ड्रिंकिंग डे
इस लॉकडाउन में जब धनी-निर्धन सभी आर्थिक रुप से पस्त हैं। रोज़ी- रोटी को लेकर परेशान हैं। ऐसी स्थिति में भी मैं निठल्ला बिना किसी चिन्ता-फ़िक्र के संदीप भैया के प्रतिष्ठान के सामने स्थित देशी- विदेशी मदिरा की दुकानों पर अँगूर की बेटी के प्रभाव और उसके रहस्योद्घाटन में उलझा हूँ।
मैंने देखा कि भोलेनाथ के प्रिय दिवस सोमवार को जैसे ही लॉकडाउन के तीसरे चरण के प्रथम दिन (4 मई) मदिरालयों का कपाट खुला लम्बी कतार में खड़े पियक्कड़ों में जो पहला ग्राहक था, वह प्रथम पूज्य गणेश बन गया। माला पहना कर उसका स्वागत शराब विक्रेता द्वारा किया गया। और फ़िर जो यहाँ अद्भुत दृश्य देखने को मिला, उसका वर्णन संभव नहीं है । कोई पैंट के दोनों ज़ेब सहित कमीज़ के अंदर और दोनों हाथों में बोतल थामे दिखा, तो कोई झोले में भरकर ले जा रहा था। किसी ने अपनी बाइक की डिग्गी को बोतलों से इस प्रकार सजा लिया, जैसे वह शराबी चित्रपट के महानायक की कार की डिग्गी हो। एक ऐसा व्यक्ति भी दिखा, जो मोटर साइकिल से अपनी दस वर्षीया बच्ची के साथ आया था। बच्ची के कंधे पर एक ख़ूबसूरत बैग था। मैंने देखा कि दारू की बोतलें उसके बैग में रखते देख जिज्ञासा वश मासूम लड़की ने सवाल किया था-" पापा ! यह क्या है? "
सम्भवतः उससे सोचा हो कि कोल्डड्रिंक है।
जिसके प्रतिउत्तर में उस व्यक्ति को यह कहते सुना- " चुप कर ! मम्मी को मत बताना, चल तुझे चाकलेट दिलवाता हूँ।"
हाँ, विदेशी मदिरा के पड़ोस में स्थित देशी शराब की दुकान पर, जहाँ निम्न वर्ग के ग्राहक आते हैं,पहले की तरह चहल-पहल नहीं थी।
इस वर्ग का ज़ेब जो खाली है। अतः जो भी आते दिखा, समझ लें कि वह अपने ही घरवालों के पेट पर डाका डाल कर , हौली पर आया है ।
सत्य यही है कि शासन से लेकर श्रमिक तक जिसके समक्ष नतमस्तक हैं,उसका नाम शराब है। देश और प्रदेश में भगवान राम को अपना आदर्श मानने वालों की सरकार के लिए भी इस संकटकाल में यह वारुणी ' धनदेवी' बनी हुई है। उसने एक बार पुनःसिद्ध कर दिया है कि सत्ता और समाज पर वर्चस्व उसका ही है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि इस लॉकडाउन में जहाँ देवालयों के कपाट बंद हैं, वहीं मदिरालयों पर रौनक़ क़ायम है।
अपने मीरजापुर जनपद में चार मई को मदिरालय खुलते ही लोग लगभग एक करोड़ का शराब गटक गये। पियक्कड़ों की एकजुटता के समक्ष सोशल डिस्टेंस का पालन करवाने वालों की ज़ुबान लॉक हो गयी । इस सोमरस के मद का ही प्रभाव है कि ज्ञानी पुरुषों की संवेदनाओं और नैतिकता की परिभाषा बदल गयी है। जिनके हाथों में शासन की शक्ति है और जो उनके अनुयायी हैं,वे शराब की दुकानों को इस वैश्विक महामारी में खोले जाने का यह कहकर समर्थन कर रहे हैं कि यदि सरकारी ख़ज़ाने में धन नहीं आएगा, तो देश की अर्थव्यवस्था डाँवाडोल हो जाएगी।
ख़ैर, शासन ने तो अपने राजस्व प्राप्ति का मार्ग निकाल लिया, किन्तु व्यापारी और जनता के लिए भी क्या मदिरा जैसी कोई जादुई छड़ी है , जिससे इस तालाबंदी में उन्हें भी अर्थ अर्जन का कोई स्त्रोत मिल जाए ?
मेरा तो मानना है कि चार मई जिसने सरकारी खजाने को भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है , इसे तो निश्चित ही " ड्रिंकिंग डे " का सम्मान मिलना चाहिए। किन्तु ऐसा करने से पूर्व गृहणियों से भी संवाद कर लेना चाहिए। वे हमारे देश के रहनुमाओं को बताएँगी कि लॉकडाउन के मध्य ज़ब वे घोर आर्थिक संकट का सामना कर रही थीं, इस दिन घर की लक्ष्मी का किस प्रकार अनादर हुआ है। घर में जो कुछ धन शेष था, उसमें से भी एक बड़ा हिस्सा ऐसे पुरुषों ने "अंगूरी" की भेंट चढ़ा दिया।
मसलन,जनधन खाते में आये पाँच सौ रूपये को ही लें। जिसे बैंक से निकालने के लिए ऐसी महिलाओं ने भगवान भास्कर के प्रचंड ताप को चुनौती देते हुये गृहस्थी का सारा कार्य त्याग कर लम्बी कतारें लगायी थीं। किन्तु चार मई को हुआ क्या ? इस छोटी सी धनराशि में से जो भी पैसा शेष था, उसपर उनके पियक्कड़ पतिदेव ने बलपूर्वक अपना अधिकार जमा लिया। श्रमिकों के बैंक खाते में सरकार ने जो एक हजार रूपया डाला था, यदि उसमें से कुछ शेष बचा था ,तो वह भी हौली की भेंट चढ़ गया। क्या लॉकडाउन में खुली शराब की दुकानों से पीड़ित ऐसी गृहलक्ष्मियों के प्रति सरकार की कोई संवेदना नहीं है ? भाकपा के वरिष्ठ नेता मो० सलीम जैसे कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि घर-परिवार चलाने के लिए उन्होंने जिन ग़रीबोंं का आर्थिक सहयोग किया था, उसमें ऐसे भी निकले जो हौली पर दिखें।
मज़दूरों और महिलाओं को शासन से मिला हजार-पाँच सौ रूपया भी यदि नशे की भेंट चढ़ जाए, तो सरकार की यह उदारता फ़िर किस काम की ? सत्य ही कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति हर कार्य को निज स्वार्थ की तराजू पर तौलता है। जिसके लिए समाज और शासन दोनों ही बराबरी का दोषी है।
फ़िर भी कथनी और करनी में एकरूपता की परख तभी होती है ,जब चुनौती सामने हो। हिम्मती तो वे लोग ही कहे जाएँगे,जो मझधार में पड़े हो, फिर भी तूफ़ानों को झेलने का हौसला रखते हो।अन्यथा मानवीय कल्याण की बड़ी-बड़ी लच्छेदार बातें करना किसे नहीं पसंद है। इस युग में सबसे बड़ा परोपकारी आदमी पुरोहित और संत नहीं, वरन् राजनीतिज्ञ होता है, क्यों कि शास्त्रों के जानकार तो हमें स्वर्ग भेजने का आश्वासन मात्र देते हैं, किन्तु राजनेता धरती पर ही स्वर्ग उतार लाने का दावा करता है।
आम चुनाव में ग़रीबी हटाओ, शाइनिंग इंडिया और अच्छे दिन जैसे जुमलों के माध्यम से राजनीतिज्ञ धरती पर स्वर्ग के आगमन का आश्वासन ही तो देता है ? लक्ष-लक्ष मानव मन की आकाँक्षाओं के प्रतीक अब ये राजनेता ही हैं, इन्हीं में से किसी एक को योग्य समझ कर जनता उसके हाथों में अपना नेतृत्व सौंपती है। अब चाहे विपत्ति में वे मदिरा पिलाए अथवा दूध ?
अपने जनपद में 4 से 9 मई के मध्य लगभग दो हजार पेटी अंग्रेजी शराब मूल्य 1 करोड़, चार हजार पाँच सौ पेटी देशी शराब ,मूल्य 1करोड़ 30लाख 50 हजार रूपया और ग्यारह सौ पेटी बियर मूल्य 29 लाख 70 हजार बिकी है।अथार्त अनुमानित मूल्य 2 करोड़ 60 लाख 20 हजार की शराब छहः दिनों में बिकी है। जिसमें से लगभग एक करोड़ की मदिरा 4 मई को ही बिक गयी थी और शेष 1.60 करोड़ की पाँच दिनों में ,अतः इस आंकड़े से स्पष्ट है कि जब पूरा विश्व कोराना जैसी महामारी से जूझ रहा था, उसी लॉकडाउन के मध्य 4 मई 2020 को पियक्कड़ों ने नया इतिहास रच दिया। ऐसे में इस दिवस को " ड्रिंकिंग डे " के नाम से पुकारा जाए, तो इसमें बुरा क्या है ?
लेकिन, हौली की ओर बढ़ते कदम भी हौले-हौले थमने लगे हैं, क्यों कि ज़ेब फ़िर से खाली हो गया है। और ऐसे में एक बड़ा ख़तरा यह भी है कि नशे की सस्ती और हानिकारक सामग्रियों का प्रयोग किया जाएगा।
- व्याकुल पथिक
इस लॉकडाउन में जब धनी-निर्धन सभी आर्थिक रुप से पस्त हैं। रोज़ी- रोटी को लेकर परेशान हैं। ऐसी स्थिति में भी मैं निठल्ला बिना किसी चिन्ता-फ़िक्र के संदीप भैया के प्रतिष्ठान के सामने स्थित देशी- विदेशी मदिरा की दुकानों पर अँगूर की बेटी के प्रभाव और उसके रहस्योद्घाटन में उलझा हूँ।
मैंने देखा कि भोलेनाथ के प्रिय दिवस सोमवार को जैसे ही लॉकडाउन के तीसरे चरण के प्रथम दिन (4 मई) मदिरालयों का कपाट खुला लम्बी कतार में खड़े पियक्कड़ों में जो पहला ग्राहक था, वह प्रथम पूज्य गणेश बन गया। माला पहना कर उसका स्वागत शराब विक्रेता द्वारा किया गया। और फ़िर जो यहाँ अद्भुत दृश्य देखने को मिला, उसका वर्णन संभव नहीं है । कोई पैंट के दोनों ज़ेब सहित कमीज़ के अंदर और दोनों हाथों में बोतल थामे दिखा, तो कोई झोले में भरकर ले जा रहा था। किसी ने अपनी बाइक की डिग्गी को बोतलों से इस प्रकार सजा लिया, जैसे वह शराबी चित्रपट के महानायक की कार की डिग्गी हो। एक ऐसा व्यक्ति भी दिखा, जो मोटर साइकिल से अपनी दस वर्षीया बच्ची के साथ आया था। बच्ची के कंधे पर एक ख़ूबसूरत बैग था। मैंने देखा कि दारू की बोतलें उसके बैग में रखते देख जिज्ञासा वश मासूम लड़की ने सवाल किया था-" पापा ! यह क्या है? "
सम्भवतः उससे सोचा हो कि कोल्डड्रिंक है।
जिसके प्रतिउत्तर में उस व्यक्ति को यह कहते सुना- " चुप कर ! मम्मी को मत बताना, चल तुझे चाकलेट दिलवाता हूँ।"
हाँ, विदेशी मदिरा के पड़ोस में स्थित देशी शराब की दुकान पर, जहाँ निम्न वर्ग के ग्राहक आते हैं,पहले की तरह चहल-पहल नहीं थी।
इस वर्ग का ज़ेब जो खाली है। अतः जो भी आते दिखा, समझ लें कि वह अपने ही घरवालों के पेट पर डाका डाल कर , हौली पर आया है ।
सत्य यही है कि शासन से लेकर श्रमिक तक जिसके समक्ष नतमस्तक हैं,उसका नाम शराब है। देश और प्रदेश में भगवान राम को अपना आदर्श मानने वालों की सरकार के लिए भी इस संकटकाल में यह वारुणी ' धनदेवी' बनी हुई है। उसने एक बार पुनःसिद्ध कर दिया है कि सत्ता और समाज पर वर्चस्व उसका ही है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि इस लॉकडाउन में जहाँ देवालयों के कपाट बंद हैं, वहीं मदिरालयों पर रौनक़ क़ायम है।
अपने मीरजापुर जनपद में चार मई को मदिरालय खुलते ही लोग लगभग एक करोड़ का शराब गटक गये। पियक्कड़ों की एकजुटता के समक्ष सोशल डिस्टेंस का पालन करवाने वालों की ज़ुबान लॉक हो गयी । इस सोमरस के मद का ही प्रभाव है कि ज्ञानी पुरुषों की संवेदनाओं और नैतिकता की परिभाषा बदल गयी है। जिनके हाथों में शासन की शक्ति है और जो उनके अनुयायी हैं,वे शराब की दुकानों को इस वैश्विक महामारी में खोले जाने का यह कहकर समर्थन कर रहे हैं कि यदि सरकारी ख़ज़ाने में धन नहीं आएगा, तो देश की अर्थव्यवस्था डाँवाडोल हो जाएगी।
ख़ैर, शासन ने तो अपने राजस्व प्राप्ति का मार्ग निकाल लिया, किन्तु व्यापारी और जनता के लिए भी क्या मदिरा जैसी कोई जादुई छड़ी है , जिससे इस तालाबंदी में उन्हें भी अर्थ अर्जन का कोई स्त्रोत मिल जाए ?
मेरा तो मानना है कि चार मई जिसने सरकारी खजाने को भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है , इसे तो निश्चित ही " ड्रिंकिंग डे " का सम्मान मिलना चाहिए। किन्तु ऐसा करने से पूर्व गृहणियों से भी संवाद कर लेना चाहिए। वे हमारे देश के रहनुमाओं को बताएँगी कि लॉकडाउन के मध्य ज़ब वे घोर आर्थिक संकट का सामना कर रही थीं, इस दिन घर की लक्ष्मी का किस प्रकार अनादर हुआ है। घर में जो कुछ धन शेष था, उसमें से भी एक बड़ा हिस्सा ऐसे पुरुषों ने "अंगूरी" की भेंट चढ़ा दिया।
मसलन,जनधन खाते में आये पाँच सौ रूपये को ही लें। जिसे बैंक से निकालने के लिए ऐसी महिलाओं ने भगवान भास्कर के प्रचंड ताप को चुनौती देते हुये गृहस्थी का सारा कार्य त्याग कर लम्बी कतारें लगायी थीं। किन्तु चार मई को हुआ क्या ? इस छोटी सी धनराशि में से जो भी पैसा शेष था, उसपर उनके पियक्कड़ पतिदेव ने बलपूर्वक अपना अधिकार जमा लिया। श्रमिकों के बैंक खाते में सरकार ने जो एक हजार रूपया डाला था, यदि उसमें से कुछ शेष बचा था ,तो वह भी हौली की भेंट चढ़ गया। क्या लॉकडाउन में खुली शराब की दुकानों से पीड़ित ऐसी गृहलक्ष्मियों के प्रति सरकार की कोई संवेदना नहीं है ? भाकपा के वरिष्ठ नेता मो० सलीम जैसे कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि घर-परिवार चलाने के लिए उन्होंने जिन ग़रीबोंं का आर्थिक सहयोग किया था, उसमें ऐसे भी निकले जो हौली पर दिखें।
मज़दूरों और महिलाओं को शासन से मिला हजार-पाँच सौ रूपया भी यदि नशे की भेंट चढ़ जाए, तो सरकार की यह उदारता फ़िर किस काम की ? सत्य ही कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति हर कार्य को निज स्वार्थ की तराजू पर तौलता है। जिसके लिए समाज और शासन दोनों ही बराबरी का दोषी है।
फ़िर भी कथनी और करनी में एकरूपता की परख तभी होती है ,जब चुनौती सामने हो। हिम्मती तो वे लोग ही कहे जाएँगे,जो मझधार में पड़े हो, फिर भी तूफ़ानों को झेलने का हौसला रखते हो।अन्यथा मानवीय कल्याण की बड़ी-बड़ी लच्छेदार बातें करना किसे नहीं पसंद है। इस युग में सबसे बड़ा परोपकारी आदमी पुरोहित और संत नहीं, वरन् राजनीतिज्ञ होता है, क्यों कि शास्त्रों के जानकार तो हमें स्वर्ग भेजने का आश्वासन मात्र देते हैं, किन्तु राजनेता धरती पर ही स्वर्ग उतार लाने का दावा करता है।
आम चुनाव में ग़रीबी हटाओ, शाइनिंग इंडिया और अच्छे दिन जैसे जुमलों के माध्यम से राजनीतिज्ञ धरती पर स्वर्ग के आगमन का आश्वासन ही तो देता है ? लक्ष-लक्ष मानव मन की आकाँक्षाओं के प्रतीक अब ये राजनेता ही हैं, इन्हीं में से किसी एक को योग्य समझ कर जनता उसके हाथों में अपना नेतृत्व सौंपती है। अब चाहे विपत्ति में वे मदिरा पिलाए अथवा दूध ?
अपने जनपद में 4 से 9 मई के मध्य लगभग दो हजार पेटी अंग्रेजी शराब मूल्य 1 करोड़, चार हजार पाँच सौ पेटी देशी शराब ,मूल्य 1करोड़ 30लाख 50 हजार रूपया और ग्यारह सौ पेटी बियर मूल्य 29 लाख 70 हजार बिकी है।अथार्त अनुमानित मूल्य 2 करोड़ 60 लाख 20 हजार की शराब छहः दिनों में बिकी है। जिसमें से लगभग एक करोड़ की मदिरा 4 मई को ही बिक गयी थी और शेष 1.60 करोड़ की पाँच दिनों में ,अतः इस आंकड़े से स्पष्ट है कि जब पूरा विश्व कोराना जैसी महामारी से जूझ रहा था, उसी लॉकडाउन के मध्य 4 मई 2020 को पियक्कड़ों ने नया इतिहास रच दिया। ऐसे में इस दिवस को " ड्रिंकिंग डे " के नाम से पुकारा जाए, तो इसमें बुरा क्या है ?
लेकिन, हौली की ओर बढ़ते कदम भी हौले-हौले थमने लगे हैं, क्यों कि ज़ेब फ़िर से खाली हो गया है। और ऐसे में एक बड़ा ख़तरा यह भी है कि नशे की सस्ती और हानिकारक सामग्रियों का प्रयोग किया जाएगा।
- व्याकुल पथिक
शशि जी आपके "ड्रिंकिंग डे " वाले सुझाव पर नीति-निर्माताओं को जरुर ध्यान देना चाहिए। इस संक्रमण काल में भी जो जोश दारुबाजों में देखने को मिला काबिलेतारीफ है। उससे भी ज्यादा जोश सरकारों में शराब को बेचने का दिख रहा है और वो भी ऐसी सरकार जो रामराज्य लाने की बात करती है। वर्तमान स्थिति को देख कर तो यही लगता है कि हमारे देश के लोग भूखे कम प्यासे ज्यादा है।
ReplyDeleteजी प्रवीण जी,
ReplyDeleteआदर्श सिर्फ़ मुखौटा होता है, यथार्थ नहीं ..।
शासन-सत्ता में बैठे लोग हमें पुनः यह पाठ पढ़ा रहे हैं।
44दिन शराब न पीकर जनता ने बता दिया कि वो बिना शराब के जिंदा रह सकती है किन्तु ठेके खोल कर सरकार ने जता दिया कि बिना शराब बेचे वो मर जायेगी !
ReplyDelete-- श्री जगदीश विश्वकर्मा, साहित्यकार
****
कठिनाई के इस दौर में वाराणसी प्रशासन ने राशन वालो को 2बजे तक, और शराब की दुकानों को 5बजे तक खोलने की अनुमति प्रदान की है, जो ये दर्शाता है कि भोजन से ज्यादा जरूरी शराब हो गयी है।
-- श्री सचिन अवस्थी
****
Sarkar ki Nakami aur Lakho jindgi sy khilwad karna thaa too Lock Down kya kya fayeda....revenue ky chakkar may anmol jivan sy khilwad....dukhad hi...
- श्री इंद्रदेव यादव
बिल्कुल विचारिणीय विषय है। 44दिन तो जीवित है। आगे बिना इसके जीवित भी रह सकते हैं। शराब गुटका इत्यादि का बन्द होना गरीब जनता को संजीवनी देने के बराबर है। काम से कम उनका परिवार उजड़ने से बच जाएगा और गरीब मरने से। बड़े लोग जो इसके बिना नही रह सकते उसपर भी नए तरीके से सोचना होगा। जिसका असर गरीब और मध्यम वर्ग पर ना पड़ सके। हम पूर्ण बंदी के समर्थक है।
ReplyDelete--श्री चंद्रांशु गोयल, अध्यक्ष होटल एसोसिएशन, मिर्ज़ापुर।
जी शशि भाई साहब, मधुशाला खुलवाने के लिये, जिस प्रकार जनता उत्साहित थी उससे तनिक भी कम सरकार नही थी।एक सेर तो दूजा सवा सेर का हिसाब जैसा प्रतीत जान पड़ता था।सरकार ने तो अपना टारगेट भी नाप लिया था।ये बात बिल्कुल सत्य है कि इतिहास में इसकी अब ड्रिंकिंग डे के नाम से पहचान होनी चाहिए।
ReplyDeleteअब ड्रिंकिंग डे ही कहना उचित है, प्रतिक्रिया के लिए आभार मनीष जी।
Deleteशराब भी ध्यान भटकाने के लिये जरूरी है। हिप्पोक्रेसी। इस किनारे नदी के शराब बंदी उस किनारे शराबखाने बीच मझधार में शराबी और साथ में चलते उसके मयखाने। उधर रहो और इधर की कहो इधर रहो और उधर की कहो। बिहार में बंद पीने नैपाल चले जाओ या झारखंड या बंगाल। गुजरात बंद राजस्थान और एम पी है। राजस्व का बहाना अलग। कुछ भी है मुद्दा गरम है भूनी जा सकती है मूँगफलियाँ। अब शराबी कैसे समझे शराब का ना होना?
ReplyDeleteजी उचित कहा कि लोहा गरम है, मार दो हथौड़ा।
Deleteपरंतु सत्य यह भी है कि महिलाओं का वह पाँच सौ रूपया भी पति परमेश्वर छीन कर शराब के हवाले करते दिखेंं।
वैसे , चोरी से तो शराब क्या हेरोइन भी बिकता है।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-05-2020) को "अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3700) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी गुरुजी आभार।
Deleteराजनेताओं से उम्मीद करना ही व्यर्थ है, क्योंकि धर्म और राजनीति की कोई नीति ही नहीं है। यह सिर्फ सिर्फ लड़ाने का कार्य करते हैं। मौजूदा दौर को ही लिया जा सकता है जहां लोगों को रोटी और रोजगार की आवश्यकता है वहां आज राशन इत्यादि की दुकानों को बंद कर दारू की दुकानें खुलने की छूट दे दी गई, ऐसे में इनसे क्या उम्मीद की जा सकती है।
ReplyDeleteआपका यह विचार मौजूदा दौर पर सटीक बैठता है।
संतोष देव गिरि, पत्रकार
बहुत अच्छा लिखा है बड़े भाई आपने समाज का यही हाल है, मदिरालय खुलने के बाद जो गरीबों के पास पैसे बचे थे, वो उन्होंने दारू में उड़ा दिए, अपने परिवार की चिंता भी नही की, लत ही ऐसी है, वही हाल कुछ मध्यम वर्गीय परिवार का भी रहा , 🙏
ReplyDelete--राजीव शुक्ला।
शशि जी,आपके लेख ने जहाँ एक ओर सरकार की अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुँचाने की थोथी,आधारहीन परिकल्पना की पोल खोल दी,वहीं समाज को भी आईना दिखाने का काम किया है।जहाँ एक तरफ छोटे,मंझोले उद्योग तबाही के कगार पर हैं।आने वाला समय भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत भारी पड़ने वाला है, ऐसे में सरकार के सामने चुनौतियाँ तो हैं किन्तु उसे राजस्व प्राप्ति के अन्य संसाधनों का प्रयोग करना चाहिए था।आज की सबसे बड़ी चुनौती है घर की रसोई का व्यवस्थापन।सरकार को शराब की जगह अन्य मदों से राजस्व प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए था।
ReplyDelete-प्रदीप मिश्र,प्रबन्धक-रेनबो पब्लिक स्कूल,विन्ध्याचल।
Jivan ka ek satya man ka bhatkav-nahin to vah jindgi se bhi do kadam aage -panna bundela
ReplyDelete- श्री पन्नालाल बुंदेला, वरिष्ठ भाजपा नेता
*****
शशि भाई शराब बिक्री के आंकड़ों में खेल हुआ है । चौआलिस दिन के लोक डाउन में खूब बिक्री हुई और उसको रिकॉर्ड में दिखने के लिये कम दिनो में रिकॉर्ड बिक्री दिखाई गई। हमे अच्छा लगा पंजाब सरकार द्वारा होम डिलिवरी का फैसला । इससे कोरोना को फैलने से रोक सकते है , लाईन लगाने में लगी पुलिस का दूसरा उपयोग होता । यथार्थ यही है शराब बंदी बेईमानी है यह उच्च माध्यम वर्ग एवं उच्च वर्ग की रोज की आवश्यकता है, किसी भी कीमत पर ।
-आनंद सिंह पटेल, अपना दल एस
ReplyDeleteबहुत ही प्रशंसनीय लेख है..... 👌👌🙏🏻
- नम्रता श्रीवास्तव, अध्यापिका।
अंजाम से बेख़ौफ़ हम जाम पिया करते हैं
ReplyDeleteलोग नाहक ही शराब को बदनाम किया करते हैं
शराबियों का तो यही कहना है। शराब सदियों से पी जा रही है। जब तक यह पृथ्वी है, लोग पीते रहेंगे। जो आदत से मजबूर हैं, इसे प्रथम और अंतिम आवश्यकता बताएंगे। और जो शराब दूर रहते हैं, इस पर पाबंदियों की बात करेंगे। कभी-कभी न पीने वाले भी पी लेते हैं। यह भी देखा गया है कि सालों पीने के बाद लोगों ने शराब को छोड़ दिया है। समाज में हर तरह के शौक़ीन लोग रहते हैं। जहाँ शराब बंदी है, वहाँ पर शराब की तस्करी की जाती है। एक ग़ैरक़ानूनी तंत्र खड़ा हो जाता है। शराब के तस्कर सरकार को चूना लगाते हुए मालामाल होते रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान पीने वालों ने दुगने-तिगने दाम पर शराब की बोतलें ख़रीदीं। आदर्श समाज कभी नहीं होता है। इसके लिए सतत प्रयत्न करने पड़ते हैं। शराब पीने या न पीने से किसी समाज की पहचान बनती-बिगड़ती नहीं। वैसे भी एक बड़े समाज में अपनी ज़िम्मेदारियों को छोड़कर पीने वालों की संख्या बहुत कम होती है। उस समाज के अंदर राज्य और परिवार के प्रति किस तरह का चिंतन और कर्म है, यह महत्त्वपूर्ण है। लॉकडाउन के दौरान सरकार के राजस्व में भारी कमी आई है। समाज के सभी वर्गों तक सहायता भी पहुँचानी है। सरकार भी चलानी है और विकास कार्य भी करने हैं। तत्काल राजस्व शराब की बिक्री से ही आ सकता है, इसलिए सरकार ने ऐसा किया। शराब लॉबी और इसके शौक़ीनों द्वारा लंबे अरसे से माँग भी की जा रही थी। रही बात शराब की दुकानों पर महिलाओं की लाइन की, तो मैंने इसी शहर में तमाम महिलाओं को शराब का सेवन करते हुए देखा है। ज़्यादातर लोगों ने एक चेहरे पर दूसरा चेहरा लगा रखा है। पहली बार ऐसा हुआ कि शराब की लाइनों में लगे हुए लोगों से बात की गईं। उनकी तस्वीरें ली गईं और उनके बारे में ख़्याल रखे गए।
समाज वैसे भी विरोधाभासों से भरा हुआ है। आपदा काल में सारे उद्योग-धंधे बंद हो गए हैं। पैदल चलते हुए लाचार लोग शोषण और दुर्घटना के भी शिकार हो रहे हैं। राहत के लिए सरकारें हरसंभव कोशिश कर रही हैं। घरों में बैठे हुए लोग एक समय के पश्चात् डिप्रेशन में जा रहे हैं। शायद इस लॉकडाउन के बाद दुनियाँ बदल जाएगी। कुछ लोग पीना छोड़ देंगे तो कुछ नए पीने वाले पैदा हो जाएंगे। हमें बड़ी सहानुभूति के साथ इन सभी का ख़्याल रखना होगा। कुछ बेहतर होने की उम्मीद हमेशा रहती है। ड्रिंकिंग डे का आईडिया बुरा नहीं है। हमेशा की तरह बहुत बढ़िया लिखा है शशि भाई।🌹
सही कहा आपने
Deleteजहाँ शराब पर पाबंदी है वहां भी लोग उसे पीते तो है ही, जुगड़तंत्र ज़िंदाबाद है। सामाजिक व्यवस्था को ध्यान में रख कर
फ़िर भी प्रतिबंध लगाए जाते हैं।
सदैव की तरह आपकी प्रतिक्रिया भी स्वयं में एक नवीन लेख ही हुआ करती है। आभार अनिल भैया।
🙏👌
ReplyDeleteशशि भैया का कोई जवाब नहीं।
- कृष्ण सिंह , पत्रकार।
***
आप की लेखनी हर बार नया ले कर आती है, बहुत अच्छा सच्चाई को उजागर कर रहे हैं।
डा० जे० के० जायसवाल।
***
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति, शानदार लेखन👏
- मनोज द्विवेदी, पत्रकार दैनिक जागरण
*****
ड्रिंकिंग डे का जो चित्रण भाई साहब आपने किया वह सरकार एव समाज को आईना दिखाने वाला है ।
अरविन्द कुमार त्रिपाठी, पत्रकार दैनिक भाष्कर
****
*देश में जहां कई हफ्तों से लॉकडाउन है। इस समय लोगों के पास घर चलाने तक का पैसा नही है, ऐसे में शराब की दुकान खुलने से पति अपने घर में लड़ झगड़कर अपनी पत्नी से पैसा लेकर शराब पियेगा। शराब की दुकान खुलने से न सिर्फ घरेलू हिंसा हो बढ़ावा मिलेगा, उसके साथ ही कोरोना के फैलने का डर है, बहरहाल सरकार लोगों के जेब में जो कुछ भी पैसा बचा हुआ है उसे भी लेना चाहिये...! अंगूर की बेटी के दीवानों पर आपकी लेख अद्भुत है भैया...😊😊*
-- मुकेश पांडेय, पत्रकार जनसंदेश
Ji Bhai sb, logon ne jis josh - kharosh ke saath sharab ke liye line lagai thi aur khareedaari ki thi, us se aisa prateet ho raha tha jaise sharab jeevan ke liye koi 'Essential Commodity' ho.Atah aap ka drinking - day ka vichar galat nahin hai.🙏🏻🌹
ReplyDelete- एक वरिष्ठ अधिकारी की प्रतिक्रिया
ReplyDeleteआपका मदिरा के ऊपर लेख✍ जबरदस्त रहा🙏 आप इसी तरह निरंतर समाज और देश के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी कलम चलाते रहें👍🏻👍🏻👍🏻👌✍ आपकी इस लेखनी के लिए रतन कुमार की तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं🙏💐✍👇👇👇👇👇👇
- रतन कुमार जादूगर, विंध्याचल।
***
बहुत बढ़िया प्रस्तुति🙏
-आनंद कुमार, पत्रकार
****
क्या लिखते हैं भैया...
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
- पंकज मालवीय , पत्रकार।
ReplyDeleteशशि भाई आपकी लेखनी का कोई जवाब नहीं है , शब्द जो भी होते है सच को आईना दिखाते हुए दिल को छू लेते है।
- मेराज खान, पत्रकार
******
आत्म मंथन 👌🙏
- आशीष सोनी, पत्रकार
***
Nice story bhaiya ji🙏🙏
--संतोष मिश्र, पत्रकार
सरकार की शराब खाना खोलने जैसी अदूरदर्शी नीति का दुष्परिणाम देश को बुरी तरह से भुभुगतान पड़ेगा। साथ ही सरकार ने उन नागरिकों के विश्वास को तोड़ दिया जो लगभग 40 दिनों तक पूरी ईमानदारी से लाकडाउन का पालन किए
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली लेखन।
ReplyDeleteआभार मीना दी।
Deleteविचारणीय लेख
ReplyDeleteआपका आभार
Deleteसार्थक लेख कहीं व्यंग्य कहीं गहन तंज लिए बहुत सुंदर लेख भाई ।
ReplyDeleteआभार दी।
Deleteशशि भाई, आपका ये बहुत ही शानदार लेख पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है। लेख पर पाठकों की जबरदस्त प्रतिक्रियाएँ लेख पर समानांतर विमर्श में चार चाँद लगा रही है। लोकबन्दी के बाद समर्थ और असमर्थ लोगों का यूँ शराब के लिए लालायित हो लामबंद होना बहुत दुखद है। बडी रोचकता से आपने विषय पर चुटकी के साथ समस्त विषय को विस्तार दिया है। सरकार को अभी परिवारों के हित के बारे में कुछ सोचना था। अभी जिंदा थे बिना पिये। कुछ दिन और निकल जाते तो कितना बेहतर होता।
ReplyDeleteआभार रेणु दी , आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करती है.
Deleteप्रणाम।
दारू ने जग जीत ली,छक कर पिये जनाब।
ReplyDeleteचार मई इतिहास
में,ड्रिंकिंग दिवस खिताब।।
"""""""""'"राजेन्द्र मिश्र"""""""
14.5.2020""
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जी प्रणाम, आभार।
Deleteदारू ने जग जीत ली,छक कर पिये जनाब।
ReplyDeleteचार मई इतिहास
में,ड्रिंकिंग दिवस खिताब।।
"""""""""'"राजेन्द्र मिश्र"""""""
14.5.2020""
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