Followers

Tuesday 20 March 2018

आत्म कथा

व्याकुल पथिक

20/3/18


तो बात मैं स्टेशन रोड वाली दादी जी की कर रहा था। रिश्ता भले दूर का मेरा उनका रहा। लेकिन, दिल उनका वात्सल्य प्रेम से भरा था। फिर तो मैं उनकी ही पराठा-सब्जी की दुकान पर रात्रि का भोजन भी कर लेता था। यहां आधा लीटर दूध की और एक प्याली मलाई की व्यवस्था हो जाती थी। वाराणसी से मीरजापुर आ कर पैदल देर शाम से लेकर नौ बजे राघ्रत्रि तक दर दर भटकते हुये, अनजान मुहल्ले गलियों से गुजरते हुये अखबार बांटने के बाद मेरे पांव जमीन पर ठीक से नहीं पड़ते थें। व्याकुल और नींद से बोझिल आंखें स्टेशन रोड की राह निहार रही होती थी, वहां तक पहुंचते पहुंचते मन बिलख उठता था। बरबस जुबां पर मदर इंडिया फिल्म का यह दर्द भरा नगमा दुनिया में अगर आये हैं, तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा....आ जाता था।

            कहां तो  छात्र जीवन में धूप में घर से बाहर बिना छाता लिये निकलने नहीं दिया जाता था। हिदायत मिलती थी कि चाहो तो रिक्शा कर लेना। और अब जीवन के सबसे बड़े  संघर्ष में मैं अपनों से काफी दूर अनजाने शहर में सड़कों को नाप रहा था, तो कहां कोई साथी था। फिर भी गजब का उत्साह था मुझमें । शायद आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर होने का जोश हो । यह भी जानता था की यहां दादी जी की दुकान पर अमृत तुल्य भोजन मिलना तो तय ही है। जब भी बनारस की बस छूट जाती थी। और बारी सामने स्थित रेलवे स्टेशन पर रात गुजारने की आती थी, तो  रात्रि मैं उनके यहां विश्राम अब तो कर ही सकता था।

          यह अस्थायी शरण स्थल मेरे लिये और मेरी पत्रकारिता के लिये भी कितना उपयोगी निकला, वर्ष भर बाद मुझे तब समझ में आया जब मुकेरी बाजार वाली दादी जी ने मुझे अपना एक और पुत्र ही मान लिया। फिर तो कष्टकारी बनारस के रात्रि सफर से मैं मुक्त हो चला। ये नयी वालीं दादी जी के यहां मुझे अपने घर से भी अधिक स्वादिष्ट भोजन के साथ ही रात्रि शरण लेने के लिये स्थान जो मिल गया। अपने यहां उन्होंने मुझे रख लिया। सो, अगले दिन सुबह मैं बनारस जाने लगा। सच कहूं तो शरण स्थल का यही तो प्रभाव है कि यदि हम स्थान का चयन सही करेंगे, तो वह स्थान आपको ऊर्जावान बनाता रहेगा । आज भी मेरी स्मृति में उस वाराणसी में रहते हुये उस आश्रमसुख की याद बरबस आ गई । जहां पहुंच कर कुछ महीनों के लिए मेरा जीवन ही बदल गया था।  लेकिन इस पथिक को तो लम्बा सफर तय करना है, काफी भटकना है । सो , मन की चंचलता मुझे आश्रम से बाहरी दुनिया में फिर से रिश्तेदारों के दरवाजे तक ले गई। उस आश्रम जीवन की दिव्यता की चर्चा फिर कभी करुंगा। आज रात्रि के 12 बज चुके हैं। अतः सभी को शुभ रात्रि मित्रों।

क्रमशः