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Monday 29 June 2020

अंजाम

       मन के भाव
      **********
नक़ाब जब हटता है
और सच सामने आता है

मुखौटे में शैतान देख

रुदन तब मुस्कुराता है

चेहरा जब बदलता है

और शूल बन  चुभता है

दिल का ग़जब हाल देख

बावला वैरागी कहलाता है

उम्मीद जब टूटती  है

चिता अरमानों की सजती है

मरघट पर  मेला देख

भटका दृष्टा बन जाता है

संवेदना तब सिसकती है

जब घात बड़ों की सहती है

पढ़े -लिखो का खेल देख

हंस  बगुला बन जाता है

भावना जब धधकती है

तब काँच  बन पिघलती है

प्रतिशोध की ज्वाला देख

मानव  दानव   बन जाता है

आह तब निकलती है

जब छल मित्र का सहती है

धोखे का अंजाम देख

पारस  लौह बन जाता है !! 

   -व्याकुल पथिक


25 comments:

  1. जीवन केयथार्थ को दर्शाती सुन्दर काव्य रचना !

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    1. आभार प्रवीण जी , सत्य कहा आपने ।
      रंग बदलती दुनिया में यही यथार्थ है।
      आभार।

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  2. संसार विडंबनाओं का केंद्र है। यहाँ हर उस व्यक्ति का दिल टूट जाता है तो दिल का साफ़ होता है। यहाँ स्पष्टवादी को उसकी स्पष्टवादिता के लिए सज़ा मिलती है। कुछ लोग कहते हैं कि संसार अच्छों के लिए अच्छा और बुरों के लिए बुरा है, जबकि सच यह है कि संसार अच्छों के लिए बुरी जगह और बुरे लोगों के लिए अच्छी जगह है। इस संसार को श्रेष्ठतम बताने वाले दार्शनिक लाइबनित्ज और निकृष्टतम बताने वाले शोपेनहावर, दोनों का नज़रिया सही है। दुःख दूर नहीं हो पाता और सुकून मिल नहीं पाता। सुबह से शाम होती रहती है। जीना ही पड़ता है कुछ ऐसी ही अभिव्यक्तियों के साथ। शशि भाई, आपने जो कुछ भी लिखा है उसमें यथार्थ बिल्कुल स्पष्ट है।

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    1. आप ने बिल्कुल सच कहा ,यह संसार बड़ा विचित्र है, इसको तो वही समझ सकता है ,जो कबीर के साथ खड़ा हो। यहाँ सब-कुछ विपरीत होता है, इसलिये जो अच्छे है,वे धोखा खाते हैं और जो बुरे हैं वे मौज़ करते हैं।
      यदि मार्ग में हम ठग गये , तो भी हमें संतोष कर लेना चाहिए, जैसा कि कबीर ने कहा है।
      परंतु इस दुनिया का सच जानते रहना चाहिए, जिसे मैंने शब्द देने का प्रयास किया है।
      विस्तार से प्रतिक्रिया के लिए आभार अनिल भैया🙏

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  3. जो दिल का साफ़ होता है* जो की जगह तो हो गया है।

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    1. आह तब निकलती है
      जब छल मित्र का सहती है
      बहुत सही तथ्य का पर्दाफ़ाश। और आजकल तो मानों 'आह!' की भी छल से दोस्ती हो गयी है। वह भी मतलब देखकर निकलती है। बहुत सुंदर रचना।

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  4. जी आभार भाई साहब, बिल्कुल सही कहा आपने कि अब तो आह ! की भी छल से मित्रता हो गयी है।

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  5. आह तब निकलती है
    जब छल मित्र का सहती है
    धोखे का अंजाम देख
    पारस लौह बन जाता है !!
    बहुत ही भावपूर्ण शब्दों में आज के लोगों की असलियत बयान की है शशि भैया |

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    1. जी रेणु दी
      आपका स्नेहाशीष इसी प्रकार मिलता रहे।

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 30 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी अत्यंत आभार भाई साहब।

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  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 30 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. धोखे का अंजाम देख
    पारस लौह बन जाता है
    बहुत खूब ,सादर नमन आपको

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  9. यथार्थ को दर्शाती दर्पण सी मन के भाव । बेहतरीन शशी भैया सादर प्रणाम

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  10. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-07-2020) को  "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे"    (चर्चा अंक-3749)   पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  11. सदैव की भांति बहुत ही भावपूर्ण सृजन शशि भाई ।

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  12. संवेदना तब सिसकती है
    जब घात बड़ों की सहती है
    वाह बेहतरीन रचना 👌👌👌👌

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  13. जीवन सार छुपा है आप के शब्दों में

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yes