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Saturday 16 February 2019

न जलाओ दीपक,न दो मुझे सलामी !

न जलाओ दीपक , न दो मुझे सलामी !
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वतन के लिये ,कफन हमने बांधा ;
थी चाहत अपनी, दुश्मनों को मिटाना।

लड़ के मरे हम ,हो प्रताप तुम्हारा;
संगीन पर हो , तब मस्तक हमारा।

राणा के वंशज, वो झांसी की रानी;
वीरों सा सीना, गरजती थी वाणी ।

चले थें घर से , ये तमन्ना लिये हम;
दुश्मन जो ताकें , लाहौर हो हमारा ।

अर्थी सजी हो,तब लोग ये पुकारे;
देखों बन ,अब्दुल हमीद घर आया।

टूटी चूड़ियाँ  ,जब खनकने लगे ;
कहे ,गीदड़ों को मार तेरा वीर आया।

प्रेम -दिवस तब , हुंकार करे सब ;           
कहे मत रो , हो शहीद लौट आया।

माता का आंचल , पुकार करे जब ;
कहे  लाल तेरा ,वो वतन में समाया ।

बूढ़े पिता की , है लाठी जो टूटी ;
कहे लाल तेरा , हो अमर घर आया।

कलाई पर बंधा, है धागा जो टूटा;
कहे भाई तेरा , हुआ सबको प्यारा।

बेटा बुलाएँ, है पिचकारी जो टूटी;
कहे बाप तेरा , अब होली में समाया।

पर मुझे यूँ मरना , तुझे है सिसकना;
बता कैसे चुकाऊँ ,माँ भारती कर्ज तेरा।

वो कत्ल करें , हम शीश बढ़ाएँ ;
बता कैसे निभाएँ , माँ भारती फ़र्ज़ तेरा ।

ये मजमा लगा है, जयचंदों का कैसा ;
न जलाओ दीपक , न दो मुझे सलामी।
     
                        -व्याकुल पथिक