मन के भाव
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नक़ाब जब हटता है
और सच सामने आता है
मुखौटे में शैतान देख
रुदन तब मुस्कुराता है
चेहरा जब बदलता है
और शूल बन चुभता है
दिल का ग़जब हाल देख
बावला वैरागी कहलाता है
उम्मीद जब टूटती है
चिता अरमानों की सजती है
मरघट पर मेला देख
भटका दृष्टा बन जाता है
संवेदना तब सिसकती है
जब घात बड़ों की सहती है
पढ़े -लिखो का खेल देख
हंस बगुला बन जाता है
भावना जब धधकती है
तब काँच बन पिघलती है
प्रतिशोध की ज्वाला देख
मानव दानव बन जाता है
आह तब निकलती है
जब छल मित्र का सहती है
धोखे का अंजाम देख
पारस लौह बन जाता है !!
-व्याकुल पथिक
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नक़ाब जब हटता है
और सच सामने आता है
मुखौटे में शैतान देख
रुदन तब मुस्कुराता है
चेहरा जब बदलता है
और शूल बन चुभता है
दिल का ग़जब हाल देख
बावला वैरागी कहलाता है
उम्मीद जब टूटती है
चिता अरमानों की सजती है
मरघट पर मेला देख
भटका दृष्टा बन जाता है
संवेदना तब सिसकती है
जब घात बड़ों की सहती है
पढ़े -लिखो का खेल देख
हंस बगुला बन जाता है
भावना जब धधकती है
तब काँच बन पिघलती है
प्रतिशोध की ज्वाला देख
मानव दानव बन जाता है
आह तब निकलती है
जब छल मित्र का सहती है
धोखे का अंजाम देख
पारस लौह बन जाता है !!
-व्याकुल पथिक
उम्दा अशआर।
ReplyDeleteजीवन केयथार्थ को दर्शाती सुन्दर काव्य रचना !
ReplyDeleteआभार प्रवीण जी , सत्य कहा आपने ।
Deleteरंग बदलती दुनिया में यही यथार्थ है।
आभार।
अप्रतिम सृजन।
ReplyDeleteजी आभार ,प्रणाम।
Deleteसंसार विडंबनाओं का केंद्र है। यहाँ हर उस व्यक्ति का दिल टूट जाता है तो दिल का साफ़ होता है। यहाँ स्पष्टवादी को उसकी स्पष्टवादिता के लिए सज़ा मिलती है। कुछ लोग कहते हैं कि संसार अच्छों के लिए अच्छा और बुरों के लिए बुरा है, जबकि सच यह है कि संसार अच्छों के लिए बुरी जगह और बुरे लोगों के लिए अच्छी जगह है। इस संसार को श्रेष्ठतम बताने वाले दार्शनिक लाइबनित्ज और निकृष्टतम बताने वाले शोपेनहावर, दोनों का नज़रिया सही है। दुःख दूर नहीं हो पाता और सुकून मिल नहीं पाता। सुबह से शाम होती रहती है। जीना ही पड़ता है कुछ ऐसी ही अभिव्यक्तियों के साथ। शशि भाई, आपने जो कुछ भी लिखा है उसमें यथार्थ बिल्कुल स्पष्ट है।
ReplyDeleteआप ने बिल्कुल सच कहा ,यह संसार बड़ा विचित्र है, इसको तो वही समझ सकता है ,जो कबीर के साथ खड़ा हो। यहाँ सब-कुछ विपरीत होता है, इसलिये जो अच्छे है,वे धोखा खाते हैं और जो बुरे हैं वे मौज़ करते हैं।
Deleteयदि मार्ग में हम ठग गये , तो भी हमें संतोष कर लेना चाहिए, जैसा कि कबीर ने कहा है।
परंतु इस दुनिया का सच जानते रहना चाहिए, जिसे मैंने शब्द देने का प्रयास किया है।
विस्तार से प्रतिक्रिया के लिए आभार अनिल भैया🙏
जो दिल का साफ़ होता है* जो की जगह तो हो गया है।
ReplyDeleteआह तब निकलती है
Deleteजब छल मित्र का सहती है
बहुत सही तथ्य का पर्दाफ़ाश। और आजकल तो मानों 'आह!' की भी छल से दोस्ती हो गयी है। वह भी मतलब देखकर निकलती है। बहुत सुंदर रचना।
जी आभार भाई साहब, बिल्कुल सही कहा आपने कि अब तो आह ! की भी छल से मित्रता हो गयी है।
ReplyDeleteआह तब निकलती है
ReplyDeleteजब छल मित्र का सहती है
धोखे का अंजाम देख
पारस लौह बन जाता है !!
बहुत ही भावपूर्ण शब्दों में आज के लोगों की असलियत बयान की है शशि भैया |
जी रेणु दी
Deleteआपका स्नेहाशीष इसी प्रकार मिलता रहे।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 30 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी अत्यंत आभार भाई साहब।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 30 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधोखे का अंजाम देख
ReplyDeleteपारस लौह बन जाता है
बहुत खूब ,सादर नमन आपको
जी आभार।
Deleteयथार्थ को दर्शाती दर्पण सी मन के भाव । बेहतरीन शशी भैया सादर प्रणाम
ReplyDeleteआभार आशीष जी।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-07-2020) को "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे" (चर्चा अंक-3749) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी आभार
Deleteगुरुजी।
सदैव की भांति बहुत ही भावपूर्ण सृजन शशि भाई ।
ReplyDeleteजी आभार मीना दीदी।
Deleteसंवेदना तब सिसकती है
ReplyDeleteजब घात बड़ों की सहती है
वाह बेहतरीन रचना 👌👌👌👌
जीवन सार छुपा है आप के शब्दों में
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