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Tuesday 21 April 2020

मदद की गुहार

बिना राशनकार्ड कैसे भरेगा पेट 

    किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार..
इस वैश्विक महामारी में शासन-प्रशासन और 
 आमजन सभी की कुछ ऐसी ही मंशा है और होना भी चाहिए। वह मनुष्य ही क्या जिसके हृदय में ऐसी विपत्ति में भी संवेदना न जगे। वह मानव ही क्या जो भूख से संघर्ष कर रहे लोगों का किसी प्रकार से सहयोग नहीं कर सके। धन से न सही, तो वाणी अथवा लेखनी से भी हम ऐसे असहाय लोगों के लिए कुछ कर सकते हैं। इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ किस प्रकार से मिले, यह मार्गदर्शन भी इनके लिए किसी संजीवनी से कम नही है ? लेकिन , इसके लिए सियासी व्यापार से ऊपर उठकर जनप्रतिनिधियों को पहल करनी होगी।
      विडंबना यह है कि अभी तक लंचपैकेट पैकेट बाँटने अथवा भोजन करवाने के अतिरिक्त अन्य कोई ठोस प्रयास किसी ने नहीं किया है। परंतु इससे न तो ऐसे वर्ग के स्वाभिमान की रक्षा होगी ,न ही उसकी क्षुधा तृप्त होगी। आप स्वयं विचार करें कि एक वक़्त के लंच पैकेट से क्या होगा ?
      अब चलते हैं सरकारी योजनाओं की ओर, क्यों कि लॉकडाउन के दौरान कोई भी भूखा न रहे, इसके लिए उत्तरप्रदेश सरकार ने मुफ़्त अनाज योजना शुरू की है। जिसके अन्तर्गत इसी महीने की 15 तारीख़ से राशनकार्ड पर प्रति यूनिट पाँच किलोग्राम चावल निःशुल्क दिया जा रहा है। मानों यह ग़रीबों के लिए किसी दुर्लभ निधि से कम नहीं है। 
    सरकार ने कहा है कि किसी को भूखे रहने नहीं दिया जाएगा,किन्तु जिनके पास राशनकार्ड नहीं है ,उनका क्या होगा ? यदि उसे इस मुफ़्त चावल योजना का लाभ तत्काल नहीं मिलेगा,तो क्या वह भूखे नहीं रहेगा ? भूख क्या राशनकार्ड वालों को पहचानता है ? ऐसे व्यक्तियों के मन को खंगालने की कोशिश यदि जनप्रतिनिधि करते, तो आज सरकारी अनाज के लिए वे यूँ न भटकते, किन्तु इन्हें ढांढ़स देने वाला कोई नहीं है।  
     शोर तो यह भी मचा है कि जिनके पास राशनकार्ड नहीं है, सरकार उन्हें भी निःशुल्क चावल देगी। पता नहीं इसमें कितनी सच्चाई है। जिला प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक जानकारी इस संदर्भ में कोटेदारों को प्राप्त नहीं है। 
    अपने मीरजापुर जनपद में इन दिनों क्या हो रहा है।यही न कि जिन असहाय लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है ,वे आधार कार्ड लेकर भटक रहे हैं। इस उम्मीद से कि शायद उन्हें भी मुफ़्त अनाज का लाभ मिल जाए अथवा वे इस ग़लतफ़हमी के शिकार हैं कि आधार कार्ड दिखला देने से उन्हें निःशुल्क चावल मिल जाएगा?
  ग़रीबी और बेकसी की ज़िंदा तस्वीर बने ऐसे मेहनतकश लोगों के समूह से कोटेदार परेशान हैं, ज़िम्मेदार अफ़सर पहली बुझा रहे हैं और जनप्रतिनिधि मौन हैं। किसी भी रहनुमा के पास इतनी भी फुर्सत नहीं है कि वे ऐसे ज़रूरतमंद लोगों के संदर्भ में शासन- प्रशासन से वार्ता करें। यदि राशनकार्ड नहीं है, तो क्या इन्हें भूखे छोड़ दिया जाए ? 

    मैं जिस होटल में रहता हूँ , वहाँ काम करने वाले युवक मुकेश अपने मुहल्ले की एक विधवा स्त्री और एक पुरूष को साथ ले गत मंगलवार को मेरे पास आया। महिला के चार बच्चे हैं।इनमें से एक दिव्यांग है। जीविकोपार्जन के लिए वह कुछ घरों में मज़दूरी करती है। किराये के मकान में रह कर पाँच लोगों का पेट पालना आसान तो नहीं होता न ? उसके पास जो राशनकार्ड से संबंधित कागज़ात  हैं ,वह किसी कारण मान्य नहीं है। अब क्या करे यह लाचार महिला ? वार्ड के सभासद से लेकर उन तथाकथित समाजसेवियों और राजनेताओं ने इतना भी पहल इस महिला के लिए नहीं किया कि उसके राशनकार्ड की वैधता में जो भी औपचारिकता शेष है, उसको पूर्ण कराने लिए जिलापूर्ति विभाग से वार्ता करतें । वे फ़िर क्या ख़ाक समाजसेवा कर रहे हैं ? कब होगा इन्हें अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान ? 
      वहीं, दूसरे निर्धन व्यक्ति के पास राशनकार्ड नहीं था,वह आधार कार्ड लेकर भटक रहा है। लेकिन,कोटेदार क्या करें ? बिना किसी सरकारी आदेश के वह चावल कैसे दे सकता है ?
  तो फ़िर क्या ऐसे व्यक्तियों को सरकार के विशाल अन्नभंडार से कोई लाभ नहीं मिलेगा ? क्या ऐसी विपत्ति में देश के एक नागरिक के रूप में सरकारी गल्ले पर इन दोनों का अधिकार नहीं ? यह  कैसी विडंबना है। ऐसे ही राशनकार्ड विहीन कुछ लोग आपूर्ति विभाग गये ,तो वहाँ यह कह उन्हें वापस कर दिया गया कि यह आपदा विभाग का मामला है। होटल स्वामी चंद्रांशु गोयल जो नगर विधायक के प्रतिनिधि भी हैं, ने इस संदर्भ में नगर मजिस्ट्रेट से वार्ता की' जिसपर उन्होंने बताया कि इनके लिए आपदा विभाग से ऐसे कोई सुविधा नहीं है। हाँ, ऐसे निर्धन वर्ग के लोग शहरी क्षेत्र में नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी कार्यालय और ग्रामीण क्षेत्रों में उप जिलाधिकारी के दफ़्तर पर जाकर फ़ार्म भर दें। उन्हें एक हजार रुपये मिलेगा। इस जानकारी पर श्री गोयल ने नगरपालिका अध्यक्ष मनोज जायसवाल से वार्ता की , तो उन्होंने बताया कि 16 अप्रैल तक सभी 34 सौ ऐसे फ़ार्म भरे जा चुके हैं।  अब क्या करे ये दोनों ? क्या भूखे रहे या दूसरों की दया पर निर्भर रहे ? 
   है कोई ऐसी सरकारी मदद जिससे इन्हें तत्काल ससम्मान अन्न मिले ?  इस यक्ष प्रश्न पर आप सभी विचार करें। हर जनप्रतिनिधि इस पर चिंतन करे कि यदि राशनकार्ड नहीं है, तो कोई ज़रूरतमंद क्या करें ?  क्या प्रशासन, पुलिस और समाजसेवियों के द्वारा कभी-कभार प्राप्त एक लंचपैकेट से इनका काम चलेगा ? क्या वे लोग जो अकर्मण्य और कायर नहीं हैं, इस लॉकडाउन में भिक्षुकों सा व्यवहार करें ? क्या इनकी इस समस्या का कोई समाधान नहीं ?
कुछ तो बोलें ज़नाब ! आप भी ?

      इन दिनों ऐसी कोई व्यवस्था होनी चाहिए कि जो भी व्यक्ति अपना आधार कार्ड लेकर जाए, उसे उसी वार्ड के कोटेदार से तत्काल पाँच किलोग्राम चावल निःशुल्क मिल जाए। कोरोना के साथ भूख से भी तो जंग इन्हें लड़ना है। 

       फ़िलहाल, मैं इन दोनों के लिए इतना ही कर सका कि एक समाजसेवी को इनकी समस्या से अवगत करवा दिया। उन्होंने चावल, दाल और नमक का पैकेट लेकर स्वयं मेरे पास आए। वे नगर के एक प्रमुख अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय के स्वामी हैं। और अपने सेवाकार्य के प्रचार- प्रसार से दूर रह कर ऐसे संकट के समय में अनेकों निराश्रित लोगों की सहायता कर रहे हैं। ऐसे सच्चे जनसेवकों को मेरा नमन । अन्यथा मेरे जैसे एक साधारण पत्रकार में इससे अधिक क्या सामर्थ्य, किन्तु हृदय व्यथित है कि हजारों लोग जिनके पास राशनकार्ड नहीं है, उनपर और उनके मासूम बच्चों पर इन दिनों क्या गुजर रहा होगा ? निस्सहाय हो ग़ैरों के समक्ष वे हाथ क्यों फैला रहे हैं? जिससे उनका स्वाभिमान आहत हो। इस तरह दूसरों पर आश्रित होना भौतिक ही नहीं मानसिक पराधीनता भी है।
  तो क्या जीना इसी का नाम है कि वे यह कह ईश्वर को पुकारे -
   जाएँ तो जाएँ कहाँ 
 समझेगा, कौन यहाँ, दर्द भरे दिल की ज़ुबाँ..। 
    
  है कोई ऐसा सच्चा कर्मयोगी ,जो इनकी इस समस्या का निराकरण करे ? लॉकडाउन में इनके जीवन पर छाए कष्टों का अनुभव करे।

            -व्याकुल पथिक
    

26 comments:

  1. जी बहुत सुन्दर जनता का चित्रण है , मेरे पास अब शब्दों की कमी हो रही है कि क्या लिखूं । फिलहाल नगर के गरीबों की मदद पर जिनके पास कुछ नही है उनके बारे में , जिम्मेदार होने के नाते मेरा भी धर्म है कि उनकी मदद कैसे हो जो हमेशा के लिए उन सभी की समस्या समाप्त हो जाय इसपर विचार कर कर समाप्त किया जा सकता है असंभव नही है । खैर अभी तुरंत की समस्या को देखते हुए तैयार भोजन ना दिया जाय उसकी जगह खाना बनाने के लिए चावल, दाल ,आटा और तेल दिया जाय तो बेहतर होगा। देखने मे आया है कि अब समाजसेवी सिर्फ अपने आस पास के ही वार्ड मुहल्लों के सिर्फ उन गरीबों की चिंता करें जिनके पास कोई सरकारी व्यवस्था नही है। हमारे समझ से सबसे उत्तम सहयोग होगा। एक समाज सेवी जो बिना फ़ोटो बिना नाम के सहयोग कर रहे है और अगर कोई जरूरतमंद उनको फ़ोन करता है तो उन्हे सामग्री पहुंचा देते है। साधुवाद के पात्र है । परंतु आज के समय में समाज सेवा से ज्यादा फोटोसेवा ,व्हाट्सएप, फेसबुक तक ही सीमित रह गयी है। फिलहाल देश हित में सब उचित है।

    - चंद्रांशु गोयल, नगर विधायक प्रतिनिधि, मीरजापुर।

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  2. एक निवेदन है आप सब से की लॉक डाउन का समय 3 मई तक बढ़ गया है आप सब लॉक डाउन का पालन करते हुए अपने पास पड़ोस अपने सगे संबंधियों के बीच में जो भी जरूरतमंद हो कोई भूखा न रहे इसका ध्यान देते रहें या फूड बैंक 05442256358 मीरजापुर का नं है आप सब फोन करके सबका सहयोग कर सकते है
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
    मनीष गुप्ता, भाजपा नगर अध्यक्ष, मीरजापुर।

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  3. Nirdesh jo bhi upar se aate hai ve uchit prakriya
    Ke tahat nahin aate,logon
    ke bayan akhbar me aa te
    hain jinhe padh kar log
    bhramit ho kar sach samajh baithte hain aur
    Field me janta ke pratyaksh sampark me
    aane vale pareshan hote
    hain aur kuchh na karne
    ke liye badnam bhi hote
    hain,saal bhar baad audit
    ke dauran jab auditor
    Aadesh ka havala mangta
    hai to shasan se javab
    Milta hai ki jo bhi aadesh
    diya jata hai uchit vidhi
    sammat prakriya ke jariye
    hi diya jata hai, hamne
    Maukhik aadesh ka palan
    Karne vale ek IAS ko
    Heart attack se dam
    todte dekha hai।
    Hamare neta aur unke
    sachiv ek foolproof
    Mechanism nahin de sake
    hain,ham teen mah Mumbai gujar aaye to
    Ration card khatm tha,
    Ek baar kaha gaya ki
    Angoothe ka nishan
    nahin mil raha, lakhon
    Ration card samapt
    Kar ke farji ration card
    Khatm karne ka dhindhora
    Khoob pita jata hai।
    Yuvak karykartaon ko samne aa kar apne netaon
    ke madhyam se baat
    sarkar tak pahunchani hogi,aur chara nahin hai
    DM and DSO can't do any
    thing till copy of GO is
    not on their table,pl forget
    What Yogi ji and Shahi ji
    and their secrateries said.

    -अधिदर्शक चतुर्वेदी, साहित्यकार।

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  4. लॉकडाउन 03 मई को समाप्त होगा ही अभी कुछ कहा नहीं जा सकता और समाज के हर जरूरतमंद लोगों को सरकारी मदद मिल ही जाएगी ये असम्भव है। तमाम सरकारी कोशिशों और घोषणाओं के बावजूद प्रत्येक जरूरतमंद को मदद मिल ना पाना ये हमारे सिस्टम की खामियों को उजागर करता है।सरकारी मशीनरी में व्याप्त भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले नियमों ने आज कई परिवारों के लिये भुखमरी जैसे हालात पैदा कर दिये हैं।ये लॉकडाउन कोरोना जैसी महामारी से तो शायद बचा लेगा लेकिन भूखमरी से शायद नहीं बचा पायेगा। शशि जी आपकी समाज के प्रति संवेदनशीलता सराहनीय है और आपके लेख सदैव हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आज इक्कीसवीं शताब्दी में भी तमाम प्रगति और विकास के बावजूद बड़ी संख्या में लोग जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हैं।

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    1. जी प्रवीण जी
      आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरे लेख को दिशा देती है।
      मुझे बहुत पीड़ा होती है। जब देखता हूँ किस तरह से लोग पाँच किलो चावल के लिए भटक रहे हैं। मैंने जनप्रतिनिधियों से भी यही प्रश्न किया था कि आप ही बताए कि जिसके पास राशनकार्ड नहीं है, वह क्या करे।
      आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लंचपैकेट बाँट कर अपनी संवेदनशीलता का परिचय दे रहे ये राजनेता और अधिकारी सभी मौन रहे।

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  5. Garmin kshetra men bhi bahut durdsa hai antr dristipat hone ya nahone tak hai.safaltam prastutikaran vartman ka .Thanks.
    बृजेश शुक्ल

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  6. इस घोर आपदाकाल में,
    शासन-प्रशासन को मानवता का परिचय देना चाहिए।

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    1. जी गुरुजी
      आपका आभार।

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    2. सरकारी क्रय केंद्रों पर सैकड़ो कुंतल धान सड़ता देख रहा हूँ आलाधिकारी के संज्ञान में डाल गया तो सड़े धान को ठिकाने लगा दिया गया । अन्न का अपमान कलयुग में सिस्टम का नाकारापन देखना दुःखद और शर्मनाक है । लेकिन जब हर साख़ पे उल्लू बैठे हो तो उम्मीद भी किससे की जाय ।
      बेहतरीन लेखनी आपकी दिल को छूने वाली है ।

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  7. जी बिल्कुल उचित कहा आपने इंद्रेश जी, आभार।

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    1. *खुद्दार मेरे शहर में फाक़े से मर गया*
      *राशन तो मिल रहा था, पर वो फोटो से डर गया*

      *खाना थमा रहे थे लोग सेल्फी के साथ साथ*
      *मरना था जिसको भूख से, वो ग़ैरत से मर गया...!!*

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    2. जी बिल्कुल सही, आभार।

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  8. प्रिय शशि जी,
    आपने समाज की एक कटु सच्चाई की तरफ सभी का ध्यान खिंचा है जो सभी जगह मौजूद है। बहुत से लोगों के पास रासन कार्ड नहीं है ये एकदम सत्य है। उनका रासन कार्ड किसी कारण से नहीं बना , इस समय जब सभी ऑफिस बन्द है वे बेचारे इस संकट काल मे कहाँ जाए ?वे गरीब एकदम से लाचार है,परेशान हैं ये पूर्ण रूपेण सत्य है।वे लोग तमाम सरकारी मदद से वंचित हो रहे हैं।इनको आधार कार्ड के आधार पर सभासद द्वारा प्रमाणित कर मुफ्त सरकारी रासन की व्यवस्था अवश्य करना चाहिए ताकी ये लोग भी सम्मान जनक जीवन यापन के लिए अनाज इत्यादि प्राप्त कर सके।हम आपके विचार से पूर्ण रूप से सहमत हैं।
    हम समाज के लोगों को भी चाहिए कि अपने इन भाइयों का विशेष ध्यान रखें, और देखा भी जा रहा है कि काफी लोग व सगठनों द्वारा स्वेच्छा से सेवा भी की जा रही हैं।वे सभी बधाई के पात्र हैं।कुछ लोग फोटो भी खिंचवा रहे हैं , शायद और लोगों के लिए नजीर पेस कर रहे हो...।इस कोरोना संकट का मुकाबला सभी लोग मिल जुल कर ही कर सकते हैं और कर भी रहे हैं।ये पूरी मानवता व दुनिया के लिए संकट की घड़ी हैं।बहुत धैर्य के साथ सभी जरूरत मंदो की मदद करना हमलोगों असली धर्म हैं।
    जय हिंद 🙏
    - आशीष बुधिया, पूर्व शहर अध्यक्ष कांग्रेस, मीरजापुर
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    आपकी सकारात्मक सोच को प्रणाम
    -अरविन्द कुमार त्रिपाठी
    अहरौरा, पत्रकार
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    बहुत अच्छा और बिल्कुल सही बात लिखी है शशि भाई आपने,
    - राजीव शुक्ला
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  9. गरीबों के साथ साथ मध्यमवर्गीय परिवार को भी ध्यान देना होगा🙏 क्योंकि संकोच में वह कुछ कह नहीं पा रहे हैं आशा नहीं विश्वास है सरकार इस पर जरूर ध्यान देगी 🙏 आपका यह लेख दिल को छू गया🙏 आपको ढेर सारी शुभकामनाएं💐 रतन कुमार, जादूगर🙏✍🎩

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  10. लॉकडाउन के साइड इफेक्ट से जनसाधारण को कैसे बचाया जाए, इसके लिए समाज और सरकार दोनों ही चिंतित हैं। जितना सोचा गया था, उससे कहीं ज़्यादा गंभीर स्थिति है। बेरोज़गार और असहाय लॉकडाउन की छाया में अपने आपको बचाने के संघर्ष में लगे हुए हैं। महिलाओं और बच्चों की स्थिति दयनीय है। भूख बहुत बड़ी समस्या है। सबकी भूख मिट जाए, ये हम सभी चाहते हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली, निजी वितरण प्रणाली और दया-दान का योगदान कम पड़ा रहा है। आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए फॉर्म भरे जा रहे हैं। मुक्त व्यवस्था में सभी जी रहे थे, लेकिन अब नियंत्रित व्यवस्था में जीना मुश्किल हो गया है। भोजन की तलाश में निकले हुए लोग डंडे भी खा रहे हैं। आवश्यक सेवा में लगे हुए भी मार खा रहे हैं। कोरोना से बचने के लिए शायद यह भी बहुत आवश्यक है। एक दरोगा जी तो हमेशा कहते हैं कि मार दिया जाए कि छोड़ दिया जाए, बोल तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए। दिन रात ड्यूटी करते हुए पुलिस वाले भी पस्त हो गए हैं। कहीं-कहीं डॉक्टर और चिकित्सा सेवा के लोग हिंसा के शिकार हो रहे हैं। बात घूम फिरकर भूख पर ही आती है। हर पेट को भोजन देना है। हर हाथों में पैसा देना है। बहुत ग़रीबी है। हम तो सोच रहे थे कि हम लोग ग़रीबी से ऊपर उठ गए हैं। लॉकडाउन ने हमें इस सोच से आज़ाद कर दिया है।

    जिला प्रशासन को चाहिए कि एक कोऑर्डिनेशन कमेटी जिसमें सभी राजनीतिक दलों के लोग, निर्वाचित प्रतिनिधि, नगर के उद्योगपति, विद्यालयों के संचालक और पत्रकार बंधु सम्मिलित हों, बनाना चाहिए। सुविधा के लिए नगर को कई सेक्टर में बाँटा जा सकता है। प्रतिदिन जहाँ पर कमी हो, वहाँ पर ध्यान आकृष्ट करके ग्राउंड लेवल पर काम करने की आवश्यकता है। सुझाव के साथ कोऑर्डिनेशन कमेटी के सदस्यों के स्तर पर क्या काम किया जा सकता है, इस पर भी प्रतिदिन चर्चा होनी चाहिए। किसी भी योजना अथवा मदद का लाभ सिर्फ पात्रों को मिले, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली पहले से ही विसंगतियों की शिकार है। किसी का राशन कार्ड नहीं बना है, तो किसी का अँगूठा नहीं लग रहा है, तो किसी के घर में सदस्यों की संख्या अधिक है। सस्ते गल्ले के विक्रेताओं को स्पष्ट आदेश देना चाहिए। आपदा काल में सस्ते गल्ले के विक्रेताओं को भी ईमानदारी से काम करना होगा।

    राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाले हुए लोग ख़ामोश हो गए हैं। संवादहीनता की स्थिति में सभी गरीबों तक पहुंचना संभव नहीं हो पा रहा है। पहले भी सबसे ज़्यादा मतलब नहीं था। चुनाव के पहले और चुनाव के बाद की स्थितियों में तो साम्यता रहती है। सिर्फ़ चुनाव में ही हलचल देखने को मिलती है। हर तरह के वादे किए जाते हैं। अभी तो वादों और इरादों का वक़्त नहीं है। शशि भाई आपने हालात का मार्मिक चित्रण किया है। आपके इस पोस्ट, जिस पर संवेदनशील लोगों की नज़र है, के माध्यम से समस्याओं का काफ़ी हद तक समाधान होगा, मुझे इसका पूर्ण विश्वास है।

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    1. जी अनिल भैया
      उचित कहा आपने। चंद्रांशु भैया का भी यही मत है कि जिला प्रशासन एक समन्वय समिति का गठन करे। जिसमें प्रबुद्धजनों के माध्यम से राशन की समस्या और समाधान दोनों पर ही विस्तार से चर्चा होती रही।
      और हमारा जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली है वह समर्थ है,सिर्फ़ दिशा -निर्देश और निगरानी की आवश्यकता है।
      आपने कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर अपना विचार रखा। जिससे इस लेख की सार्थकता और बढ़ गयी है भैया।🙏

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  11. *खुद्दार मेरे शहर में फाक़े से मर गया*
    *राशन तो मिल रहा था, पर वो फोटो से डर गया*
    खाना थमा रहे थे लोग सेल्फी के साथ साथ*
    *मरना था जिसको भूख से, वो ग़ैरत से मर गया...!!*
    सच में शशि भाई  , एक गैरतमंद के लिए  सार्वजनिक  रूप से भले खाना ही हो   , लेना किसी बेगैरत कृत्य से कम नहीं |उसकी आँखें तो  झुकेंगी  ही  उसका ज़मीर  भी  उसे ग्लानि  से भर देगा |  आपने स्थानीय  जरूरतमंद  लोगों की  समस्या को बहुत ही सवेद्नात्मक ढंग से रखा |आप जैसे पत्रकार का एक जनप्रतिनिधि के रूप में इस तरह की समाजसेवा बहुत मायने रखती है क्योकि प्रखर पत्रकार होने के नाते आपकी बात प्रशासन तक  पहुँचती  है |आशा है अब तक   कोई ना कोई  उदारमना --इन जरुरतमंदों की मदद के लिए जरुर आगे आ गया होगा | मार्मिक लेख के लिए साधुवाद |  

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  12. मार्मिक ह्रदय को छु लिया आपको मेरा हृदय से प्रणाम मुझे आप जिस लायक समझिएगा
    निः संकोच याद करियेगा l
    - पंकज खत्री, रोटरी क्लब, डायमंड
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    🙏🌹👌🏻बिलकुल सत्य लिखे हैं भाई सहाब । राशन कार्ड जिला के अनेक लोग के पास नहीं है। 🙏 कुंदन लाल सेवक

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  13. Shashi ji, Namaskar.
    AAP ne bahut hi sahi sawal un Garib aur asahai logo ke liye uthaya hai Jin Garib bhaio ka rashan kard nahi ban paya hai. Is bhayankar paristhiti men lagata hai bhuk see jhelana parega. Sarkar ka kahana hai ki bhook see kisi ko marane nahi Diya jawe ga. Sarkar ko spast adesh Dena chahiye jile ke adhikario ko ki Jin Garib logo ka card nahi ban paya hai unhe pura rashan har Mahadev ka pradan Kare. Mai Mirzapur ke sabhi,Mp, MLAS, zila parishad president, Nagarpalika adhyakch, sabhasads and District Administration see anurodh karata hoo ki Turant Govt se uchit adesh prapt kar Garib bhaio ki sahayata Kare aur unhe bhook see chutkara dilwawe aur unki rashan card banwane ki kripa Kare.
    Rajkumar Tandon
    General Secretary of All India khatri Mahasabha.

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  14. Ji Bhai sb, bahut hi jayaj sawal wa aadhar ke vikalp ki baat, Karan ki ab to poori- sabji batnewale daandataaon ke bhi hausale past ho Gaye Hain.🙏🏻🌹
    यह एक संवेदनशील अधिकारी का वक्तव्य है।

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  15. अत्यंत मार्मिक गरीबों के दर्द को रेखांकित करता हुआ लेख
    आप बधाई के पात्र हैं जो इस सच्चाई को अपनी कलम के माध्यम से उजागर करने का साहस कर दिखलाएं हैं। बिल्कुल सत्य है क्योंकि आज भी एक वर्ग ऐसा भी है जो इन समस्याओं से जूझ रहा है चाहे वह प्रवासी गैर जनपद, प्रांत का हो वह भी सरकारी सुविधाओं से कोसों दूर अपनी वेदना को कह पाने का साहस नहीं दिखला रहा है कारण कि उसे अपनी पीड़ा कहने में भी झिझक हो रही है। गरीबों के साथ ही साथ मध्यमवर्गीय परिवारों के समक्ष भी ऐसी परेशानी देखने में आ रही है। इस अवस्था में सरकार का यह कहना कि कोई भी भूखा नहीं रहने पाएगा और किसी को अन्य की समस्या पर नहीं होगी कहीं ना कहीं से गलत भी साबित हो रही है क्योंकि कई ऐसे परिवार हैं जो अर्ध सरकारी सेवाओं में हैं चाहे वह शिवा के क्षेत्र में हो या मीडिया के क्षेत्र से जुड़े हो या चाहे अन्य प्राइवेट संस्थानों दुकानों इत्यादि के वर्कर के रूप में कार्यरत रहे हुए हैं इन दोनों वह भी इन समस्याओं से दो-चार हो रहे हैं।

    संतोष देव गिरि

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  16. बिना राशनकार्ड धारकों को निःशुल्क सरकारी गल्ला( चावल) के संदर्भ में आज गांव- गरीब नेटवर्क के संयोजक सलिल पांडेय ने जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से वार्ता की । तो जानकारी मिली कि 45 हजार लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है। लेकिन, फिलहाल शासन की ओर से ऐसा कोई गाइडलाइन नहीं है कि सरकारी गल्ले की दुकानों से इन्हें भी कार्ड धारकों की तरह निःशुल्क चावल मिले। हाँ , कोई भी भूखा न रहे , इसके लिए जिलाप्रशासन जनसहयोग से ऐसे जरूरतमंद लोगों को जिलापंचायत और तहसीलों के माध्यम से भोजन उपलब्ध करवा रहा है। इसके लिए हेल्पलाइन नंबर भी है।

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  17. पासपोर्ट वालों की करनी का फल राशनकार्ड वाले भुगत रहे हैं. फिर हमारे देश-समाज में गरीब होना ही पाप है.इस लाकडाउन के दौर में ही देख लें कैसे लाखों लोगों को निराश्रित सड़कों पर भूख और बीमारी से मरने के लिए व्यवस्था ने छोड़ दिया. यकीन जानिये जिस दिन यह तय हो गया कि यह बीमारी अमीरों को नहीं होगी उसी दिन सब बंदिशें खत्म हो जायेंगी.बीमारी के नाम पर समाज का खाया पिया मोटा तंदुरुस्त तबका गरीबों से किस हद तक घृणा करता है. इस दौर में खूब दिखा. भूखे प्यासे लोगों को आलीशान फ्लैट और कोठियों में रहने वालों ने कोरोना बम कह कर भगा दिया.

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yes