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Monday 18 February 2019

पथिक! खोल हृदय का ताला

संत रविदास जी
      की
  जयंती पर
नमन एवं वंदन
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मंजिल ढ़ूंढे, दर-दर भटके ;
पथिक , कहाँ तुझे  जाना ।
है तेरा कौन  ठिकाना ?
दे हृदय पर ताला ।

आयो बसंत, फुले पलाश;
जगमग हुआ मधुशाला ।
पथिक, तू न प्रेम बढ़ाना ;
दे हृदय पर ताला ।

प्रीति की रीति न जाने कोई;
बनिये सा व्यापार नहीं होई।
पथिक , फिर ना पछताना;
दे हृदय पर ताला।

हँसी-ठिठोली करे जो सखियाँ;
पथिक , ना तू भरमाना ।
तुझे साजन संग है जाना;
दे हृदय पर ताला ।

फगुवा बहे, हिय जब झुलसे ;
जेठ  से प्यास बुझाना ।
पथिक , ना तू घबड़ाना;
दे हृदय पर ताला ।

होनी करे, सब खेल निराला;
माटी का पुतला  जग सारा ।
पथिक,  फिर काहे पछताना;
दे हृदय पर ताला।

प्रेम नगर का ठौर ठिकाना;
तुझे पता जहाँ है जाना ।
धीरज रख ,मन बहलाना;
दे हृदय पर ताला।

सतगुरु मिले जान न पाया;
माया ने तुझको भटकाया ।
पथिक ,अब न नाच दिखाना;
दे हृदय पर ताला।

जग भोगी, तू जोग में हुलसे ;
न मंदिर , ना मस्जिद जाना  ।
पथिक !किसका है तू दीवाना;
दे हृदय पर ताला।

जाग पथिक, मिलेंगे प्रियतम ;
हिय कठोती,ज्यों गंग समाना।
सतनाम का अलख जगाना;
खोल हृदय का ताला ।

         -व्याकुल पथिक