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Friday 22 June 2018

दिखावे के लिये नहीं करूंगा योग


 मुझे शिव की समाधि, बुद्ध की खोज,गांधी की अहिंसा चाहिए

   आज अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की धूम रही। सुबह दैनिक क्रिया सम्पन्न कर जब पौने पांच बजे  निकला , तो सड़कों पर लोगों की कुछ अधिक चहल- पहल दिखी। समझ गया कि ये सभी योग प्रेमी हैं। सो, करो योग रहो निरोग की अलख वे जगा रहे हैं। पर इन दिनों अपना योग तो कुछ और ही है। समझ लें कि यह एक तरह का कठिन तप है। सुख- दुख, मान- अपमान जैसे विरोधी भावों में एक समान रहना, चार सूखी रोटी को ही अपना पकवान समझ लेना, दूसरों के वैभव की चकाचौंध में मन को स्थिर रखना , प्रलोभन की हर सामग्री से चित्त को मुक्त रखना , अपनी झूठी प्रतिष्ठा के लिये सत्य का त्याग न करना और भी बहुत कुछ  करने का प्रयत्न ....।  योगेश्वर कृष्ण के अनुसार यही तो योग है। हां, उसे प्राणायाम और योगाभ्यास से जोड़ दिया गया है।  तन पर मन और कर्म का प्रभाव तय है।
                मुझे दूसरों के ऐश्वर्य को देख अपनी दीनता पर क्षोभ क्यों नहीं होता है, जानते हैं ? बस एक छोटा सा प्रयोग मैंने किया है, वह है अपने से नीचे के तबके के लोगों के बीच से गुजरना और उन्हें सम्मान देना। इसका प्रत्यक्ष लाभ मुझे यह मिलता है कि ऐसे लोग मुझे देखते ही बड़े अदब से हाथ उठा स्नेह प्रदर्शन करते रहते हैं। ऐसा कर वे सभी मुझे एक विशिष्ट व्यक्ति का दर्जा ही दे देते हैं। फिर भला मैं क्यों किसी को हाकिम हुजूर कह सलाम करूं। अब चाहे वह धनकुबेर हो, बड़ा नेता अथवा अधिकारी ही क्यों न हो, उनके प्रति जो शिष्टाचार है, उससे अधिक नतमस्तक मैं इनमें से किसी के समक्ष नहीं होता। पत्रकार हूं, तो इन ढ़ाई दशक में न जाने कितने ही मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्रियों, बड़े नेताओं से पत्रकार वार्ता की है। सबसे बड़े सिने स्टार और उद्योगपति भी यहां आये विंध्यवासिनी धाम में, तब भी अन्य कुछ साथी मित्रों की तरह इनके साथ अपनी तरफ से संयुक्त फोटोग्राफी की उत्सुकता कभी नहीं दिखलाई मैंने। बस अपना जो मुख्य कार्य था समाचार संकलन, ध्यान उसी पर केंद्रित रखा। सच कहूं तो साधारण वर्ग के लोगों ने  मुझे वह ऊंचाई दी है, जहां पहुंच कर मैंने देखा कि अमीर लोग भी मेरा सम्मान करने लगे हैं। इसीलिए आज एक पत्रकार अथवा एक समाचारपत्र विक्रेता के रुप में मेरी पहचान नहीं है यहां। यदि ऐसा होता तो सांध्यकालीन अखबार कोई अगले दिन सुबह सहर्ष भला क्यों लेता। प्रातः कालीन समाचार पत्रों में वैसे भी पाठकों को लेकर आपस में तनातनी रहती है। परंतु किसी ने भी मेरा पेपर बंद नहीं किया। यह मेरे लोभ रहित कर्मयोग का स्वतः मिला फल है कि सभी पाठकों का मुझे इस तरह से स्नेह मिल रहा है। हां,कर्मयोग के आगे मुझे  अपने योग में शिव की समाधि चाहिए, बुद्ध की खोज चाहिए, गांधी की अहिंसा चाहिए।  मुझे योग का बाजार नहीं चाहिए, मुझे मोक्ष भी नहीं चाहिए ।  मैं उस स्थिति की अनुभूति चाहता हूं, जिसकी प्राप्ति के बाद आदि शंकराचार्य  ने कहा था-

 न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ
मदो नैव मे नैव  मात्सर्यभावः
न धर्मों न  चार्थो न कामो न मोक्षः
 चिदानंद रुपः शिवोहम् शिवोहम्।

 जीवन की इस आखिरी बाजी को मुझे हर प्रयत्न कर जीतना ही है। सो, तन- मन के मैल को स्वच्छ करने में जुटा हूं। यह मेरा अपना स्वच्छता अभियान है। दिखावे के लिये न तो योग करूंगा ,ना ही हाथ में झांडू लूंगा।

शशि 21/6/ 2018