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Sunday 20 May 2018

मेरी मां तुम्हारी कुछ भी नहीं !



          मां तो सबकी मां होती है। हम भारतीय तो अपने राष्ट्र को भी भारत माता कह कर नमन करते हैं। फिर भी हममें से अनेक लोग बातों ही बातों में न जाने क्यों मां-बहन को जोड़ कर अपशब्दों का प्रयोग करते ही आ रहे हैं। मुझे नहीं पता कि इनके प्रति वाणी का यह अनादर किसी तरह से प्रचलन में आया। परंतु थाने पर दरोगा और राह चलते सिपाही जिम्मेदार पद पर होकर भी ऐसा किया करते हैं। पत्रकार हूं, इसीलिये ऐसा आंखों देखी बता रहा हूं। हां, अब सोशल मीडिया का जमाना है। अतः वीडियो कहीं वायरल न हो जाए, इससे खाकी वाले तनिक सावधान ही रहते हैं। फिर भी मेरा मानना है कि सबसे बढ़िया प्रशिक्षण गाली देने की कला की किसी को मिली है, तो वह हमारे इन पहरुओं को ही शायद!
       पिछले दिनों की बात बताऊं, हमारे अमूमन शांतिप्रिय शहर में कुछ जरा अलग हट कर हो गया है, क्यों कि खाकीवालों के विरुद्ध एक कद्दावर खादीवाले की जुबां पर वही मां की गाली आ गई। फिर क्या था कोतवाली के अंदर से इसका वीडियो वायरल हो गया। उधर,युवा दरोगा ने सत्तारूढ़ दल के एक पूर्व सांसद के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवा दिया। अब यह मामला यहां राजनैतिक सुर्खियों में है। लेकिन यह अधूरा सच है, वर्दीवाले जो आये दिन इसी तरह के अपशब्दों का प्रयोग करते हैं थाने में इसका वीडियो कौन जारी करेगा। ये वर्दीवाले ईमानदारी से बताएं कि वे ड्यूटी के दौरान प्रतिदिन कितनी बार औरों की मां -बहन का नाम ले अपशब्दों का प्रयोग करते हैं। जो नेता, अधिकारी, रंगबाज यहां विंध्यवासिनी धाम में मां कल्याण करों की पुकार लगाते हुये जाते हैं। उन्हें इतना भी नहीं पता कि जिसे वे अपने दम्भ में अपशब्द कह रहे हैं, वह इन्हीं जगत जननी का स्वरूप हैं। यह कितनी लज्जा का विषय है कि महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों  की जुबां इस तरह से बेकाबू है। क्या इस पर कोई बड़ा कदम हमारे भाग्य विधाताओं को नहीं उठाना चाहिए। उनके पास पावर है, वे चाहे तो संविधान में इसके लिये और कठोर कार्रवाई तय कर सकते हैं। जब कानून के भय से दलित वर्ग के प्रति अपमानजनक  शब्दों के प्रयोग काफी कम हो सकता है, तो फिर मां-बहनों की अस्मत को ठेस पहुंचाने वाली यह गाली भी निश्चित ही रोकी जा सकती है। पूर्व माननीय और दरोगा के विवाद को उजागर कर मैं इस ब्लॉग की गरिमा गिराना नहीं चाहता, परंतु  "मां "  जैसे आत्मीय सम्बोधन को निजी अहम् की तुष्टि का माध्यम न बनाया जाए, इसके लिये हम सभी को मिल कर आवाज उठानी होगी। यह हमारा नैतिक दायित्व भी है ! (शशि)