अटल सत्य
**********
ए नादान परिंदे तू
इंसानों की फ़ितरत को समझ
ये तुझे देते हैं दाना-पानी,पर
इसे अपनी क़िस्मत ना समझ
अरे ! मुर्ख नासमझ पक्षी
ये तेरी खुशियों पर नहीं
ये तेरी कराह पर नहीं
तेरे क़त्ल पर भी नहीं
वे तो तेरे गोश्त की चाह में
खिलखिलाते और मुस्कुराते हैं
नहीं है उनमें भी रहम
कह मछली जल की रानी
जो लिखते हैं तुझ पे कविता
वे तुझे सहलाते हैं, मगर
है तू आखेट उनका भी
आज नहीं तो कल
नौ दिन ये,उनके उपवास के
पगले ,इसे जीवनदान न समझ
टूट पड़ेंगे भूखे भेड़िये से तुझपे
अभी बने हैं जो बगुला भगत
और बात राजनीति की करूँ
तो चुनावी मौसम है रंगीन
जन सेवक के पोशाक में
आज जो तुझे दिख रहे हैं दोस्त
पहचान इन नक़ाबपोशों को
कल वे ही होंगे तेरे हिटलर
नियति की निष्ठुरता को
तू भी पथिक तनिक तो समझ
मत पूज तू इसको कभी
मृत्यु दण्ड तेरा भी है अटल सत्य
**********
ए नादान परिंदे तू
इंसानों की फ़ितरत को समझ
ये तुझे देते हैं दाना-पानी,पर
इसे अपनी क़िस्मत ना समझ
अरे ! मुर्ख नासमझ पक्षी
ये तेरी खुशियों पर नहीं
ये तेरी कराह पर नहीं
तेरे क़त्ल पर भी नहीं
वे तो तेरे गोश्त की चाह में
खिलखिलाते और मुस्कुराते हैं
नहीं है उनमें भी रहम
कह मछली जल की रानी
जो लिखते हैं तुझ पे कविता
वे तुझे सहलाते हैं, मगर
है तू आखेट उनका भी
आज नहीं तो कल
नौ दिन ये,उनके उपवास के
पगले ,इसे जीवनदान न समझ
टूट पड़ेंगे भूखे भेड़िये से तुझपे
अभी बने हैं जो बगुला भगत
और बात राजनीति की करूँ
तो चुनावी मौसम है रंगीन
जन सेवक के पोशाक में
आज जो तुझे दिख रहे हैं दोस्त
पहचान इन नक़ाबपोशों को
कल वे ही होंगे तेरे हिटलर
नियति की निष्ठुरता को
तू भी पथिक तनिक तो समझ
मत पूज तू इसको कभी
मृत्यु दण्ड तेरा भी है अटल सत्य
-व्याकुल पथिक