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Tuesday 12 June 2018

एक और युवा क्रांति के लिये करें सृजन


   
       पिछले पोस्ट में बात पुलिस विभाग की कर रहा था। प्रशासनिक महके में मैं सबसे करीब इसी के रहा हूं। आज में पुलिस आफिस भले ही यदा- कदा जाता हूं। लेकिन मेरे एक व्हाट्सअप ग्रुप में सवा सौ के करीब इसी विभाग के लोग जुड़े हैं। इनमें से कुछ दरोगा, सिपाही और इंस्पेक्टर ऐसे भी हैं, जिनके स्नेह और सहयोग के कारण यह ग्रुप अपडेट बना रहता है। हां, अफसरों से मैं कुछ अधिक उम्मीद नहीं करता हूं, उस मुकदमे से मुझे यह सबक तो मिला ही कि इनके पास बैठ कर अथवा इनके लिये अत्यधिक लिखना पढना, अपने कलम का अपमान करना है। सो, इन सभी से जब भी भेंट होती है, मैं तुरंत प्रणाम कर पिछली सीट पर जा बैठता हूं। नहीं तो एक दौर वह भी था कि मैं और कुछ एसपी साथ- साथ चाय-जलपान करते थें। एएसपी जो थें वे तो छोड़ते ही नहीं थें। उस समय मोबाइल का जमाना नहीं था। सो, दूर दराज की घटनाओं की जानकारी सबसे अधिक एएसपी से मिलती थी मुझे। कुछ सिपाही मुझ पर इतना भरोसा करते थें कि विभाग ऐसी कोई भी खबर नहीं रहती थी , जो मुझे नहीं मिलती थी। जैसे ही कप्तान की बड़ी पेशी में जाता था सभी हर्षित हो उठते थें। वे जानते थें कि शशि भाई कुछ भी इधर- उधर नहीं करेंगे। अखिलेश सिंह हो या प्रदीप सिंह और भी बहुत से पुलिस मित्र मेरी कोई खबर छूटने नहीं देते थें। वरिष्ठ अधिकारियों को बड़ा आश्चर्य होता था कि इसका तो कोई कार्यालय नहीं है, क्षेत्रीय प्रतिनिधि भी नहीं है, टेलीफोन नहीं है, साइकिल से चलता है, फिर कहां से सटीक खबर वह भी सबसे पहले पाता है। बाद में हेरोइन के ठिकानों की खबर छापने को लेकर एक अधिकारी से मेरी उन्हीं के कार्यालय में बहस भी हुई थी। ये साहब नंबर दो की कुर्सी पर जरुर थें, परंतु हम पत्रकारों को दबा कर रखना चाहते थें। लेकिन, जब मैं उन्हें उनकी सर्किल के हेरोइन(घातक मादक द्रव्य) बिक्री के ठिकानों का नाम बताना शुरु किया, तो लगे पसीना पोंछने । वे षड़यंत्रकारी अधिकारी थें, सो यहीं से मेरी घेराबंदी शुरू हो गयी थी। एक मित्र सिपाही से धीरे से बताया कि आपका मोबाइल सर्विलांस पर लगाया जा रहा है। ताकि पता चल सके कि इतनी सटीक जानकारी कौन दे रहा है। अब आप देख लें खाकी वाले ऐसे अफसरों की मानसिकता, मैं तो जनहित में इतना खतरा मोल लेकर तमाम हेरोइन बिक्री केंद्रों का हाल खबर दे रहा था । जनता पीठ थपथपा रही थी मेरी और वो मुझे फंसाने का षड़यंत्र रच रहे थें।  तकलीफ इस बात की है कि यदि मैं ऐसी खबर इन इन धंधेबाजों को ब्लैकमेल कर धन उगाही के लिये लिखा होता, तो आप मुझे जो सजा देते , तनिक भी कष्ट नहीं होता। परंतु समाजहित में मैं इतना संघर्ष कर रहा था,इन ठिकानों से मिलने वाले पैसों को ठुकरा रहा था और आप पहरूयें मेरी ही कलम को मरोड़े जा रहे थें।  पर वह जवानी ही क्या कि बिना पंजा मिलाये ही हार स्वीकार कर ले। वैसे, भी बचपन से ही समर्पण मेरे शब्दकोश में नहीं है। भाजपा के पहचान वाले नेता रामदुलार चौधरी से पूछ लें कि सबरी से लेकर भैंसहिया टोला, आवास- विकास कालोनी, जीआईसी के बगल में, विंध्याचल, कदमतर से लेकर औराई थाने के समीप संचालित हेरोइनबाजों के अड्डों पर मैंने कितनी तगड़ी रिपोर्टिंग की थी। गांडीव का महत्व तब इसलिये और था कि वाराणसी में बैठे आईजी जोन उसे पढ़ा करते थें, सो जोन की बैठक में वे कप्तान से पूछ भी लेते थें अथवा पेपर कटिंग आ जाती थी।
     हेरोइन जैसे धीमे जहर के विरुद्ध युवा काल में मेरे द्वारा अखबार के माध्यम से इस अंदाज में मोर्चा खोलने के पीछे कुछ मार्मिक प्रसंग रहा। मेरा भावुक हृदय युवाओं की यह बर्बादी नहीं देख पाता था। जब हाईस्कूल में था, तो स्मैक से जुड़ा एक टीवी सिरियल देखा था। यहां विंध्याचल में एक प्रतिष्ठित तीर्थ पुरोहित के प्रतिभावान पुत्र को मैंने इस नशे का शिकार होते देखा था। जो अब नहीं है इस दुनिया में इसी के कारण । जब मैं मीरजापुर आया था, तो एक नवरात्र पर मेरे प्रेस के प्रमुख लोग दर्शन करने विंध्यवासिनी धाम आये थें। तब उसी युवा तीर्थ पुरोहित ने उन्हें भव्य दर्शन पूजन करवाया था। बाद में अपनी व्यवहार कुशलता से पार्षद  भी बन गया वह। लेकिन, सब कुछ बिखर गया, इसी नशे से । बाद में उसकी सांसें भी थम गयी, पर उससे पहले मेरी कलम टूट गयी थी । अब वर्षों से हेरोइन और जुएं के अड्डे पर मैं कोई खबर नहीं लिखा हूं , इसलिए नहीं की डर गया हूं खाकी, खादी और मीडिया को नापाक करने वाले कुछ लोगों के गठजोड़ से ! वरन् इसलिए कि यह समझ चुका हो कि कोई युवा क्रांति ही इस भ्रष्ट व्यवस्था  के विरुद्ध निर्णायक जंग लड़ेगी। अतः हम कलमकारों को अपने विचारों से ऐसे वातावरण का सृजन करना होगा, ताकि जो मेरा एकल
मिशन था वह बहुतों का लक्ष्य हो जाए। फिर कौन दबाएगा हमारी कलम को, उस इंकलाब जिंदाबाद के समक्ष ?

(शशि)