह दुत्कारते हैं और अपने षड्यंत्र में फंसाते हैं। पत्रकारिता में मैंने यही पाया। दो मुकदमे अभी भी मेरे ऊपर चल रहे हैं और यह पत्रकारों की ही देन है। जिनके जुगाड़ तंत्र में मैं शामिल नहीं हुआ था।
आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरा मार्गदर्शन करती है और उत्साहवर्धन भी, इसके लिए आपको सादर नमन।
Naye sahab hon ya purane
ReplyDeletekuchh guts wale hote hain
Niyam ,kanoon ka sakhti se palan karte hain,in par
log kam bharosa karte hain,jo dhulmul kism ke
hote hain, manviya durguno se mukt nahin
hote unki baat juda hoti hai,apni pratishtha daon
par laga dete hain, mujhe
kahna hai ki das pandrah
Pratishat hi hame San ८३
se aise nazar aaye jo ki
adhikari ke nam par kalank
rahe varna sabhi logon ne
apne star par nirash nahin
kiya, tamam logon ke karm
ekatra hote hain to ek vyakti ka bhagya sanvarta
hai akela chana bhad nahin foda karta, jis rajy
ke teen chief Secy court
ke dand ke bhagi hue us
Ke lower order ko sympathy ki najar se hi
dekhna chahiye।To me
everybody is as good as
one can be।
-आधिदर्शक चतुर्वेदी वरिष्ठ साहित्यकार
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteनेकीराम को अब कौन समझाए! मानव चरित्र समझ पाना इतना सरल नहीं ।
ReplyDeleteसमाज में फैली हर बुराई का स्त्रोत ही मानव का चारित्रिक दोष है, जो स्वतः ही प्रकट होता है परन्तु इसकी भविष्यवाणी संभव नहीं ।
जी भैया आपका बहुत- बहुत आभार।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 03 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी धन्यवाद, प्रणाम और आभार।
Deleteशशि भाई , इस कथा के माध्यम से आपने व्यवस्था के जो तीन शब्दचित्र प्रस्तुत किये हैं वो हर रोज का किस्सा है |ईमानदार व्यक्ति सोचता है कि सब उस जैसे हो जाएँ पर एसा होता नहीं |इसमें वही फंस जाता है जो व्यवस्था के कुत्सित पक्ष को उजागर करने का प्रयास करता है | इनके ही चरित्र का हनन कर दिया जाता है | एक आम ईमानदार की यही कहानी है कि वह सच की इस लड़ाई में प्राय हार जाता है |
ReplyDeleteरेणु दी,
Deleteसमस्या हर जगह एक ही है, यदि जो व्यक्ति ईमानदार है ,वह कुछ गलत होते नहीं देख पाता, चाहे हम सरकारी कर्मचारी हो, चाहे पत्रकार, राजनेता अथवा आम आदमी ही क्यों न, हम उसका विरोध करते हैं। यह सोचकर करते हैं कि हमारा प्रयास सफल होगा ,क्योंकि हमने ऐसे व्यक्ति तक अपनी बात रखी है, पहुँँचाई है जो अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान बताया जा रहा है, लेकिन सब कुछ बिका हुआ और हमारी यही गलती का परिणाम यह है कि चतुर लोग हमें सत्यवादी हरिश्चंद्र कह दुत्कारते हैं और अपने षड्यंत्र में फंसाते हैं। पत्रकारिता में मैंने यही पाया। दो मुकदमे अभी भी मेरे ऊपर चल रहे हैं और यह पत्रकारों की ही देन है। जिनके जुगाड़ तंत्र में मैं शामिल नहीं हुआ था।
आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरा मार्गदर्शन करती है और उत्साहवर्धन भी, सादर नमन।
शशि भाई,दुनिया की असलियत को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया हैं आपने। ऐसे दुष्परिणामो के बारे में सोच कर ही तो इंसान चाह कर भी भ्रष्टाचार आदि के खिलाफ आवाज नहीं उठाता।
ReplyDeleteउचित कहा ज्योति दी, सादर नमन।
DeleteDid you realize there's a 12 word phrase you can say to your crush... that will induce deep emotions of love and impulsive appeal for you buried within his heart?
ReplyDeleteBecause deep inside these 12 words is a "secret signal" that fuels a man's instinct to love, idolize and care for you with all his heart...
12 Words That Trigger A Man's Desire Response
This instinct is so built-in to a man's genetics that it will make him work better than before to build your relationship stronger.
Matter of fact, triggering this powerful instinct is absolutely binding to having the best ever relationship with your man that once you send your man a "Secret Signal"...
...You will soon find him expose his mind and heart to you in such a way he haven't expressed before and he'll distinguish you as the one and only woman in the world who has ever truly tempted him.