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Sunday 25 March 2018

आत्मकथा

व्याकुल पथिक
25/3/ 18

    विचित्र विडंबना है , हम आज राम जन्मोत्सव मना रहे हैं, तो जगह जगह ध्वनि विस्तार यंत्र (डीजे) के माध्यम से तेज आवाज निकाल कर। जिन जिन स्थानों पर वे लगे हैं, वृद्ध और बीमार जन इससे तकलीफ में दिखें। अपने दर्प के लिये दूसरों को कष्ट देना , क्या यही हमारा मर्यादा पुरुषोत्तम राम के प्रति समर्पण और भक्तिभाव है। दिन चढ़ते ही कितने ही लोगों की यह शिकायत मुझ तक आ पहुंची कि बड़ी ऊंची आवाज में डीजे बजा रहे हैं , कृपया व्हाट्सएप पर ग्रुप में कुछ पोस्ट कर दें। उधर , पुलिस जब कोई कार्रवाई करती है, तो विरोध प्रदर्शन। अहंकार भरे तेज स्वर में जय श्री राम बोलने से ही तो हम सच्चे रामभक्त नहीं हो जाएंगे। सवाल यह है कि भगवान राम के जन्मोत्सव पर आज हममें से कितनों ने उन्हीं की तरह आचरण करने का संकल्प लिया। जरा हाथ उठा कर  मन को टटोलते हुये बताएं आप भी  !
 
   मैं तो अभी इंद्रियों के संयम के मामले में तीसरे ही  पायदान पर फंसा हुआ हूं। स्वाद और अनर्गल ढंग से धन के अर्जन के लोभ पर नियंत्रण के बाद मेरा जो प्रयास चल रहा है, वह वाणी पर संयम है। अधिक बोलूंगा  तो जाने अनजाने में असत्य बोलूंगा, यह तो तय है। इसीलिए महापुरुष जन अधिक से अधिक मौन धारण किये रहते हैं सम्भवतः । इससे चिंतन शक्ति भी बढ़ती है। सो, इस प्रयत्न में रहता हूं कि अनावश्यक  वाणी को कष्ट न दूं। तभी और ऊपर वाली सीढ़ी पर पांव जमा सकूंगा। पर याद तो यह भी रखना है कि जितनी ऊंचाई पर चढ़ेंगे। फिसलने पर चोट लगने का खतरा भी उतना ही अधिक है। अतः प़ांव जमा जमा कर चढ़ना चाहता हूं। जो मैल वर्षों से तन मन पर जमा है। उसे इतनी शीघ्रता से कोई केमिकल डाल कर  साफ तो नहीं किया जा सकता है न।

        जब बात सत्य-असत्य बोलने की करता हूं , तो तो मुझे अपने बचपन का एक रोचक प्रसंग याद हो आता है। मेरे पिता जी कुछ अधिक ही अनुशासन प्रिय थें। एक बार उन्होंने मुझे घी लेने चिन्हित किराने की दुकान पर भेजा। वह दुकान कुछ दूर पर थी। बालक था, सो पास के ही एक दुकान से घी ले चला आया। परंतु यह बात छिपाये रखी। चाहे जैसे भी घर पर यह झूठ पकड़ में आ ही गया। इसके बाद मेरी जम कर खबर तो ली ही गई। साथ ही एक सादे पन्ने पर यह लिख कर मुझसे रामायण में रखने को कहा गया कि अब कभी झूठ नहीं बोलूंगा। यह नैतिक भय दिखलाया गया कि यदि झूठ बोला, तो बहुत पाप लगेगा। इससे मेरा बाल मन तब काफी सहम गया था। ठीक से याद नहीं है कि कितने महीनों तक फिर झूठ नहीं बोला था ।

क्रमशः