है तू इक भूल और ...
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आज की रात तुझे
नींद न फिर आई
यादों की राह में
वो दर्द जो ले आई
चादर की इन सिलवटों में
वो खुशियाँ तो नहीं
ये तेरे करवटों की कराह है
और कुछ भी नहीं
खुली जुल्फ़ों में बिखरी
ये वो मोहब्बत भी नहीं
उन मचलते हुये बाँहों में
तेरी ख़्वाहिश तो नहीं
खिलखिलाते उन होंठों पे
तेरा नाम तो नहीं
खनखनाती पायलों में
ना तेरी हँसी है छुपी
ज़ख्म जो तेरे जिगर में
क्यों ना भर पाता कभी ?
बिखरे हुये कुछ कांच वहाँ
तेरी किस्मत तो नहीं
ख़्वाबों में आते हो क्यों
जब दिल पे दस्तक ही नहीं
तू है गुनाहों का देवता
और एक भूल ये सही
मत कोस जमाने को
ये तेरी दुनिया ही नहीं
है तू इक भूल
और कुछ भी नहीं..!
-व्याकुल पथिक