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Friday 24 April 2020

लॉकडाउन की बातें

लॉकडाउन की बातें
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  यहाँ मुझे एक ही प्रतिष्ठान के दो छोर पर एक ही वक़्त दो अलग- अलग दृश्य ही नहीं विचार भी दिखें । एक ओर सैकड़ों रुपये ख़र्च कर माला-फूल और अंगवस्त्र मंगाये गये और दूसरी ओर बोरा भर खीरा। एक तरफ़ तामझाम तो दूसरी तरफ़ निःस्वार्थ पशु सेवा ..
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   इस लॉकडाउन में इन दिनों शाम की चाय की तलब मुझे संदीप भैया के प्रतिष्ठान तक खींच ले जाती है। दरअसल चीनी, चायपत्ती और दूध  आदि की व्यवस्था कर पाना मेरे लिये भोजन पकाने से भी अधिक कठिन कार्य है। अतः घर जैसी चाह भरी चाय के लोभ में अक्सर ही सायं पाँच बजे से पूर्व वहाँ पहुँच जाता हूँ। साथ में विष्णुगुप्त चाणक्य और उपनिषद् ज्ञान से संबंधित दो टीवी धारावाहिक भी देख ले रहा हूँ। तबतक ऊपर घर से चाय भी आ जाती है। वो कहा गया है न कि एक पंथ दो काज।
     संदीप भैया व्यवसायी होकर भी जुगड़तन्त्र से दूर रहते हैं। वे सहृदयी और समाजसेवी हैं। सो, हम दोनों की विचारधारा एक जैसी है ,यदि कोई भेद है, तो वह राजा और रंक का है। विगत वृहस्पतिवार को भी मैं उनके प्रतिष्ठान पर गया। वहाँ देखा कि मुहल्ले के कुछ उत्साही युवक कोरोना वीरों के स्वागत की तैयारी में जुटे हैं। जब पूरे जिले में ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर के भी वार्ड-मुहल्ले में पुलिस अधिकारियों का स्वागत हो रहा है। माल्यार्पण के साथ उनपर पुष्पवर्षा हो रही हो, तो वे क्यों पीछे रहतें। सो,यहाँ भी कुछ देर पश्चात पुलिस अधिकारियों के आते ही फ़ोटोग्राफ़ी के साथ ही तालियाँ बजनी शुरू हो गयी थीं।     
    तभी मैंने देखा कि श्री सत्य साईं सेवा संगठन का एक सदस्य बोरे में खीरा भरकर लाया ।जिसे दुकान के दूसरे छोर पर डालकर ,वह जैसे ही स्नेहपूर्वक 'आवो-आवो 'की आवाज़ लगाता है, देखते ही देखते क्षुधातुर गोवंश दौड़े चले आते हैं। वे खीरे पर टूट पड़ते हैं। जिसे देख वह गौसेवक आनंदविभोर हो उठा था। बिना किसी तरह की फ़ोटोग्राफ़ी किये, वह जैसे आया था, वैसे ही चुपचाप चला गया। उस युवक की निःस्वार्थ सेवा देख मुझसे रहा नहीं गया। मैंने जेब मोबाइल निकाल कर दूर से एक फ़ोटो ले ही लिया । ऐसे सच्चे समाजसेवियों की पहचान हम पत्रकार को भी रखनी चाहिए ।
   यहाँ मुझे एक ही प्रतिष्ठान के दो छोर पर एक ही वक़्त दो अलग- अलग दृश्य ही नहीं विचार भी दिखें । एक ओर सैकड़ों रुपये ख़र्च कर माला-फूल और अंगवस्त्र मंगाये गये और दूसरी ओर बोरा भर खीरा। एक तरफ़ तामझाम तो दूसरी तरफ़ निःस्वार्थ पशु सेवा। ज़ाहिर है कि ये माल-फूल कुछ देर पश्चात पाँवों तले कुचले जाएँगे और दूसरी ओर बोरे भर खीरे ने मूक जीवों की प्राणरक्षा की।आप बताएँ असली कर्मवीर इनमें से कौन हैं ? हम उन्हें न भी पहचाने  तो भी वे सूर्य बन प्रगट हो ही जाएँगे। 

 इन यूनिक इंडिया सोसाइटी के कार्यकर्ताओं के लिए भी ऐसे माला वीरों को ध्यान देना चाहिए जो अपने नगर के गंगातट के पास सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए बच्चों को दूध पिला रहे हैं। इस आपदा की घड़ी में बच्चों के साथ ही उनकी माताएँ भी इनके माध्यम से दूध प्राप्त कर रही हैं। सोसाइटी के कार्यकर्ता बड़े ही सेवा भाव से यह कार्य करते दिखें। 

     किन्तु यह क्या ?  मालार्पण और पुष्पवर्षा के लोभ में जिले के कछवां में आयोजकों के साथ पुलिस ने भी सोशल डिस्टेंस की धज्जियाँ उड़ा दीं। ऐसे माला वीरों को देख जनता ने कम चुटकी नहीं ली थी। ऐसे स्वागत कार्यक्रम लॉकडाउन के पश्चात भी किये जा सकते हैं। लेकिन, प्रशासन का सामीप्य और फ़ोकस में आने का अवसर हम कैसे छोड़ सकते हैं ।

     ख़ैर,जैसा की मैंने पिछले पोस्ट में लिखा था , जिन निम्न-मध्यवर्गीय स्वाभिमानी लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है, वे क्या करें ? ऐसे में एक प्रश्न यह भी है कि सभासद क्या कर रहे थे ? सत्तापक्ष के बूथ अध्यक्षों से लेकर जनप्रतिनिधियों की भी तो कुछ ज़िम्मेदारी होती है , क्या वे सिर्फ़ वोटों के सौदागर हैं ? राशनकार्ड बनवाने का दायित्व इनमें से किसी का नहीं था ? 
     ऐसी ही एक और विधवा युवती बड़ी माता मुहल्ले से आती है।उसके पास राशन कार्ड नहीं था। इस लॉकडाउन में वह अपना और अपने बच्चे का पेट कैसे भरे।पहले माता-पिता तत्पश्चात पति की मृत्यु। मायके में उसे सिर छुपाने का स्थान मिल गया था ।अबतक नियति से संघर्ष कर रही यह युवती अपने स्वाभिमान की रक्षा कैसे करे ? यदि क्षेत्रीय सभासद को अपने वार्ड के ऐसे निर्धन लोगों की तनिक भी चिन्ता होती, तो आज उसके पास राशनकार्ड होता। उसके सहयोग के लिए मैंने उसी अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय के प्रबंधक के पास संदेश भेजा । सो, फ़िलहाल उसका काम चल गया है। उसके स्वाभाविक की रक्षा हो गयी , लेकिन कब तक ?
    बिना राशनकार्ड धारकों को निःशुल्क सरकारी गल्ला( चावल) के संदर्भ में मेरे पिछले पोस्ट को पढ़ कर गांव- गरीब नेटवर्क के संयोजक सलिल पांडेय ने जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से वार्ता की थी,तो जानकारी मिली कि मीरजापुर जिले 45 हजार लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है, परंतु शासन की ओर से ऐसा कोई गाइडलाइन नहीं है कि सरकारी गल्ले की दुकानों से इन्हें भी कार्ड धारकों की तरह निःशुल्क चावल मिले। प्रशासन ऐसे लोग भूखे नहीं रहे ,इसके लिए जन सहयोग से इन्हें अनाज उपलब्ध करवा रहा है, परंतु कितना ? इनके नागरिक अधिकार और दया में अंतर है की नहीं ?
      इसके लिए सभासदों से लेकर ग्रामप्रधानों को स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या वे वास्तव में अपने क्षेत्र में जनता के प्रतिनिधि हैं ? इसीलिए स्वार्थ के तराजू पर तोले गये ऐसे रिश्ते स्थाई नहीं होते हैं।
      अंतर्राष्ट्रीय वैश्य सम्मेलन के प्रदेश पदाधिकारियों संग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में वृहस्पतिवार की देर शाम संगठन के प्रदेश अध्यक्ष व लखनऊ के विधायक नीरज बोरा की उपस्थित में प्रदेश के आयुष मंत्री अतुल गर्ग को मीरजापुर के संदर्भ में संगठन की ओर से चंद्रांशु गोयल ने बताया कि निम्न - मध्यवर्ग के अनेक लोग हैं, जिनके पास राशनकार्ड नहीं है। इस समय उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय है। फ़िर भी इस समस्या का निराकरण नहीं हुआ। 
  बहरहाल ,अपना काम तो जागते रहो की पुकार लगाना है, आगे राम जाने।  

              - व्याकुल पथिक