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Wednesday 13 February 2019

है कैसी जुदाई...

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सर्द निगाहों से   दिल ने पुकारा
कहाँ है वो श्वेत वस्त्र तुम्हारा ?
उठेगी डोली बजेगी शहनाई-
मिलन की रात,है कैसी जुदाई ?

   उठा   बचपन में साया किसी का
  दुल्हन के जैसे अर्थी सजी थी   ;
आँखों में आँसू,नहीं थें वो सपने-
  मिलन की राह, है कैसी जुदाई ?

    तरसती जवानी बहकती निगाहें-
    मिले  संगी - साथी - हुये वो पराये;
    तन्हाई मिली है  गुजरा जमाना-
    यादों की बारात , है कैसी जुदाई ?


भटकती रूहों को है पास आना ,
आंचल तुम्हारा है वो आशियाना ;
पथिक का नहीं है कोई ठिकाना-
मिलन की चाहत,है कैसी जुदाई?

    उखड़ती सांसें वो - तरसी  निगाहें-
    तुम्हें पुकारे जो बहे अश्रुधारा ;
    अगन जला, है अनंत में समाना
    बसंत की  आस, है कैसी   जुदाई ?

(व्याकुल पथिक)