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Wednesday 13 November 2019

शब्दबाण ( जीवन की पाठशाला )



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     उसके वह कठोर शब्द - " कौन हूँ मैं ..प्रेमिका समझ रखा है.. ? व्हाट्सअप ब्लॉक कर दिया गया है..फिर कभी मैसेज या फोन नहीं करना.. शांति भंग कर रख दिया है ।" यह सुनकर स्तब्ध रह गया था मयंक..
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Shashi Gupta जी बधाई हो!,

आपका लेख - (शब्दबाण) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन
 अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सुबह का दृश्य कितना आनंदित करने वाला रहा..योग तो वैसे भी मयंक को बचपन से ही प्रिय है.. और आज भी वह अपनी मनोस्थिति पर नियंत्रण के लिये हठयोगी सा आचरण कर रहा है..।
        राग-रंग, प्रेम-विवाह और वासना- विलासिता से दूर हो चुके इस व्यक्ति के जीवन में पिछले कुछ महीनों में न जाने क्या परिवर्तन आया कि मन और मस्तिष्क दोनों पर से वह नियंत्रण खोता चला गया.. उसकी आँखोंं के नीर कहीं इस संवेदनहीन सभ्य समाज के समक्ष उसकी वेदना को उजागर न कर दें , इसलिये उसे एक हठयोग नित्य करना पड़ रहा है..वह है दूसरों के समक्ष सदैव मुस्कुराते रहना..उसने  "मेरा नाम जोकर" के किरदार राजू के दर्द को स्वयं में महसूस किया है। अतः माँ की मृत्यु का समाचार मिलने पर स्टेज पर जिस तरह से उस राजू ने अपने रुदन को अभिनय से दर्शकों के लिये मनोरंजन में बदल दिया.. ठीक उसी तरह वह भी जेंटलमैनों के मध्य ठहाका लगाने का प्रयास कर रहा है। वह कहा गया है न..

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।

सुनी इठलैहैं लोग सब , बांटी न लेंहैं कोय ।।

    लेकिन शाम ढलते जैसे ही एकांत मिलता है , यह हठयोगी उस मासूम बच्चे की तरह सुबकने लगता था ,मानों माँ के स्नेह भरे आँचल से किसी ने उसे निष्ठुरता से अलग कर दिया हो। उसे दण्डित करने से पहले उसके कथित अपराध पर सफाई देने का एक अवसर तक नहीं दिया गया.. इस नयी वेदना की सूली पर चढ़ते हुये भी न्याय की गुहार लगाते रहा वह..।

    ऐसी मनोस्थिति में उसे लगता है -
   " वह न मानव रहा , न दावन बन सका..न कोई उसका मित्र रहा , न वह पुनः किसी से मित्रता का अभिलाषी है..।"
     वेदना, तिरस्कार, उपहास एवं ग्लानि से न जाने क्यों उसका हृदय कुछ अधिक ही रुदन कर रहा है.. वह जिस मित्रता को अपने उदास जीवन का सबसे अनमोल उपहार समझा था..उसका वह विश्वास काँच की तरह चटक कर बिखर गया.. मानों यह "पवित्र मित्रता" कच्ची मिट्टी का खिलौना था..।
   मयंक ने ऐसा क्या कुकर्म किया ..?
वार्तालाप के दौरान सदैव संयमित रहता था, ताकि उस विदूषी मित्र को कभी यह न लगे कि उसका संवाद अमर्यादित है..इस लक्ष्मण रेखा का उलंघन उसने मित्रता टूटने तक नहीं किया..।
   किसी अपने द्वारा तोहफे में दिये गये " भूल, अपराध, पाप और गुनाह " जैसे कठोर शब्द जो उसके कोमल मन को छलनी कर देते थें , उसे भी सिर झुका सहन कर लेता था .. न जाने क्यों वह व्याकुल हो गया उस दिन कि अधिकार भरे शब्दों में तनिक उलाहना दे दिया .. परिणाम ,यह रहा कि इस तन्हाई में इन आँसुओं के सिवा और कोई दोस्त उसके साथ न रहा..।
   व्यथित हृदय के घाव को भरने का उसका " हठयोग " निर्रथक  प्रतीत होता रहा.. मन ऐसा डूबा जा रहा है कि मानों अवसाद उसके जीवन के अस्त होने का संदेश लेकर आया हो..ऐसे में वह अपने व्यर्थ जीवन का क्या मूल्यांकन करे.. ? उसकी निश्छलता का कोई मोल न रहा, सरल और निर्मल मन का होकर भी वह कभी भी स्त्री के हृदय को जीत न सका..उसके निर्मल आँसुओं का उपहास हुआ और वह अपना आत्म सम्मान खो बैठा है..जीवन भर स्नेह लुटा कर भी वह अपने हृदय को दुखाता रह गया..।
      उसने कभी कल्पना भी न की थी कि उसके जीवन में आया वह मधुर क्षण उसे उस अवसाद के दलदल में ले जाएगा..जहाँ न कोई " योग "और न यह " हटयोग " काम आएगा ..!
    जीवन की यह कैसी विडंबना है कि वह जिस विदूषी मित्र में अपनी माँ की छाया ढ़ूंढता रहा, उसी देवी को उसके उस पवित्र स्नेह पर एक दिन न जाने क्यों संदेह हो गया.. ?
     और उसके वह कठोर शब्द - " कौन हूँ मैं ..प्रेमिका समझ रखा है.. ?   व्हाट्सअप
ब्लॉक कर दिया गया है..फिर कभी मैसेज या फोन नहीं करना.. शांति भंग कर रख दिया है ।"
  यह सुनकर स्तब्ध रह गया था मयंक.. जिसे वह मृदुभाषिणी एवं स्नेहमयी देवी  समझता था.. जिसने स्वयं उसे अच्छा मित्र बनने का वचन दिया था.. जो माँ की भांति  महीनों उसकी खोज-खबर लेती रही.. जो स्वयं को उसका अभिभावक कहती थी.. जिसका तनिक भी नाराज होना मयंक के लिये असहनीय रहा..जिसे खुश करने के लिये वह एक मासूम बच्चे सा मनुहार करता था.. उसी विदूषी की वाणी में आज क्यों तनिक दया भाव भी न था.. ?
      शाब्दिक बाण के इस प्रहार ने उसके निश्छल हृदय को मर्मान्तक पीड़ा पहुँचाई ..लज्जा से वज्राघात- सा हुआ मयंक पर.. उसने डबडबाई आँखों से उस भद्र महिला को अंतिम प्रणाम किया.. और फिर कभी इस आत्मग्लानि से बाहर नहीं निकल सका वह.. ।
  वो, कहते हैं न - "   देखन में छोटन लगे घाव करे गम्भीर । ". . शब्दबाण ऐसा ही होता है..।

    - व्याकुल पथिक

 जीवन की पाठशाला

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इंसान को अपने शब्द तोलकर बोलने चाहिए क्योंकि सामने वाला कोई भी हो आपके शब्दों के बाण उन्हें चुभ सकते हैं। यहां शशी गुप्ता जी ने शब्दबाण पर अच्छा लेख लिखा है और इसे 'आर्टिकल ऑफ द डे' के रूप में चयनित किया गया है। बधाई....😊🙏💐
https://shabd.in/post/110856/shabdban
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