लॉकडाउन की बातें
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यहाँ मुझे एक ही प्रतिष्ठान के दो छोर पर एक ही वक़्त दो अलग- अलग दृश्य ही नहीं विचार भी दिखें । एक ओर सैकड़ों रुपये ख़र्च कर माला-फूल और अंगवस्त्र मंगाये गये और दूसरी ओर बोरा भर खीरा। एक तरफ़ तामझाम तो दूसरी तरफ़ निःस्वार्थ पशु सेवा ..
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इस लॉकडाउन में इन दिनों शाम की चाय की तलब मुझे संदीप भैया के प्रतिष्ठान तक खींच ले जाती है। दरअसल चीनी, चायपत्ती और दूध आदि की व्यवस्था कर पाना मेरे लिये भोजन पकाने से भी अधिक कठिन कार्य है। अतः घर जैसी चाह भरी चाय के लोभ में अक्सर ही सायं पाँच बजे से पूर्व वहाँ पहुँच जाता हूँ। साथ में विष्णुगुप्त चाणक्य और उपनिषद् ज्ञान से संबंधित दो टीवी धारावाहिक भी देख ले रहा हूँ। तबतक ऊपर घर से चाय भी आ जाती है। वो कहा गया है न कि एक पंथ दो काज।
संदीप भैया व्यवसायी होकर भी जुगड़तन्त्र से दूर रहते हैं। वे सहृदयी और समाजसेवी हैं। सो, हम दोनों की विचारधारा एक जैसी है ,यदि कोई भेद है, तो वह राजा और रंक का है। विगत वृहस्पतिवार को भी मैं उनके प्रतिष्ठान पर गया। वहाँ देखा कि मुहल्ले के कुछ उत्साही युवक कोरोना वीरों के स्वागत की तैयारी में जुटे हैं। जब पूरे जिले में ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर के भी वार्ड-मुहल्ले में पुलिस अधिकारियों का स्वागत हो रहा है। माल्यार्पण के साथ उनपर पुष्पवर्षा हो रही हो, तो वे क्यों पीछे रहतें। सो,यहाँ भी कुछ देर पश्चात पुलिस अधिकारियों के आते ही फ़ोटोग्राफ़ी के साथ ही तालियाँ बजनी शुरू हो गयी थीं।
तभी मैंने देखा कि श्री सत्य साईं सेवा संगठन का एक सदस्य बोरे में खीरा भरकर लाया ।जिसे दुकान के दूसरे छोर पर डालकर ,वह जैसे ही स्नेहपूर्वक 'आवो-आवो 'की आवाज़ लगाता है, देखते ही देखते क्षुधातुर गोवंश दौड़े चले आते हैं। वे खीरे पर टूट पड़ते हैं। जिसे देख वह गौसेवक आनंदविभोर हो उठा था। बिना किसी तरह की फ़ोटोग्राफ़ी किये, वह जैसे आया था, वैसे ही चुपचाप चला गया। उस युवक की निःस्वार्थ सेवा देख मुझसे रहा नहीं गया। मैंने जेब मोबाइल निकाल कर दूर से एक फ़ोटो ले ही लिया । ऐसे सच्चे समाजसेवियों की पहचान हम पत्रकार को भी रखनी चाहिए ।
यहाँ मुझे एक ही प्रतिष्ठान के दो छोर पर एक ही वक़्त दो अलग- अलग दृश्य ही नहीं विचार भी दिखें । एक ओर सैकड़ों रुपये ख़र्च कर माला-फूल और अंगवस्त्र मंगाये गये और दूसरी ओर बोरा भर खीरा। एक तरफ़ तामझाम तो दूसरी तरफ़ निःस्वार्थ पशु सेवा। ज़ाहिर है कि ये माल-फूल कुछ देर पश्चात पाँवों तले कुचले जाएँगे और दूसरी ओर बोरे भर खीरे ने मूक जीवों की प्राणरक्षा की।आप बताएँ असली कर्मवीर इनमें से कौन हैं ? हम उन्हें न भी पहचाने तो भी वे सूर्य बन प्रगट हो ही जाएँगे।
इन यूनिक इंडिया सोसाइटी के कार्यकर्ताओं के लिए भी ऐसे माला वीरों को ध्यान देना चाहिए जो अपने नगर के गंगातट के पास सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए बच्चों को दूध पिला रहे हैं। इस आपदा की घड़ी में बच्चों के साथ ही उनकी माताएँ भी इनके माध्यम से दूध प्राप्त कर रही हैं। सोसाइटी के कार्यकर्ता बड़े ही सेवा भाव से यह कार्य करते दिखें।
किन्तु यह क्या ? मालार्पण और पुष्पवर्षा के लोभ में जिले के कछवां में आयोजकों के साथ पुलिस ने भी सोशल डिस्टेंस की धज्जियाँ उड़ा दीं। ऐसे माला वीरों को देख जनता ने कम चुटकी नहीं ली थी। ऐसे स्वागत कार्यक्रम लॉकडाउन के पश्चात भी किये जा सकते हैं। लेकिन, प्रशासन का सामीप्य और फ़ोकस में आने का अवसर हम कैसे छोड़ सकते हैं ।
ख़ैर,जैसा की मैंने पिछले पोस्ट में लिखा था , जिन निम्न-मध्यवर्गीय स्वाभिमानी लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है, वे क्या करें ? ऐसे में एक प्रश्न यह भी है कि सभासद क्या कर रहे थे ? सत्तापक्ष के बूथ अध्यक्षों से लेकर जनप्रतिनिधियों की भी तो कुछ ज़िम्मेदारी होती है , क्या वे सिर्फ़ वोटों के सौदागर हैं ? राशनकार्ड बनवाने का दायित्व इनमें से किसी का नहीं था ?
ऐसी ही एक और विधवा युवती बड़ी माता मुहल्ले से आती है।उसके पास राशन कार्ड नहीं था। इस लॉकडाउन में वह अपना और अपने बच्चे का पेट कैसे भरे।पहले माता-पिता तत्पश्चात पति की मृत्यु। मायके में उसे सिर छुपाने का स्थान मिल गया था ।अबतक नियति से संघर्ष कर रही यह युवती अपने स्वाभिमान की रक्षा कैसे करे ? यदि क्षेत्रीय सभासद को अपने वार्ड के ऐसे निर्धन लोगों की तनिक भी चिन्ता होती, तो आज उसके पास राशनकार्ड होता। उसके सहयोग के लिए मैंने उसी अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय के प्रबंधक के पास संदेश भेजा । सो, फ़िलहाल उसका काम चल गया है। उसके स्वाभाविक की रक्षा हो गयी , लेकिन कब तक ?
बिना राशनकार्ड धारकों को निःशुल्क सरकारी गल्ला( चावल) के संदर्भ में मेरे पिछले पोस्ट को पढ़ कर गांव- गरीब नेटवर्क के संयोजक सलिल पांडेय ने जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से वार्ता की थी,तो जानकारी मिली कि मीरजापुर जिले 45 हजार लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है, परंतु शासन की ओर से ऐसा कोई गाइडलाइन नहीं है कि सरकारी गल्ले की दुकानों से इन्हें भी कार्ड धारकों की तरह निःशुल्क चावल मिले। प्रशासन ऐसे लोग भूखे नहीं रहे ,इसके लिए जन सहयोग से इन्हें अनाज उपलब्ध करवा रहा है, परंतु कितना ? इनके नागरिक अधिकार और दया में अंतर है की नहीं ?
इसके लिए सभासदों से लेकर ग्रामप्रधानों को स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या वे वास्तव में अपने क्षेत्र में जनता के प्रतिनिधि हैं ? इसीलिए स्वार्थ के तराजू पर तोले गये ऐसे रिश्ते स्थाई नहीं होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय वैश्य सम्मेलन के प्रदेश पदाधिकारियों संग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में वृहस्पतिवार की देर शाम संगठन के प्रदेश अध्यक्ष व लखनऊ के विधायक नीरज बोरा की उपस्थित में प्रदेश के आयुष मंत्री अतुल गर्ग को मीरजापुर के संदर्भ में संगठन की ओर से चंद्रांशु गोयल ने बताया कि निम्न - मध्यवर्ग के अनेक लोग हैं, जिनके पास राशनकार्ड नहीं है। इस समय उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय है। फ़िर भी इस समस्या का निराकरण नहीं हुआ।
बहरहाल ,अपना काम तो जागते रहो की पुकार लगाना है, आगे राम जाने।
- व्याकुल पथिक
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यहाँ मुझे एक ही प्रतिष्ठान के दो छोर पर एक ही वक़्त दो अलग- अलग दृश्य ही नहीं विचार भी दिखें । एक ओर सैकड़ों रुपये ख़र्च कर माला-फूल और अंगवस्त्र मंगाये गये और दूसरी ओर बोरा भर खीरा। एक तरफ़ तामझाम तो दूसरी तरफ़ निःस्वार्थ पशु सेवा ..
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इस लॉकडाउन में इन दिनों शाम की चाय की तलब मुझे संदीप भैया के प्रतिष्ठान तक खींच ले जाती है। दरअसल चीनी, चायपत्ती और दूध आदि की व्यवस्था कर पाना मेरे लिये भोजन पकाने से भी अधिक कठिन कार्य है। अतः घर जैसी चाह भरी चाय के लोभ में अक्सर ही सायं पाँच बजे से पूर्व वहाँ पहुँच जाता हूँ। साथ में विष्णुगुप्त चाणक्य और उपनिषद् ज्ञान से संबंधित दो टीवी धारावाहिक भी देख ले रहा हूँ। तबतक ऊपर घर से चाय भी आ जाती है। वो कहा गया है न कि एक पंथ दो काज।
संदीप भैया व्यवसायी होकर भी जुगड़तन्त्र से दूर रहते हैं। वे सहृदयी और समाजसेवी हैं। सो, हम दोनों की विचारधारा एक जैसी है ,यदि कोई भेद है, तो वह राजा और रंक का है। विगत वृहस्पतिवार को भी मैं उनके प्रतिष्ठान पर गया। वहाँ देखा कि मुहल्ले के कुछ उत्साही युवक कोरोना वीरों के स्वागत की तैयारी में जुटे हैं। जब पूरे जिले में ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर के भी वार्ड-मुहल्ले में पुलिस अधिकारियों का स्वागत हो रहा है। माल्यार्पण के साथ उनपर पुष्पवर्षा हो रही हो, तो वे क्यों पीछे रहतें। सो,यहाँ भी कुछ देर पश्चात पुलिस अधिकारियों के आते ही फ़ोटोग्राफ़ी के साथ ही तालियाँ बजनी शुरू हो गयी थीं।
तभी मैंने देखा कि श्री सत्य साईं सेवा संगठन का एक सदस्य बोरे में खीरा भरकर लाया ।जिसे दुकान के दूसरे छोर पर डालकर ,वह जैसे ही स्नेहपूर्वक 'आवो-आवो 'की आवाज़ लगाता है, देखते ही देखते क्षुधातुर गोवंश दौड़े चले आते हैं। वे खीरे पर टूट पड़ते हैं। जिसे देख वह गौसेवक आनंदविभोर हो उठा था। बिना किसी तरह की फ़ोटोग्राफ़ी किये, वह जैसे आया था, वैसे ही चुपचाप चला गया। उस युवक की निःस्वार्थ सेवा देख मुझसे रहा नहीं गया। मैंने जेब मोबाइल निकाल कर दूर से एक फ़ोटो ले ही लिया । ऐसे सच्चे समाजसेवियों की पहचान हम पत्रकार को भी रखनी चाहिए ।
यहाँ मुझे एक ही प्रतिष्ठान के दो छोर पर एक ही वक़्त दो अलग- अलग दृश्य ही नहीं विचार भी दिखें । एक ओर सैकड़ों रुपये ख़र्च कर माला-फूल और अंगवस्त्र मंगाये गये और दूसरी ओर बोरा भर खीरा। एक तरफ़ तामझाम तो दूसरी तरफ़ निःस्वार्थ पशु सेवा। ज़ाहिर है कि ये माल-फूल कुछ देर पश्चात पाँवों तले कुचले जाएँगे और दूसरी ओर बोरे भर खीरे ने मूक जीवों की प्राणरक्षा की।आप बताएँ असली कर्मवीर इनमें से कौन हैं ? हम उन्हें न भी पहचाने तो भी वे सूर्य बन प्रगट हो ही जाएँगे।
इन यूनिक इंडिया सोसाइटी के कार्यकर्ताओं के लिए भी ऐसे माला वीरों को ध्यान देना चाहिए जो अपने नगर के गंगातट के पास सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए बच्चों को दूध पिला रहे हैं। इस आपदा की घड़ी में बच्चों के साथ ही उनकी माताएँ भी इनके माध्यम से दूध प्राप्त कर रही हैं। सोसाइटी के कार्यकर्ता बड़े ही सेवा भाव से यह कार्य करते दिखें।
किन्तु यह क्या ? मालार्पण और पुष्पवर्षा के लोभ में जिले के कछवां में आयोजकों के साथ पुलिस ने भी सोशल डिस्टेंस की धज्जियाँ उड़ा दीं। ऐसे माला वीरों को देख जनता ने कम चुटकी नहीं ली थी। ऐसे स्वागत कार्यक्रम लॉकडाउन के पश्चात भी किये जा सकते हैं। लेकिन, प्रशासन का सामीप्य और फ़ोकस में आने का अवसर हम कैसे छोड़ सकते हैं ।
ख़ैर,जैसा की मैंने पिछले पोस्ट में लिखा था , जिन निम्न-मध्यवर्गीय स्वाभिमानी लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है, वे क्या करें ? ऐसे में एक प्रश्न यह भी है कि सभासद क्या कर रहे थे ? सत्तापक्ष के बूथ अध्यक्षों से लेकर जनप्रतिनिधियों की भी तो कुछ ज़िम्मेदारी होती है , क्या वे सिर्फ़ वोटों के सौदागर हैं ? राशनकार्ड बनवाने का दायित्व इनमें से किसी का नहीं था ?
ऐसी ही एक और विधवा युवती बड़ी माता मुहल्ले से आती है।उसके पास राशन कार्ड नहीं था। इस लॉकडाउन में वह अपना और अपने बच्चे का पेट कैसे भरे।पहले माता-पिता तत्पश्चात पति की मृत्यु। मायके में उसे सिर छुपाने का स्थान मिल गया था ।अबतक नियति से संघर्ष कर रही यह युवती अपने स्वाभिमान की रक्षा कैसे करे ? यदि क्षेत्रीय सभासद को अपने वार्ड के ऐसे निर्धन लोगों की तनिक भी चिन्ता होती, तो आज उसके पास राशनकार्ड होता। उसके सहयोग के लिए मैंने उसी अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय के प्रबंधक के पास संदेश भेजा । सो, फ़िलहाल उसका काम चल गया है। उसके स्वाभाविक की रक्षा हो गयी , लेकिन कब तक ?
बिना राशनकार्ड धारकों को निःशुल्क सरकारी गल्ला( चावल) के संदर्भ में मेरे पिछले पोस्ट को पढ़ कर गांव- गरीब नेटवर्क के संयोजक सलिल पांडेय ने जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से वार्ता की थी,तो जानकारी मिली कि मीरजापुर जिले 45 हजार लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है, परंतु शासन की ओर से ऐसा कोई गाइडलाइन नहीं है कि सरकारी गल्ले की दुकानों से इन्हें भी कार्ड धारकों की तरह निःशुल्क चावल मिले। प्रशासन ऐसे लोग भूखे नहीं रहे ,इसके लिए जन सहयोग से इन्हें अनाज उपलब्ध करवा रहा है, परंतु कितना ? इनके नागरिक अधिकार और दया में अंतर है की नहीं ?
इसके लिए सभासदों से लेकर ग्रामप्रधानों को स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या वे वास्तव में अपने क्षेत्र में जनता के प्रतिनिधि हैं ? इसीलिए स्वार्थ के तराजू पर तोले गये ऐसे रिश्ते स्थाई नहीं होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय वैश्य सम्मेलन के प्रदेश पदाधिकारियों संग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में वृहस्पतिवार की देर शाम संगठन के प्रदेश अध्यक्ष व लखनऊ के विधायक नीरज बोरा की उपस्थित में प्रदेश के आयुष मंत्री अतुल गर्ग को मीरजापुर के संदर्भ में संगठन की ओर से चंद्रांशु गोयल ने बताया कि निम्न - मध्यवर्ग के अनेक लोग हैं, जिनके पास राशनकार्ड नहीं है। इस समय उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय है। फ़िर भी इस समस्या का निराकरण नहीं हुआ।
बहरहाल ,अपना काम तो जागते रहो की पुकार लगाना है, आगे राम जाने।
- व्याकुल पथिक
आपका हर विषय विचार योग्य रहता है,
ReplyDeleteसभी लोगो से सविनय निवेदन है कि जो भी जहा हो सके अंबोलते पशु पक्षी जानवरो के खाने पीने में सहयोग करे,
उचित कहा दीपक जी आपने।
Deleteबिलकुल सही मुद्दों की तरफ़ आपने ध्यान खिंचा है।
ReplyDeleteजी प्रणाम, आभार।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से लेख की सार्थकता बढ़ी।
आपने सही कहा शशि जी कि "अपना काम जागते रहो की पुकार लगाना है, आगे राम जाने। " लेकिन आपका ये प्रयास व्यर्थ नही जाएगा। देर-सवेर लोगों को समझ आयेगा कि क्या सही और क्या गलत है।
ReplyDeleteआपकी सार्थक पत्रकारिता के लिए आपको हृदय से साधुवाद!
जी प्रवीण जी
Deleteप्रतिक्रिया के माध्यम से उत्साहवर्धन के लिए आभार। 🙏
शशि जी की रिपोर्ट लगातार पढ़ रहा हूँ. पत्रकारिता के लिए जिस अंतर्दृष्टि और आइडियेशन की आवश्यकता होती है वह शशि को प्राप्त है. जनहितकारी मुद्दों पर शशि संप्रेषणीय व्याख्या और विश्लेषण करते हैं, अपनी विशिष्ट शैली में, पूर्ण रचनात्मकता के साथ.अब ऐसी पत्रकारिता का ही भविष्य है. साधुवाद
ReplyDeleteआदरणीय सर्वेश त्रिपाठी की प्रतिक्रिया। आप मिर्ज़ापुर के केबीपीजी कॉलेज में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष रहे हैं।
आपका विषय विचार करने पर विवश कर ही देता है।बड़े ही अन्तर्मन से विषय का चयन करते है आप।
ReplyDeleteप्रवीण भैया की एक बात अच्छी लगी अपना काम तो जागते रहो का नारा लगाना है।जरूर ये नारा कारगर रूप से सिद्ध हो जाएगा।
��
जी मनीष जी
Deleteआभार।
ठीक ही कहा प्रवीण जी ने, हमें अपना काम करना चाहिए।
क्या बात है भैया , आप की लेखनी का कोई जवाब नही है। लेकिन जागते रहो , जगाते रहो ।
ReplyDelete-चंद्रांशु गोयल ,नगर विधायक प्रतिनिधि मिर्ज़ापुर।
जहाँ तक हो सके इस कंकट काल में सबकी सहायता करें।
ReplyDeleteजी गुरुजी 🙏
DeleteShashi Gupta Shashi ji
ReplyDeletedono alag tarah ke vakye
hain,samay ka chayan
mayne rakhta hai,abhi
udar hriday logon ka akal
nahin hai,log prachar se
door rah kar apna kam
kar gujarte hain koi janta
hai koi nahin janta,
Jahan tak svagat ka saval
hai yah bhi ek aavashyak
burai hai ,jo log jan samarpit hain unka
samman hota hi hai।
Aaj bhi log CM Bhatt IPS
aur Baba Hardeo Singh
ko yaad karte hi hain।
Sahmat honge।
अधिदर्शक चतुर्वेदी, साहित्यकार।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2020) को शब्द-सृजन-18 'किनारा' (चर्चा अंक-3683) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका अत्यंत आभार गुरुजी।
Deleteजीवन विरोधाभासों से भरा हुआ है। विरोधाभास ही हमें परिपक्व करते हैं। लॉकडाउन में सेवा और सेवा का सम्मान, दोनों ज़ारी है। एक पत्रकार के रूप में आपकी उस पर दृष्टि भी है। संवेदनशील हृदय तुलना ज़रूर करेगा। करना भी चाहिए। अपव्यय और दिखावा नहीं होना चाहिए। इस समय एक-एक पैसे का सदुपयोग होना चाहिए। कोई भी वंचित, कोई भी पीड़ित और कोई भी भूखा व्यवस्था से निराश न हो इस बात का प्रयत्न हम सभी को मिलकर करना है। संकट काल में जनसामान्य की आकांक्षाओं पर खरा उतरना है।
ReplyDeleteहमारी जीवनशैली ही ऐसी रही है कि हम कभी संकट काल के लिए तैयार नहीं रहते। सेवा और तत्परता के संस्कार से हम बहुत दूर रहकर जीने की आदत जो हमारी होती है। इतनी लंबी अवधि का लॉकडाउन न होता, तो तमाम बातों का पता हमें भी न चल पाता। जहाँ हमें योगदान देना होता है, वहाँ हम भाषण देकर निकल लेने के हम अभ्यस्त रहे हैं। देने से कहीं ज़्यादा लेने के चक्कर में रहे हैं। जब किसी को मदद की ज़रूरत हुई तो हम ख़ामोश हो गए। अपने संबंधों का ज़रूरतमंद की मदद के लिए इस्तेमाल नहीं किया। बात राष्ट्रीय करते रहे और स्थानीय समस्याओं को छोड़ दिया। पड़ोसी अपने घर-परिवार की बात करना चाहता था, तो हम उससे अमेरिका की बात करने लगे। सरकारी योजनाओं का गलत लोग लाभ उठाते रहे और हमने बोला नहीं। जब हम नहीं बोलते हैं, तो फिर पात्र लोग निराश होकर मुख्यधारा से दूर हो जाते हैं। व्यवस्था से अपेक्षा करना ही बंद कर देते हैं।
इस लॉकडाउन ने बता दिया कि हमारा नगर और महानगर किसकी बदौलत चल रहा था। ग़रीब मज़दूर लोग जिन्होंने इस कठोर लॉकडाउन में हज़ारों किलोमीटर चलने की हिम्मत की और अपने गाँवों को लौटने का प्रयास किया। पैदल, साइकिल और अन्य साधनों से उन्हें लौटते हुए देखकर रूह काँप गई। पीड़ितों की पीड़ा ख़त्म हो, इसके लिए ईमानदार प्रयास करने होंगे। शासन-प्रशासन की हर कड़ी को अपना काम करना होगा। सर्वजनिक वितरण प्रणाली की वैकल्पिक व्यवस्था भी करनी होगी। संकटकाल हेतु भी विशेष राशन कार्ड बनाने होंगे। विधवाओं और बेसहारा लोगों का ध्यान रखना होगा। संकट की घड़ी से बढ़कर कोई बड़ा अवसर नहीं होता। यह हमारा बेहतर मार्गदर्शन करता है।
शशि भाई, आपने हमेशा हाशिए पर पड़े लोगों को सामने लाने का काम किया है। वंचितों की आवाज़ बनकर हमेशा खड़े रहे हैं। आप जगाते हैं, तो लोगों को जागना ही पड़ता है। इस समाज में अच्छे लोगों की भी कोई कमी नहीं है। आपके मित्र के द्वारा मुझे भी चाय मिलेगी, एक ऐसे ही दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ। बहुत सुंदर लिखा है भाई।💖
बिल्कुल अनिल भैया , समाज में अच्छे लोगों की कमी नहीं है, किन्तु उन्हें पहचाने की दृष्टि हमारे पास नहीं है अथवा उस पर स्वार्थ की पट्टी पड़ी हुई है। फ़िर भी प्रयास होते रहना चाहिए और हो भी रहा है। ऐसे लोग स्नेह के दो बोल चाहते हैं।
Deleteऔर एक बात इस संकट में ही शासन-प्रशासन की कार्य क्षमता की परख होती है।
और यह राशन कार्ड से प्रारंभ होता है।
आपकी प्रतिक्रिया सदैव लेख को दिशा देती है। आपका अत्यंत आभार🙏
आप का हर लेख मानव समाज को नई दिशा दिखाता है 🙏 🙏 🌹
ReplyDeleteआभार , धन्यवाद।
Deleteसमाज का आईना दिखाता आप का लेख
ReplyDelete-अरविन्द कुमार त्रिपाठी,पत्रकार
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दिल को छू ली आपकी शब्द भाईया दिल की बाते मेरे दिल तक उत्तर गयी मुझे नही लगा कि कब ये फोटो लिया गया लेकिन जबरदस्त फोटो के साथ एक मन को छूने वाली आपकी बाते दिल से आभार
-शुभम गुप्ता अध्यक्ष श्री सत्य साँई परिवार सेवा संगठन मीरजापुर
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Bhai sb, bahut uttam .kaam me lage rahein .kuchh asar to padega hi.🙏🏻
ReplyDeleteआप इसी तरह अपने अनुभव से लिखे लेख से हम लोगों को जगाते रहिये, बहुत कुछ सीखने को मिलता है पढ़ कर 👌🙏
- राजीव शुक्ला
शशिभाई , एक जनप्रतिनिधि और सजग पत्रकार के रूप में आप बहुत ही ध्यान से वस्तुस्थिति का अवलोकन करते हैं | एक सच्चे पत्रकार की हैसियत से आपने वही लिखा जो न्यायोचित है , क्योकि आप अपने एरिया की सभी समस्याओं से बखूबी वाकिफ हैं | यूँ तो कोरोना योद्धाओं का सम्मान करना कुछ बुरा नहीं पर फूल -माल में तो थोड़ी कमी भी हो सकती है | उनमें से भी कुछ भी जरूरतमंद हो सकते हैं | उनकी समस्याओं की पूर्ति करना उनका सम्मान हो सकता है | मूक प्राणी इस समय बुरे दौर से गुजर रहे हैं | शायद कोई मूक रहकर अपनी पीड़ा , भूख ना कह पा रहा हो | उनका ख्याल रखना भी किसी अश्वमेघ यज्ञ से कम नहीं |समाज के इन मौन कर्मवीरों को पहचानना और उनके योगदान को समाज के सामने आना ही चाहिए जिसके लिए आप यदा कदा प्रयास करते ही रहते हैं|
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा आपने | यूँ ही अपने शहर के मसीहा बन रहिये | मेरी शुभकामनाएं|
उचित कहा आपने।
Deleteसम्मान अवश्य हो,होना भी चाहिए। यह उत्साहवर्धन के लिए आवश्यक है।
परंतु लॉकडाउन के पश्चात भी हो सकता है,ताकि वर्तमान में सोशल डिस्टेंस भी भंग न हो और यह धन किसी ज़रूरतमंद के काम आ जाए।
प्रतिक्रिया के लिए आभार दी।
प्रणाम।
बहुत सुंदर लेख
ReplyDeleteरूपये वही, उपयोग सही
- कृष्णा सिंह
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शशि भाई आपकी लेखनी को सलाम
- समर शर्मा
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आज के समाजसेवियों के लिए बहुत ही विचारणीय व मार्मिक लेख👌👌👌👌👌✍
-रामलाल साहनी
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*बोल कि लब आजाद है तेरे*
आपके कलम की लेखनी को सलाम
बहुत ही सुंदर लेखनी सर
- असलम खान
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आपकी लेखनी अंतर्मन को छूती है
- देवेंद्र पांडेय
Nice
ReplyDeleteब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Deleteआभार।
बहुत उत्कृष्ट तुलनात्मक लेख है आपका ,खुशी की बात यह है कि नाममात्र ही सही पर कुछ युवा ऐसे भी है जो फोटोबाजी से दूर गोवंशों की पेट की आग की तपन को महसूस करते है । जीवो के प्रति यह दया उन्हें सात्विक आहार के लिए प्रेरित करेगी नही तो अपने स्वाद के लिए निरीह जीवो की हत्या करने को कुछ लोग चीनी संस्कृति के फॉलोअर बने हुए है ।
ReplyDelete- अखिलेश कुमार मिश्र,पत्रकार।
शशि भाई, एक पत्रकार का काम हैं समाज को जगाना और आप अपना काम बखूबी निभा रहे हैं। अभूत सुंदर और विचारणीय आलेख।
ReplyDeleteजी आभार, आपकी टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करगी।
Deleteबहुत ही प्रशंसनीय स्टोरी है आपकी। जिससे इस लाक डाउन की स्थिति में लोगों को काफी सीख मिलती है। शशि भैया जी की उम्दा लेखनी को बारंबार प्रणाम।👌👌🙏🙏
ReplyDeleteअनुराग दूबे, पत्रकार।
सटीक और सामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक चित्रण खींचा है आपने विसंगतियों में से सार्थक निकाल कर लाना ही सच्चे पत्रकार और लेखक का धर्म है।
ReplyDeleteबहुत सार्थक।
आपका आभार।
Deleteकिसी की संकट में सहायता करना भी बहुत नेक काम है शशि भाई. परोपकार मानव का सब से बड़ा धर्म है . बहुत सार्थक सृजन .
ReplyDeleteआपका अत्यंत आभार, प्रणाम।
Deleteआपको धन्यवाद कि आप ने स्थिति का सही वस्तुचित्रण किया. कई तमाशे हम सब भी देख ते रहते हैं. कुछ लोग इस संकट के समय में भी अपनी आदतों से बाज नहीं आते.आगे से सड़क की तरफ का शटर बंद कर पीछे गली की तरफ से पूरा कटरा खुला है. बस आपको लाकडाउन के नाम पर मंहगा सामान लेना होगा. मरता क्या ना करता? और यही कालाबाजारी जमा खोर समाज सेवी भी बने रहते हैं. राजनीतिक दलों में भी सम्मानित पदों पर आसीन रहते हैं.
ReplyDeleteजी आभार,उचित कहा.आपने।
Delete